590 हीटवेव दिवसों की चिंताजनक रिपोर्ट, 300% की वृद्धि – सीड की चेतावनी
रांची, 27 मई 2027 – जलवायु परिवर्तन के गंभीर दुष्प्रभावों का सामना कर रहे झारखंड में अब हीटवेव कोई असामान्य घटना नहीं रही, बल्कि एक नियमित, घातक और सामाजिक-आर्थिक चुनौती बन चुकी है। इसी चिंताजनक परिदृश्य के बीच, सेंटर फॉर एनवायरनमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट (सीड) द्वारा आज एक अहम स्टेकहोल्डर कंसल्टेशन का आयोजन किया गया, जहां झारखंड के जलवायु खतरे विशेषकर उष्ण लहर (हीटवेव) पर गहराई से चर्चा हुई और क्षेत्रीय एक्शन प्लान तैयार करने की आवश्यकता को प्राथमिकता दी गई।
कार्यक्रम में सीड ने अपनी शोध रिपोर्ट 'स्कॉर्चिंग रियलिटी: राइजिंग हीटवेव्स इन इंडिया – द केस ऑफ झारखंड' को सार्वजनिक किया। इस रिपोर्ट में वर्ष 1990 से 2024 के बीच झारखंड में कुल 590 हीटवेव दिन दर्ज किए गए हैं – जो इस अवधि में 300% वृद्धि को दर्शाते हैं। विशेष रूप से मई महीने में सबसे अधिक 275 दिन, अप्रैल में 183 और जून में 132 हीटवेव दिवस दर्ज किए गए। क्षेत्रीय स्तर पर गढ़वा, पलामू, लातेहार और सिमडेगा जैसे जिले सर्वाधिक प्रभावित पाए गए हैं, जबकि गोड्डा और साहिबगंज जैसे जिलों में तुलनात्मक रूप से कम प्रभाव देखा गया।
हीटवेव: अब एक सार्वजनिक स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा संकट
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए श्री ए.के. रस्तोगी (आईएफएस, सेवानिवृत्त), अध्यक्ष, टास्क फोर्स–सस्टेनेबल जस्ट ट्रांजिशन (झारखंड सरकार) ने कहा कि, "हीटवेव अब केवल तापमान की समस्या नहीं रही, यह गरीबों, मजदूरों और वंचित तबकों के लिए जानलेवा चुनौती बन गई है। हमें तत्काल जिलेवार एक्शन प्लान, अध्ययन और सुरक्षा उपायों की ओर बढ़ना होगा।"
श्री रवि रंजन (आईएफएस), स्टेट नोडल ऑफिसर फॉर क्लाइमेट चेंज (झारखंड सरकार) ने भी इस पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा, "झारखंड स्टेट क्लाइमेट एक्शन प्लान में हीटवेव को शीर्ष प्राथमिकताओं में शामिल किया गया है। हमें शॉर्ट-टर्म इमरजेंसी प्लान और लॉन्ग-टर्म रेसिलिएंस दोनों को साथ लेकर चलना होगा।"
सामाजिक और वैज्ञानिक पहलुओं को जोड़ने की जरूरत
सीड के सीईओ श्री रमापति कुमार ने इस मुद्दे पर व्यापक समन्वय की मांग करते हुए कहा, "जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध लड़ाई में केवल सरकार नहीं, बल्कि हर नागरिक, संस्थान और समुदाय की भूमिका अहम है। हमें साइंटिफिक डेटा, लोकल नॉलेज और सामुदायिक अनुभवों को एक साथ जोड़ना होगा ताकि नीति से लेकर जमीनी क्रियान्वयन तक प्रभावी कदम उठाए जा सकें।"
डॉ. अभिषेक आनंद, डायरेक्टर, मौसम विज्ञान केंद्र, रांची ने रिपोर्ट की वैज्ञानिक वैधता को रेखांकित करते हुए कहा कि "हीटवेव की बढ़ती आवृत्ति एक स्थापित ट्रेंड है, जो जलवायु परिवर्तन के स्पष्ट प्रमाणों में शामिल है। इसके लिए नीति, शोध और जनसंवाद – तीनों जरूरी हैं।"
डॉ. गीता साइम्स, पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट ने बताया कि अत्यधिक गर्मी अब स्वास्थ्य आपातकाल का रूप ले रही है, विशेषकर ग्रामीण इलाकों के लिए। “तेज गर्मी से हृदयाघात, डिहाइड्रेशन, हीट स्ट्रोक जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं, और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर दबाव कई गुना बढ़ गया है,” उन्होंने कहा।
रिपोर्ट और कंसल्टेशन से निकले प्रमुख सुझाव:
- जिला स्तर पर हीट एक्शन प्लान बनाना अनिवार्य
- अर्बन और रूरल कूलिंग रणनीतियाँ विकसित करना
- स्वास्थ्य सेवा ढांचे को उन्नत करना, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में
- पेयजल और बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करना
- सार्वजनिक स्थलों पर छाया व हरियाली बढ़ाना
- स्कूलों, निर्माण स्थलों व मंडियों में सुरक्षात्मक उपाय लागू करना
- सभी सरकारी विभागों, संस्थानों, NGOs और सामुदायिक संगठनों के बीच मजबूत समन्वय बनाना
झारखंड अब जलवायु संकट के सामने खड़ा है। सिर्फ चेतावनी जारी कर देना पर्याप्त नहीं होगा। अब वक्त है कि राज्य सरकार, स्थानीय प्रशासन, संस्थान और आम जनता मिलकर ठोस, वैज्ञानिक, समावेशी और त्वरित एक्शन लें।
हीटवेव की यह 'स्कॉर्चिंग रियलिटी' हमें चेतावनी दे रही है— और इस बार हमें सच में सुनना और कार्य करना होगा।

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