अशोक कुमार झा, प्रधान संपादक, PSA Live News व रांची दस्तक
"जहां लोक सेवा का मतलब केवल व्यक्तिगत लाभ हो जाए, वहां जनता केवल खामोश गवाह बनकर रह जाती है!"
आज झारखंड की यही स्थिति है, जहां लोक सेवा, जनकल्याण और प्रशासनिक जवाबदेही जैसे शब्द केवल फाइलों में रह गए हैं, और सत्ता–प्रशासन का गठजोड़ भ्रष्टाचार की सबसे गहरी सुरंगें खोद चुका है।
"एक प्रशासनिक अफसर की गिरफ्तारी, पूरे तंत्र की गिरफ़्तारी बन सकती है!"
यह वाक्य अब झारखंड की
नौकरशाही पर सटीक बैठता है, जहाँ बीते वर्षों में सत्ता, प्रशासन और कारोबार के गठजोड़ ने न केवल जनता के विश्वास को ठगा, बल्कि लोकतांत्रिक संस्थाओं की आत्मा तक को संक्रमित किया है। ताजा
उदाहरण है – झारखंड के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी विनय कुमार चौबे की
गिरफ्तारी, जिन्हें एंटी
करप्शन ब्यूरो (ACB) ने राज्य के बहुचर्चित शराब
घोटाले में कथित संलिप्तता के आरोप में हिरासत में लिया
है।
कौन हैं विनय कुमार चौबे?
विनय कुमार चौबे झारखंड
कैडर के वरिष्ठ और प्रभावशाली आईएएस अधिकारियों में गिने जाते हैं। वर्तमान में वे पंचायती राज विभाग के प्रधान सचिव हैं और
इसके पूर्व वे स्वास्थ्य, शहरी
विकास, गृह, श्रम, परिवहन सहित कई महत्वपूर्ण विभागों में सेवाएँ दे चुके हैं। अपने प्रशासनिक करियर में वे कई बार
सुर्खियों में रहे — कभी सख्त फैसलों के लिए, तो कभी विवादास्पद निर्णयों के लिए।
उनकी कार्यशैली को लेकर
विभागों में भले ही मतभेद रहे हों, लेकिन प्रशासनिक गलियारों
में वे हमेशा एक रणनीतिक नौकरशाह माने जाते रहे हैं। यही वजह है कि उनकी गिरफ्तारी
को एक आम भ्रष्टाचार विरोधी कार्रवाई नहीं, बल्कि संवेदनशील
सत्ता-तंत्र के झटके के रूप में देखा जा रहा है।
क्या है झारखंड का शराब
घोटाला?
वर्ष 2022 के बाद झारखंड में शराब कारोबार को सरकारी नियंत्रण में लाया गया, जिसके पीछे मंशा थी — अधिक राजस्व, पारदर्शी प्रणाली और संगठित नियंत्रण। लेकिन व्यवहार में यह पूरी व्यवस्था एक सुनियोजित लूट की योजना बनकर सामने
आई।
सरकार को सालाना हजारों
करोड़ का राजस्व मिलना था, लेकिन शराब निगम की रिपोर्ट में घाटा दिखाया गया। फर्जी स्टॉक,
नकली बिलिंग, डंपिंग,
कमीशनबाजी, रिटेल लाइसेंस में धांधली, गोदामों
में स्टॉक के फर्जी आंकड़े,
इन सबने मिलकर एक ऐसा
भ्रष्ट तंत्र खड़ा किया जिसने खजाने को लूटा और उसे नियंत्रित करने वाला तंत्र
आंखें मूंदे रहा।
अब तक की जांचों में यह
स्पष्ट हुआ कि इसमें उच्चस्तरीय प्रशासनिक संरक्षण भी शामिल था। यहीं से चौबे का नाम सामने आता है।
विनय कुमार चौबे की भूमिका पर सवाल
जब यह घोटाला अपने चरम पर
था, तब विनय
कुमार चौबे आबकारी, उत्पाद एवं नीतिगत निर्णयों से जुड़े पदों पर थे। जांच एजेंसियों ने पाया कि:
- कई विवादास्पद ठेकों और आवंटन आदेशों पर
उनका हस्ताक्षर मौजूद है।
- कंपनियों को मनमाने लाभ पहुँचाने वाली फाइलें उनकी
स्वीकृति से आगे बढ़ी थीं।
- कुछ संदिग्ध वित्तीय लेन-देन, प्रशासनिक
पत्राचार और व्हाट्सएप चैट की प्रमाणिकता अब उनके खिलाफ अहम सबूत माने जा रहे हैं।
ऐसे में ACB की यह गिरफ्तारी एक महत्वपूर्ण मोड़ है, लेकिन साथ ही यह सवाल भी उठाती है कि क्या यह कार्रवाई केवल चौबे तक ही सीमित रहेगी?
