विस्तृत समाचार रिपोर्ट:
नई दिल्ली, 22 मई 2025: भारत आने वाले दस वर्षों में चीन को पछाड़कर विश्व का सबसे बड़ा तेल मांग बढ़ाने वाला देश बन जाएगा। यह खुलासा प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूडीज की ताज़ा रिपोर्ट में किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, जहां चीन की तेल खपत अगले पांच वर्षों में चरम पर पहुंचने की संभावना है, वहीं भारत की मांग लगातार तेज़ी से बढ़ती रहेगी, जिससे वह वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य में एक निर्णायक भूमिका निभाने लगेगा।
चीन की सुस्त अर्थव्यवस्था और EVs, भारत को देंगे बढ़त
मूडीज की रिपोर्ट बताती है कि चीन की अर्थव्यवस्था में सुस्ती और वहां इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) की बढ़ती संख्या उसकी तेल मांग को धीमा कर देगी। दूसरी ओर, भारत की तेजी से बढ़ती आबादी, शहरीकरण, उद्योगों का विस्तार और ऊर्जा जरूरतों में इज़ाफ़ा उसकी मांग को निरंतर गति देगा। मूडीज के अनुसार, भारत में अगले दशक तक तेल खपत में सालाना 3-5% वृद्धि देखी जा सकती है।
भारत की तेल कंपनियों के सामने बड़ी चुनौतियां
रिपोर्ट यह भी इंगित करती है कि भारत की यह ऊर्जा वृद्धि चुनौतियों से खाली नहीं होगी। देश की तेल कंपनियां – जैसे ONGC, IOCL, BPCL आदि – अभी भी पुराने कुओं से उत्पादन, कम निवेश, और हरित ऊर्जा की ओर बढ़ते दबाव से जूझ रही हैं। मूडीज ने कहा है कि भारत की राष्ट्रीय तेल कंपनियों (NOC) ने घरेलू उत्पादन बढ़ाने की योजनाएं तो बनाई हैं, लेकिन अमल में धीमापन चिंता का विषय है।
भारत की आयात निर्भरता और ऊर्जा सुरक्षा पर असर
भारत वर्तमान में अपनी कुल कच्चे तेल की खपत का लगभग 85% आयात करता है। यदि घरेलू उत्पादन में गिरावट का रुख जारी रहा, तो यह निर्भरता और अधिक बढ़ सकती है, जिससे देश की ऊर्जा सुरक्षा और चालू खाता घाटे पर प्रभाव पड़ सकता है। वहीं चीन, जो अभी दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है, उसकी घरेलू उत्पादन क्षमता और ऊर्जा रणनीति उसे भविष्य में आयात पर कम निर्भर बना सकती है।
वैश्विक ऊर्जा संतुलन में भारत की भूमिका बढ़ेगी
मूडीज का यह पूर्वानुमान न केवल भारत के लिए, बल्कि वैश्विक तेल बाज़ार के लिए भी अहम है। अब तक जहां चीन ग्लोबल ऑयल डिमांड ग्रोथ को संचालित करता था, वहीं अगले दशक में यह भूमिका भारत के हाथ में होगी। इसका सीधा असर ओपेक देशों की रणनीति, तेल की कीमतों, और भविष्य की ऊर्जा भू-राजनीति पर पड़ेगा।
भारत की ऊर्जा यात्रा अब एक निर्णायक मोड़ पर है। एक ओर वह दुनिया का सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता बनने की दिशा में बढ़ रहा है, वहीं दूसरी ओर उसे घरेलू उत्पादन, हरित ऊर्जा में संतुलन, और आयात पर निर्भरता कम करने की गंभीर चुनौती का सामना भी करना होगा। आने वाले दशक में भारत सिर्फ उपभोक्ता नहीं, बल्कि वैश्विक ऊर्जा नीतियों का सेंटर ऑफ ग्रेविटी बन सकता है।

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