बाहुबली से नेता बने पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई को लेकर मचा घमासान, दिवंगत आईएएस की पत्नी ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री हस्तक्षेप करने की मांग की
बिहार की राजनीति कभी बाहुबलियों के प्रभाव से अछूती नहीं रही है। चाहे वो सूरजभान हो, चाहे वो शहाबुद्दीन हो, छोटे सरकार के नाम से जाने जाने वाले अनंत सिंह हो या फिर सुनील पांडे। ऐसे ही एक बाहुबली JDU के पूर्व MP आनंद मोहन हैं।
आनंद मोहन गोपालगंज के डीएम जी. कृष्णैया की हत्या के मामले में फिलहाल जेल में सजा काट रहे हैं। गैंगस्टर से नेता बने आनंद मोहन सिंह सहित 27 दोषियों को रिहा करने की अनुमति देने के जेल नियमों में बदलाव के अपने फैसले के लिए बिहार सरकार को भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है और इस तरह एकबार फिर आनंद मोहन सिंह बिहार की राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बने हुए हैं।
आनंद मोहन बिहार के सहरसा जिले के पचगछिया गांव से आते हैं। उनके दादा राम बहादुर सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे। आनंद मोहन की राजनीति में एंट्री 1974 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति के दौरान हुई थी। आनंद मोहन राजनीति में महज 17 साल की उम्र में आ गये थे। जिसके बाद उन्होने कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी थी। इमरजेंसी के दौरान पहली बार 2 साल जेल में रहे। आनंद मोहन का नाम उन नेताओं में शामिल है जिनकी बिहार की राजनीति में 1990 के दशक में तूती बोला करती थी।
जेपी आंदोलन के जरिए ही आनंद मोहन बिहार की सियासत में आए और 1990 में सहरसा जिले की महिषी सीट से जनता दल के टिकट पर चुनाव जीते। तब बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव थे। स्वर्णों के हक के लिए उन्होंने 1993 में बिहार पीपल्स पार्टी बना ली। लालू यादव का विरोध कर ही आनंद मोहन राजनीति में निखरे थे।
बिहार की राजनीति में जब भी कद्दावर और दमखम रखने वाले बाहुबली नेताओं की बात की जाती है आनंद मोहन सिंह का नाम लोग जरूर लेते हैं। बिहार की राजनीति जब से शुरू हुई, तबसे जाति के नाम पर चुनाव हुए और लड़े गए। एक दौर बिहार की राजनीति में 90 के दशक में आया जब ऐसा सामाजिक ताना-बाना बुना गया था कि जात की लड़ाई खुलकर सामने आ गई थी और अपनी-अपनी जातियों के लिए राजनेता भी खुलकर बोलते दिखते थे।
चुनाव के समय जात के नाम पर आए दिन मर्डर की खबरें आती थीं। उस वक्त लालू यादव का दौर चल रहा था। उस दौर में आनंद मोहन लालू के घोर विरोधी के रूप में उभरे। 90 के दशक में आनंद मोहन की तूती बोलती थी। उनपर हत्या, लूट, अपहरण, फिरौती, दबंगई समेत दर्जनों मामले दर्ज हैं।
आईएएस अधिकारी की हत्या के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद पिछले 15 वर्षों से बिहार की सहरसा जेल में सजा काट रहे। वह उन 27 कैदियों में शामिल हैं, जिन्हें जेल नियमों में संशोधन के बाद बिहार की जेल से रिहा किया गया जाएगा। नियमों में बदलाव और आनंद मोहन सिंह की रिहाई से राजनीतिक गलियारे में बवाल मचा हुआ है।
बिहार में वर्ष 1994 में मारे गए दलित आइएएस अधिकारी जी. कृष्णय्या की पत्नी जी. उमा कृष्णय्या ने पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह (Anand Mohan Singh) की रिहाई रोकने के लिए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप करने की गुहार लगाई है। आनंद मोहन को भीड़ को भड़काने का दोषी पाया गया था और एक दिन पूर्व ही बिहार सरकार ने प्रदेश के कारागार मैनुअल में संशोधन करके उसे रिहा करने का फैसला किया है।