IAS विनय कुमार चौबे की हालिया गिरफ्तारी ने न केवल सरकार को शर्मसार किया है, बल्कि पूरे राज्य की नौकरशाही को कटघरे में खड़ा कर दिया है। मगर यह
मामला कोई अपवाद नहीं है — यह एक श्रृंखला है, जिसमें झारखंड की मलाईदार कुर्सियों पर बैठे कई बड़े अफसर पहले ही काले कारनामों के
कारण उजागर हो चुके हैं।
IAS पूजा सिंघल —
झारखंड की नौकरशाही की सबसे
शर्मनाक गिरफ्तारी
एमएनरेगा घोटाला, खान आवंटन में घोटाले, और संदिग्ध निवेश में फंसी पूजा सिंघल के रांची आवास से ईडी ने 19.31 करोड़ रुपए नकद बरामद किए थे। सिंघल पर खूंटी और चतरा में 18 से अधिक
फर्जी योजनाओं में फंड डायवर्जन का आरोप
था। झारखंड के सबसे गरीब जिलों में शामिल खूंटी, सिमडेगा,
चतरा जैसे इलाकों में जिन योजनाओं का पैसा दिवालिया ग्रामीणों को
आत्मनिर्भर बनाने के लिए था,
वही पैसा अफसरों के ड्रॉअर
और दलालों के बिस्तरों के नीचे मिला।
यह पहला मौका था जब एक
मौजूदा सचिव स्तर की महिला आईएएस अधिकारी को भ्रष्टाचार के मामले में सीधे जेल
भेजा गया।
राजीव अरुण एक्का — मुख्यमंत्री
के दरबार से जांच एजेंसी के दायरे में
मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव
रहे राजीव एक्का का एक
वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वे एक निजी व्यक्ति को सरकारी फाइलें
सौंपते नजर आ रहे थे। बाद में खुलासा हुआ कि यह व्यक्ति शासन से जुड़ी कई फाइलों
में बिचौलिये की भूमिका निभा रहा था। राज्य
सरकार की छवि पर गहरा धब्बा लगा, लेकिन अब तक की कार्रवाई
केवल जांच के कागजों तक सीमित है।
अब तक उनके खिलाफ किसी ठोस
कानूनी कार्रवाई का अभाव यही संकेत देता है कि जो सत्ता
के ज्यादा करीब होता है,
वो कानून से ज्यादा दूर
खड़ा हो जाता है।
सैयद रजिया – झारखंड कैडर की आईएएस अधिकारी, जिन पर 2010 में मनरेगा घोटाले में शामिल होने के आरोप लगे थे। हालांकि उन्हें
बाद में तकनीकी आधार पर राहत मिली।
प्रशांत कुमार – झारखंड में अवैध खनन और ठेका आवंटन से जुड़े मामलों में इनका नाम
आया। सीबीआई और ईडी दोनों की निगरानी में रहे।
संदीप कुमार – गोड्डा के उपायुक्त के रूप में कार्यरत रहते हुए इन पर जमीन आवंटन और
निर्माण ठेकों में गड़बड़ी के आरोप लगे। जांच लंबित है।
अजय सिंह – झारखंड शिक्षा परियोजना से जुड़े घोटाले में संदिग्ध भूमिका पर सवाल
उठे। बाद में तबादला और विभागीय जांच।
झारखंड की अफसरशाही: सेवा नहीं, सत्ता के
साझेदार
इन मामलों से यह स्पष्ट
होता है कि झारखंड की नौकरशाही का एक वर्ग अब केवल "नियोजन,
