विमल कुमार मिश्रा की रिपोर्ट ।
दशरथ मांझी जिन्हें "माउंटेन मैन"के रूप में भी जाना जाता है, बिहार में गया के करीब गहलौर गाँव के एक गरीब मजदूर थे। केवल एक हथौड़ा और छेनी लेकर इन्होंने अकेले ही 360 फुट लंबी 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊँचे पहाड़ को काट के एक सड़क बना डाली। 22 वर्षों परिश्रम के बाद, दशरथ के बनायी सड़क ने अतरी और वजीरगंज ब्लाक की दूरी को 55 किमी से 15 किलोमीटर कर दिया।
मेरी माँ कहा करती थीं कि 12 साल में तो घूरे के भी दिन फिर जाते हैं। उनका यही मंत्र था कि अपनी धुन में लगे रहो। बस, मैंने भी यही मंत्र जीवन में बाँध रखा था कि अपना काम करते रहो, चीजें मिलें, न मिलें इसकी परवाह मत करो। हर रात के बाद दिन तो आता ही है।
दशरथ माँझी एक बेहद पिछड़े इलाके से आते थे और आदिवासी (ST) जाति के थे। शुरुआती जीवन में उन्हें अपना छोटे से छोटा हक माँगने के लिए संघर्ष करना पड़ा। वे जिस गांव में रहते थे वहाँ से पास के कस्बे जाने के लिए एक पूरा पहाड़ (गहलोर पर्वत) पार करना पड़ता था। उनके गाँव में उन दिनों न बिजली थी, न पानी। ऐसे में छोटी से छोटी जरूरत के लिए उस पूरे पहाड़ को या तो पार करना पड़ता था या उसका चक्कर लगाकर जाना पड़ता था। उन्होंने फाल्गुनी देवी से शादी की। दशरथ माँझी को गहलौर पहाड़ काटकर रास्ता बनाने का जूनून तब सवार हुआ जब पहाड़ के दूसरे छोर पर लकड़ी काट रहे अपने पति के लिए खाना ले जाने के क्रम में उनकी पत्नी फाल्गुनी पहाड़ के दर्रे में गिर गयी और उनका निधन हो गया। उनकी पत्नी की मौत दवाइयों के अभाव में हो गई, क्योंकि बाजार दूर था। समय पर दवा नहीं मिल सकी। यह बात उनके मन में घर कर गई। इसके बाद दशरथ माँझी ने संकल्प लिया कि वह अकेले दम पर पहाड़ के बीचों बीच से रास्ता निकलेगा और अत्री व वजी़रगंज की दूरी को कम करेगा।
दशरथ माँझी काफी कम उम्र में अपने घर से भाग गए और धनबाद की कोयले की खानों में काम किया। अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद ये अपने घर लौटे और 360-फुट-लम्बा (110 मी॰), 25-फुट-गहरा (7.6 मी॰) 30-फुट-चौड़ा (9.1 मी॰)गेहलौर की पहाड़ियों से रास्ता बनाने का फैसला किया। इन्होंने बताया, "जब मैंने पहाड़ी तोड़ना शुरू किया तो लोगों ने मुझे पागल कहा लेकिन इसने मेरे निश्चय को और मजबूत किया।"
इन्होंने अपने काम को 22 वर्षों(1960-1982) में पूरा किया। इस सड़क ने गया के अत्रि और वज़ीरगंज सेक्टर्स की दूरी को 55 किमी से 15 किमी कर दिया। माँझी का प्रयास का मज़ाक उड़ाया गया पर उनके इस प्रयास ने गहलौर के लोगों के जीवन को सरल बना दिया। हालांकि इन्होंने एक सुरक्षित पहाड़ को काटा, जो भारतीय वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम अनुसार दंडनीय है और इन्होंने इस पहाड़ के पत्थर भी बेचे फिर भी इनका ये प्रयास सराहनीय है। बाद में माँझी ने कहा," पहले-पहले गाँव वालों ने मुझपर ताने कसे लेकिन उनमें से कुछ ने मुझे खाना दे कर और औज़ार खरीदने में मेरी मदद कर सहायता भी की"।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली में पित्ताशय(गॉल ब्लैडर) के कैंसर से पीड़ित माँझी का 78 साल की उम्र में, 17 अगस्त 2007 को निधन हो गया।बिहार की राज्य सरकार के द्वारा इनका अंतिम संस्कार किया गया। बाद में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गहलौर में उनके नाम पर 3 किमी लंबी एक सड़क और हॉस्पिटल बनवाने का फैसला किया।
माँझी 'माउंटेन मैन' के रूप में विख्यात हैं। उनकी इस उपलब्धि के लिए बिहार सरकार ने सामाजिक सेवा के क्षेत्र में 2006 में पद्म श्री हेतु उनके नाम का प्रस्ताव रखा। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दशरथ माँझी के नाम पर रखा गहलौर से 3 किमी पक्की सड़क का और गहलौर गाँव में उनके नाम पर एक अस्पताल के निर्माण का प्रस्ताव रखा है।
माउंटेन मैन दशरथ माँझी के पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि (जन्म14 जनवरी 1929– मृत्यु17 अगस्त 2007)
Reviewed by PSA Live News
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2:41:00 pm
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