'रूस के तेल' पर प्रतिबंध लगाने वाले यूरोपीय देशों को ही भारत 'रूसी तेल' का शीर्ष आपूर्तिकर्ता बना : आपदा में अवसर
नई दिल्ली । यूक्रेन युद्व के बाद जी7 और यूरोपिय संघ द्वारा रूसी तेल पर प्रतिबंध के बाद से भारतीय तेल उत्पादों पर यूरोप की निर्भरता बढ़ी है, और भारत यूरोप का शीर्ष ईंधन आपूर्तिकर्ता हैं.
यूरोपीय कंट्री फिनलैंड की राजधानी हेलंस्की बेस्ड CREA की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 की पहली तिमाही में भारत लॉन्ड्रोमैट कंट्री को लीड कर रहा है, जो रूसी तेल खरीदते हैं और इसे रिफाइन कर यूरोपीय प्रतिबंधों को दरकिनार करते हुए बेचते हैं. बता दें कि अमेरिका समेत कई नाटो देश युक्रेन को युद्ध में धकेलने के कारण रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए हुए हैं. आर्थिक प्रतिबंध का मकसद रूसी आय के स्रोत में कमी लाना है. इसी कड़ी में यूरोपीय देश रूस से कच्चा तेल नहीं खरीद रहे हैं.
वास्तव में, भारत रूसी तेल को उन्हीं यूरोपीय लोगों को फिर से बेचने में इतना अच्छा हो गया है, जो इसे बहुत कम कीमत पर मास्को से सीधे खरीदने से इनकार करते हैं, कि एशियाई देश इस महीने यूरोप में रिफाइंड ईंधन का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बनने के साथ-साथ खरीदारी करने की राह पर है.
दूसरे शब्दों में, यूरोप अभी भी रूसी तेल खरीद रहा है, पुतिन की सैन्य मशीन को अच्छी तरह से वित्तपोषित रखते हुए, लेकिन एक मध्यस्थ के माध्यम से.
विदित हो कि विकास यूरोपीय संघ के लिए दोधारी है, संघ ने रूस से सीधे प्रवाह को काट दिया है,जो पहले इसके शीर्ष आपूर्तिकर्ता थे, अब डीजल के वैकल्पिक स्रोतों की आवश्यकता है.
एनालिटिक्स फर्म केप्लर से ब्लूमबर्ग द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, एशियाई देश इस महीने यूरोप में रिफाइंड ईंधन खासकर भारत इसका सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बनने की राह पर है, साथ ही साथ रूसी कच्चे तेल की रिकॉर्ड मात्रा भी खरीद रहा है.
अंतरराष्ट्रीय एजेंसी ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट और एनालिटिक्स फर्म Kpler की रिपोर्ट भी CREA की रिपोर्ट से मेल खाती है. रिपोर्ट में यह बताया गया है कि यूरोपीय यूनियन के वो देश जो रूसी तेल पर प्राइस कैप लागू करने का समर्थन करते हैं और तय सीमा से ऊपर तेल व्यापार और बीमा पर रोक लगाते हैं. वही देश प्राइस कैप से ऊपर कीमत पर रूसी तेल खरीद रहे भारत, चीन, तुर्की, यूएई और सिंगापुर यानी 'लॉन्ड्रोमैट' देश से रिफाइन तेल खरीद रहे हैं.
रिपोर्टकेअनुसार 'लॉन्ड्रोमैट' देशों में भारत ने अप्रैल महीने में सबसे ज्यादा रूसी तेल आयात किया है. यह लगातार पांचवां महीना है, जब भारत ने सबसे ज्यादा रूसी तेल आयात किया है.
ज्ञात हो कि लॉन्ड्रोमैट में शामिल देश प्राइस कैप लगाने वाले देशों को लगभग 3.8 मिलियन टन तेल निर्यात करते हैं. इन देशों में यूरोपीय यूनियन, जी-7 कंट्री, ऑस्ट्रेलिया और जापान भी शामिल है.
रिपोर्ट के अनुसार तेल निर्यात में भारत रूसी तेल का कैसे फायदा उठा रहा है, इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि यूक्रेन युद्ध के बाद से भारत का डीजल निर्यात तीन गुना बढ़ा है. मार्च 2023 में भारत ने लगभग 1,60,000 बैरल प्रति दिन डीजल निर्यात किया है. मार्च 2022 से पहले भारत रूस से लगभग एक प्रतिशत कच्चा तेल ही आयात करता था. लेकिन एक ही साल में यह आंकड़ा 35 फीसदी तक पहुंच गया है. फिलहाल रूस लगभग 1.64 मिलियन बैरल प्रति दिन तेल निर्यात के साथ नंबर एक सप्लायर है.
वर्तमान में तेल का निर्यात भारत-यूरोपीय संघ के बीच एक बड़ा ट्रेड व्यापार बन गया है.