उमा कृष्णय्या ने कहा कि वह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कदम से हैरान हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए और नीतीश कुमार को अपना फैसला वापस लेने के लिए कहना चाहिए। इस फैसले से गलत मिसाल कायम होगी और इसके पूरे समाज के लिए गंभीर परिणाम होंगे। मेरे पति एक आइएएस अधिकारी थे और न्याय सुनिश्चित करना केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है।
दिवंगत आइएएस की पत्नी ने आरोप लगाया कि नीतीश कुमार राजपूतों के वोट हासिल करने और दोबारा सरकार बनाने के लिए उनके पति के हत्यारे को रिहा कर रहे हैं। उन्हें (नीतीश कुमार) लगता है कि आनंद मोहन को रिहा करके उन्हें सभी राजपूतों के वोट मिल जाएंगे और उन्हें दोबारा सरकार बनाने में मदद मिलेगी, जबकि यह गलत है। उन्होंने कहा, 'यह बिहार में होता रहता है, लेकिन यह ठीक नहीं है। राजनीति में आनंद मोहन जैसे अपराधी नहीं, बल्कि अच्छे लोग होने चाहिए।'
1985 बैच के आइएएस अधिकारी कृष्णय्या की पांच दिसंबर, 1994 को हत्या कर दी गई थी। उस समय वह गोपालगंज के जिलाधिकारी थे। आनंद मोहन सिंह के भड़काने पर भीड़ ने उनकी कार से खींचकर हत्या कर दी थी। उस समय भीड़ गैंगस्टर से राजनीतिज्ञ बने छोट्टन शुक्ला के शव के साथ विरोध प्रदर्शन कर रही थे।
आनंद मोहन को 2007 में निचली अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन 2008 में पटना हाई कोर्ट ने उनकी सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया था। वह 15 वर्षों से जेल में हैं। दिवंगत आइएएस की पत्नी ने कहा कि आनंद मोहन को जब मृत्युदंड के बजाय उम्रकैद की सजा दी गई थी, तब वह बिल्कुल भी खुश नहीं थीं। उन्होंने कहा, 'अब यह हृदय विदारक है कि उसे अपनी सजा पूरी किए बिना ही रिहा किया जा रहा है।'
अपने पति की मृत्यु के कुछ दिनों बाद ही उमा हैदराबाद चली गई थीं। उन्होंने कहा कि राजपूत समुदाय को सोचना चाहिए कि क्या आनंद मोहन सिंह जैसे अपराधी उनका और समाज का कोई भला कर सकते हैं। उनकी रिहाई से अपराधी यही सोचेंगे कि वे कानून को अपने हाथ में ले सकते हैं, जो चाहे कर सकते हैं और जेल से बाहर आ सकते हैं।
आइए कुछ बिंदुओं से विस्तार में जानते हैं आनंद मोहन सिंह के बारे में-
1. आनंद मोहन 1994 में गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे, जो एक युवा आईएएस अधिकारी थे और वर्तमान में तेलंगाना के महबूबनगर से थे।
2. 2007 में एक अदालत ने मोहन को मौत की सजा सुनाई थी। हालांकि, एक साल बाद निचली अदालत के फैसले के खिलाफ अपील करने पर पटना उच्च न्यायालय द्वारा मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया था।
3. युवा आईएएस अधिकारी गोपालगंज जा रहे थे, जब उन्हें 'गैंगस्टर' और आनंद मोहन के सहयोगी छोटन शुक्ला के अंतिम संस्कार के दौरान मुजफ्फरपुर के पास भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला था। आनंद मोहन ने कथित तौर पर भीड़ को कृष्णैया की लिंचिंग के लिए उकसाया था।
4. जाति के एक राजपूत, आनंद मोहन कोशी क्षेत्र पर शासन करने वाले ऐसे नेता हैं जिन्हें उच्च जाति का नेता माना जाता है।
5. आनंद मोहन जेल में रहते हुए 1996 में शिवहर लोकसभा सीट से सांसद भी रहे थे।
6. 1998 में भी आनंद मोहन शिवहर लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए थे।
7. इससे पहले साल 1993 में आनंद मोहन ने खुद की पार्टी बिहार पीपुल्स पार्टी बनाई थी।

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