लेखक: अशोक कुमार झा, संपादक - रांची दस्तक एवं PSA Live News
22 अप्रैल की वो रात – जब खूबसूरत कश्मीर लहूलुहान हो गया
22 अप्रैल 2025 की शाम, जब दक्षिण कश्मीर की बैसरन घाटी – जिसे 'मिनी स्विट्जरलैंड' भी कहा जाता है – अपने सबसे हरे-भरे रूप में थी, तभी एक दिल दहला देने वाला हमला हुआ। चार से पाँच आतंकवादी, पुलिस की वर्दी में आए, टूरिस्ट कैंप पर टूट पड़े।
वे पंजाबी में बात कर रहे थे। पहले मुस्कराकर बात की, फिर नाम पूछा। और फिर शुरू हुआ खूनी खेल – पुरुष पर्यटकों को एक-एक कर गोलियों से छलनी कर दिया गया।
हमले के चश्मदीदों के अनुसार,
"15 से 20 मिनट तक गोलियों की बौछार होती रही और फिर आतंकवादी जंगलों में गायब हो गए।"
नृशंसता की इंतिहा: 'तू जा और सरकार को बता...'
इस बर्बर हमले में 26 निर्दोषों की जान गई। इनमें वे नवविवाहित जोड़े भी शामिल थे, जो जीवन की नई शुरुआत करने पहलगाम आए थे।
एक पीड़िता की चीख आज भी रूह को कंपा देती है:
"मैंने आतंकियों से कहा, मुझे भी मार दो... मेरे पति को मार दिया... लेकिन उन्होंने कहा – 'नहीं, तू जा और सरकार को बता क्या हुआ है।'"
कश्मीर को बदनाम करने की साजिश – TRF का खुला एजेंडा
इस हमले की जिम्मेदारी 'द रेजिस्टेंस फ्रंट' (TRF) ने ली – वही आतंकी संगठन जो अनुच्छेद 370 हटने के बाद से घाटी में पाकिस्तान के इशारे पर सक्रिय है। इनका एक ही मकसद है –
कश्मीर में लौटते अमन को तबाह करना, टूरिज्म को डराकर खत्म करना, और स्थानीय रोज़गार की रीढ़ तोड़ना।
क्योंकि आतंकियों को मालूम है कि अगर टूरिज्म फूलेगा – तो नफरत की खेती नहीं हो पाएगी।
क्या यह हमला अंतरराष्ट्रीय मंच को संदेश देने की कोशिश थी?
हमले के समय संयोग से अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भारत यात्रा पर थे। क्या यह हमला उस यात्रा को लेकर था?
क्या ये अमरनाथ यात्रा को अस्थिर करने की साज़िश थी, जो मई-जून से पहलगाम से ही शुरू होनी है?
हर भारतीय के मन में आज यही सवाल हैं – क्या हमारे आतंरिक मामलों को दुनिया की नज़रों में घसीटने की कोशिश हो रही है?
सरकार की सख्ती – अब आर-पार की लड़ाई
गृहमंत्री अमित शाह घटना के 24 घंटे के भीतर श्रीनगर पहुंचे। सेना की चिनार कॉर्प्स ने व्यापक सर्च ऑपरेशन शुरू कर दिया है।
चप्पे-चप्पे पर तैनात सुरक्षाबलों की मौजूदगी बता रही है – अब देश झुकेगा नहीं, बल्कि झुंझलेगा भी नहीं। जवाब देगा, निर्णायक जवाब।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले विदेश यात्रा पर हैं, लेकिन उन्होंने इस हमले पर तुरंत प्रतिक्रिया दी और गृहमंत्री के साथ लगातार संपर्क में बने रहे।
घाटी के लोगों की भी टूटी उम्मीदें
यह हमला सिर्फ बाहरी पर्यटकों पर नहीं, कश्मीर की आत्मा पर वार है। टूरिज्म ही स्थानीय लोगों की आजीविका का मुख्य स्रोत है।
जो आतंकी खुद को कश्मीरी कहते हैं, उन्हीं की हरकतों ने फिर से पूरी घाटी को शक के घेरे में ला खड़ा किया है।
आज आम कश्मीरी भी गुस्से और डर से भरा हुआ है –
"हम नहीं चाहते कि आतंक के नाम पर फिर से हमारा भविष्य बर्बाद हो।"
अब भारत चुप नहीं बैठेगा – यह सामूहिक युद्ध है
26 मासूमों की जान गई – ये सिर्फ आंकड़े नहीं हैं, 26 उजड़े हुए परिवार हैं, जिनकी करुण चीखें देश को विचलित कर रही हैं।
अब वक्त है कि पूरा भारत एकजुट होकर कहे –
"न आतंक स्वीकार है, न आतंकी। हर कुर्बानी का हिसाब होगा – और जल्द होगा!"
यह लड़ाई सिर्फ सरकार की नहीं,
हर भारतीय की है – और इस बार जीत केवल हमारी होगी।

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