CREA की रिपोर्ट में कहा गया है कि गुजरात स्थित दो बंदरगाहों से सबसे अधिक तेल उत्पादों का निर्यात किया जा रहा है. पहला सिक्का बंदरगाह जो रिलायंस के स्वामित्व वाली जामनगर रिफाइनरी की सेवा है. दूसरा वाडिनार बंदरगाह जो नायरा एनर्जी से तेल उत्पादों को निर्यात करता है. नायरा एनर्जी का आंशिक स्वामित्व लगभग 49.13% रूसी कंपनी रोजनेफ्ट के पास है. ये दोनों बंदरगाह रूसी तेल उद्योग के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि चूंकि, किसी तीसरे देश में स्थित तेल रिफाइनरी की मालिक रूसी कंपनी है, तो ऐसे में रोजनेफ्ट या कोई अन्य तेल कंपनियां अपने कच्चे तेल को वाडिनार ले जाने के लिए स्वतंत्र है. वाडिनार में तेल को रिफाइन किया जाता है. भारत इस तेल उत्पाद को प्राइस कैप लगाने वाले देश को ही निर्यात कर सकता है. इसलिए यूरोप को बेचे जाने वाले तेल उत्पाद के लिए 'प्लेस ऑफ ऑरिजन सर्टिफेकेशन' लागू की जानी चाहिए. जिससे रूस को अप्रत्यक्ष लाभ ना मिले।
सीआरईए के अनुसार भारत, जिसने एक तटस्थ विदेश नीति अपनाई है और आक्रमण से पहले रूस का एक प्रमुख व्यापारिक भागीदार रहा है, जी-7 द्वारा मूल्य सीमा लगाए जाने से पहले ही रूसी कच्चे तेल की अपनी खरीद के बारे में कट्टर रूप से मुखर रहा है. भारत की वित्त मंत्री से वाशिंगटन में एक साक्षात्कार में जब पूछा गया था कि क्या भारत यूक्रेन के आक्रमण की प्रतिक्रिया के रूप में लागू किए गए 60 डॉलर प्रति बैरल मूल्य कैप से अधिक रूसी तेल का आयात जारी रखेगा". उन्होंने स्पष्ट किया था, 'हां, 'हमारी आबादी बहुत बड़ी है और इसलिए हमें कीमतों पर भी ध्यान देना होगा जो हमारे लिए वहनीय होगी.'
बता दें कि रूसी-यूक्रेनी युद्ध के परिणामस्वरूप रूसी संघ पर लगाए गए प्रतिबंधों के हिस्से के रूप में , 2 सितंबर, 2022 को जी7 राष्ट्रों के समूह के वित्त मंत्रियों ने एक प्रयास में रूसी तेल और पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत को सीमित करने पर सहमति व्यक्त की. यूक्रेन पर अपने युद्ध को वित्तपोषित करने की रूस की क्षमता को कम करने के साथ ही 2021-2022 की मुद्रास्फीति की वृद्धि को रोकने की उम्मीद करना था. 5 दिसंबर 2022 को यह प्राइस कैप 60 डॉलर प्रति बैरल पर सेट किया गया है.
यूरोपीय संघ ने 1 दिसंबर 2022 को रूसी समुद्री तेल पर प्रारंभिक USD60 बैरल मूल्य कैप सेट करने के लिए एक समायोजन तंत्र के साथ बाजार मूल्य से 5% नीचे कैप रखने के लिए सहमति व्यक्त की थी, जैसा कि अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी द्वारा रिपोर्ट किया गया था, जिसकी समीक्षा हर दो महीने में की जाती है।
जबकि जनवरी 2023 के मध्य मूल्य कैप की समीक्षा अनुसार रूसी यूराल तेल ((रूसी निर्यात मिश्रण)) कैप मूल्य से काफी नीचे व्यापार कर रहा है, रूसी राजस्व को कम कर रहा है, सभी देश इस समय कम कीमत कैप पर समझौता करने के लिए राजनीतिक व्यापार शुरू करने के लिए तैयार नहीं हैं।
उल्लेखनीय हैं कि रूसी अर्थव्यवस्था तेल और गैस करों द्वारा भारी रूप से वित्त पोषित है. 2021 में सभी स्रोतों से रूस का राजस्व 343 बिलियन डॉलर था जिसमें तेल और गैस 127 बिलियन डॉलर प्रदान करता था. 2022 में सभी स्रोतों से राजस्व $358 बिलियन था जिसमें तेल और गैस $166 बिलियन या बजट का 46% प्रदान करते थे. तेल राजस्व एक प्रमुख स्वीकृत लक्ष्य है. रूस द्वारा युक्रेन के साथ शुरू किए युद्ध के खिलाफ वैश्विक उपाय के रूप में रूस के आर्थिक स्रोत को रोकने के लिए G7 और यूरोपीय संघ के देशों ने 2021 के दिसंबर माह के पहले हफ्ते में रूसी समुद्री तेल पर प्रारंभिक मूल्य 60 बैरल कैप पर सहमति जताई थी।
भारत और रूस के एतिहासिक सहयोगी संबंधों के कारण भारत रूस का स्वाभाविक और विश्वसनिय मित्र रहा हैं।
भारत के पेट्रोलियम मंत्रालय और विदेश मंत्रालय ने इस CREA की रिपोर्ट पर अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की है. वहीं, तेल की खरीद पर अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट के बाद बिजनैसमेन आनंद महिंद्रा ने ट्वीट करते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर को टैग करते हुए लिखा, "Hypocrisy की बड़ी कीमत होती है. भारत शुरू से ही अपनी मजबूरियों को लेकर पारदर्शी था।

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