निष्पादन और निगरानी" का कार्य नहीं कर रहा, बल्कि यह वर्ग अब सत्ता की नीतियों को मोड़ने, संसाधनों
को हड़पने और योजनाओं को लूटने के लिए
जिम्मेदार हो गया है।
सरकारी निविदाओं में
कमीशनबाजी, पदों का दुरुपयोग, संपत्ति का बेहिसाब विस्तार, जमीन सौदे और बिचौलियों से गठजोड़ — यह सब अब राज्य की नौकरशाही
की नई पहचान बन गई है।
एक राज्य जहां खनिज, जंगल, जल और
जनशक्ति भरपूर है, वहां सरकारी योजनाएं
कागज़ों में पूरी और जमीनी स्तर पर अधूरी रहती हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है — प्रशासनिक भ्रष्टाचार।
मनरेगा, आवास योजना, पेंशन, स्वास्थ्य उपकरण खरीद, स्कूल निर्माण,
सड़कें, जल-निकासी, खनन पट्टे, बालू घाट — किसी भी योजना या सेवा को लें, हर जगह
कमीशन, दलाली, और
घोटालों की परतें दिखेंगी। कारण, यहाँ के IAS अफसर अब नीति निर्माता नहीं, बल्कि नीति व्यापारी बन चुके
हैं।
क्या ACB स्वतंत्र है?
इस कार्रवाई ने यह बहस भी
छेड़ दी है कि क्या ACB जैसी एजेंसियां राजनीतिक इशारों पर कार्रवाई करती हैं
या ईमानदारी से काम कर रही हैं? क्योंकि झारखंड में कई अन्य घोटाले भी उजागर हो
चुके हैं — माइनिंग, एमजीएनरेगा, बालू घाटों की लीजिंग, स्वास्थ्य
उपकरण, सोलर पैनल, विद्यालय
निर्माण आदि, लेकिन कार्रवाई कुछ ही चेहरों पर होती है।
यदि ACB ईमानदारी से और बिना दबाव के कार्य करती है, तो आने वाले दिनों में कई और बड़े नाम सामने आ सकते हैं।
क्या केवल अफसर दोषी हैं? या पूरा तंत्र सड़ा हुआ है?
यह मान लेना मूर्खता होगी
कि एक आईएएस अधिकारी अकेले पूरे तंत्र को गुमराह कर सकता है। हकीकत यह है कि हर घोटाले के पीछे नेताओं का संरक्षण, दलालों की लॉबी, मीडिया
में चुप्पी और सिस्टम की शह शामिल रहती है।
IAS अफसर सिर्फ मोहरा हैं, असली खिलाड़ी वे लोग हैं जो सत्ता में बैठे हैं और इन अफसरों से
मनमानी नीतियां लागू करवाते हैं।
जनता का प्रश्न: क्या कार्रवाई केवल कुछ नामों तक सीमित रहेगी?
पूजा सिंघल और विनय चौबे
जैसे अफसरों पर कार्रवाई के बावजूद एक सवाल कायम है कि क्या पूरे सिस्टम पर चुप्पी एक सोची-समझी रणनीति है? क्योंकि
अगर घोटाले होते हैं, तो एक सचिव अकेले नहीं करता। उसमें निचले से ऊपरी
स्तर तक पूरा तंत्र शामिल होता है — अधिकारी, ठेकेदार, राजनेता और सरकारी एजेंसियां।
क्या उन सब पर भी कार्रवाई
होगी?
क्या हर घोटाले का सिर्फ एक
'चेहरा' मीडिया
के लिए पेश करके मामला बंद कर दिया जाएगा?
क्या भ्रष्टाचार की बुनियाद
को जड़ से हटाने का कोई राजनीतिक-संवैधानिक इच्छाशक्ति राज्य में है?
