22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम के बैसरन क्षेत्र में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को दहला दिया। इस हमले में 26 निर्दोष नागरिकों की जान चली गई, जिनमें अधिकांश पर्यटक थे। यह कोई साधारण आतंकी वारदात नहीं थी, बल्कि भारत की सहनशीलता, एकता और अखंडता को खुली चुनौती दी गई है। सवाल अब सिर्फ जवाब देने का नहीं, बल्कि ऐसा सबक सिखाने का है, जो आतंक के सरपरस्तों की रूह तक को कंपा दे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमले के बाद तुरंत उच्च स्तरीय बैठक कर सेना को टारगेट, समय और तरीके तय करने की पूरी छूट दे दी। यह ‘फ्री हैंड’ इस बात का प्रतीक है कि भारत अब रक्षात्मक मुद्रा में नहीं, बल्कि आक्रामक रणनीति के साथ आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक युद्ध के रास्ते पर आगे बढ़ चुका है। सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों की बैठक में मौजूदगी और सीधे कार्रवाई के अधिकार सौंपना इस बात का संकेत है कि भारत अब किसी भी प्रकार की देरी या हिचकिचाहट का खतरा नहीं उठाएगा।
यह पहली बार नहीं है कि पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद ने भारत को इस तरह चोट पहुँचाई है। उरी, पठानकोट, पुलवामा — हर हमले ने देश के जज़्बे को ललकारा है। हर बार भारत ने धैर्य का परिचय दिया, मगर जवाब भी दिया — चाहे वह 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक हो या 2019 का बालाकोट एयर स्ट्राइक। फर्क बस इतना है कि अब भारत का धैर्य खत्म होने की कगार पर है। अब वक्त आ गया है कि आतंक के आकाओं और उनके मददगारों को इस तरह कुचला जाए कि दोबारा भारत की तरफ आँख उठाने से पहले वे सौ बार सोचें।
आज की लड़ाई सिर्फ सीमित सैन्य प्रतिक्रिया की नहीं हो सकती। आतंकवाद के जड़ को उखाड़ फेंकने के लिए व्यापक और बहुआयामी रणनीति अपनानी होगी। पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करना, उसकी आर्थिक नकेल कसना और उसके आतंकी नेटवर्क को जड़ से खत्म करना समय की माँग है। सिंधु जल संधि को निलंबित करने जैसे कठोर कदम उठाकर भारत ने साफ कर दिया है कि अब आर्थिक और कूटनीतिक मोर्चों पर भी कोई कोताही नहीं बरती जाएगी।
हम यह भी नहीं भूल सकते कि आतंकवाद की लड़ाई केवल सेना की नहीं है। यह प्रत्येक भारतीय की लड़ाई है। देशवासियों को अपने सुरक्षाबलों के साथ पूरी दृढ़ता से खड़ा होना चाहिए। राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर आतंकवाद के खिलाफ राष्ट्रीय एकता का प्रदर्शन करना आज की सबसे बड़ी जरूरत है। दुश्मन को यह संदेश स्पष्ट होना चाहिए कि भारत न केवल सीमा पर, बल्कि अपने भीतर भी अटूट और अविचल है।
आतंक के सरगनाओं को उनकी मांद में घुसकर मारना ही पर्याप्त नहीं होगा। उन्हें अंतरराष्ट्रीय न्यायालयों में घसीटना, उनके फंडिंग नेटवर्क को ध्वस्त करना और उन्हें हर मोर्चे पर पराजित करना भी उतना ही जरूरी है। आतंकवाद के खिलाफ यह युद्ध केवल एक देश के खिलाफ नहीं, बल्कि उस मानसिकता के खिलाफ है जो नफरत, हिंसा और निर्दोषों के खून पर पनपती है।
भारत अब निर्णय की उस दहलीज पर खड़ा है, जहां से पीछे हटने का कोई विकल्प नहीं है। अब या तो आतंकवाद मिटेगा, या आतंकवादियों के संरक्षक खुद अपने अंत को बुलावा देंगे। सरकार, सेना और जनता — तीनों को मिलकर इस लड़ाई को अंतिम मोड़ तक पहुँचाना होगा।
अब वक्त जवाब का नहीं, सबक का है। ऐसा सबक, जो आतंक के सौदागरों के लिए सदियों तक चेतावनी बना रहे। भारत चुप नहीं बैठेगा — अब इतिहास बदलेगा।

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