यह समय झारखंड के लिए एक
निर्णायक मोड़ है। अगर इस बार भी कार्रवाई केवल चेहरों तक सीमित रही, तो आने वाले समय में न केवल जनता का विश्वास टूटेगा, बल्कि राज्य की निवेश, विकास और सुशासन की संभावनाएं भी खत्म हो जाएंगी।
जरूरत है:
- भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियों को पूर्ण स्वतंत्रता और
संसाधन देने की।
- प्रशासनिक कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने
की।
- घोटालों के दोषियों को राजनीतिक संरक्षण से बाहर कर न्याय
के दायरे में लाने की।
- एक उच्च स्तरीय स्वतंत्र जांच आयोग के
गठन की, जो पिछले 10
वर्षों के भ्रष्टाचार मामलों की
समीक्षा करे।
लोकतंत्र का मतलब सिर्फ चुनाव नहीं होता, बल्कि जवाबदेही भी होता है!
झारखंड जैसे जनजातीय, खनिज और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राज्य में यदि IAS अधिकारी करोड़ों की लूट के लिए अपनी कलम बेचते हैं, तो यह लोकतंत्र की सबसे भयावह त्रासदी है। ऐसे में सिर्फ गिरफ्तारी
नहीं, पूरे सिस्टम का शुद्धिकरण आवश्यक है।
आज आवश्यकता है ईमानदार प्रशासकों के साथ जनता की भागीदारी और सशक्त मीडिया की — जो हर भ्रष्टाचार की परत उधेड़े, भले वह किसी भी सत्ता या
कुर्सी से जुड़ी हो।
झारखंड की जनता अब थक चुकी
है। हर बार जब घोटाला होता है,
कुछ दिन बाद किसी IAS का नाम सामने आता है, मीडिया हल्ला मचाता है, और फिर मामला ठंडा हो जाता है। क्या इस बार भी ऐसा ही होगा?
- क्या विनय कुमार चौबे, पूजा सिंघल, राजीव एक्का जैसे नामों तक ही कार्रवाई सीमित रहेगी?
- क्या अब तक इन अफसरों से लाभ लेने वाले राजनेता भी
कभी कटघरे में खड़े होंगे?
- क्या झारखंड सरकार खुद कोई उच्चस्तरीय स्वतंत्र जांच आयोग बनाएगी?
लोकतंत्र की लाचारी: जनता देख रही है, मगर कहां है उसकी आवाज़?
जब अफसरशाही ग़ुलाम बन जाए, न्यायपालिका मौन हो,
मीडिया बिक जाए और सरकार
रक्षा के बजाय मूकदर्शक बनी रहे —
तो लोकतंत्र केवल एक खोखली अवधारणा बनकर रह
जाता है। झारखंड का लोकतंत्र आज उसी दौर से गुजर रहा है।
झारखंड को केवल नाम बदलने, घोषणाएं करने या योजनाएं लाने की जरूरत नहीं है। उसे चाहिए:
- एक निडर प्रशासनिक व्यवस्था,
- एक प्रेस जो सत्ता से सवाल कर सके,
- एक जनता जो अपने अधिकार को सिर्फ वोट तक सीमित न रखे,
- और एक राजनीति जो सेवा से शुरू और जवाबदेही पर खत्म हो।
झारखंड के लिए यह अवसर है — या तो पूरा तंत्र शुद्धिकरण की ओर बढ़े, या फिर यह राज्य भ्रष्टाचार की स्थायी राजधानी बन जाए।
आज झारखंड की भोली भाली जनता पूछ रही है कि क्या इस बार सचमुच बदलाव होगा, या फिर
एक और घोटाला गुमनामी के अंधेरे में खो जाएगा? किसे सजा मिलेगी — मोहरे को या बादशाह को भी ?
आज झारखंड
को आत्मशुद्धि की जरूरत है — व्यवस्था
बदलने की नहीं, उसे ईमानदार बनाने की
अंत में केवल एक सवाल यह बचता है कि क्या झारखंड
का लोकतंत्र अब भी ज़िंदा है, या वह भी
इन गिरफ्तारियों की तरह कैद हो चुका है?

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