शरद् पूर्णिमा की रात्रि — लक्ष्मी प्राप्ति का दिव्य अवसर, दिव्यदेशम् श्रीलक्ष्मी वेंकटेश्वर मंदिर में होगा विशेष आयोजन
राँची। भक्ति, साधना और आध्यात्मिक उन्नति का पर्व — शरद् पूर्णिमा — इस वर्ष 6 अक्टूबर (सोमवार) की रात्रि में धूमधाम से मनाया जाएगा। यह वही रात है जिसे ‘कोजागरी पूर्णिमा’ भी कहा जाता है — अर्थात वह रात जब माता लक्ष्मी स्वयं पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और यह देखती हैं कि कौन जागकर उनकी आराधना में लीन है।
इसी पावन अवसर पर दिव्यदेशम् श्रीलक्ष्मी वेंकटेश्वर (तिरुपति बालाजी) मंदिर, राँची में भव्य धार्मिक आयोजन की तैयारी पूरी कर ली गई है।
आध्यात्मिक महिमा और महत्व
शास्त्रों में वर्णित है कि शरद् पूर्णिमा की रात्रि साधना के लिये सर्वोत्तम मानी जाती है, क्योंकि यह रात्रि आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण होती है। ऐसा कहा जाता है कि इस रात चंद्रमा से अमृत की वर्षा होती है, जो शरीर, मन और आत्मा — तीनों को पवित्र कर देती है।
यह रात साधकों के लिए केवल उपासना नहीं, बल्कि लक्ष्य, संयम और साधना के उच्च आदर्शों को जगाने का प्रतीक है।
दिव्यदेशम् मंदिर में विशेष कार्यक्रम
श्रीलक्ष्मी वेंकटेश्वर मंदिर के पुजारियों के अनुसार, शरद् पूर्णिमा रात्रि व्यापिनी होने के कारण सोमवार 6 अक्टूबर को ही मनायी जाएगी।
इस अवसर पर मंदिर में शाम से ही भक्तिमय कार्यक्रमों की श्रृंखला आरंभ होगी।
कार्यक्रम का विवरण इस प्रकार है —
- रात्रि 8:00 बजे से श्रीहरिनाम संकीर्तनम् एवं भजन प्रारंभ होंगे।
- इसके उपरांत भक्तगण सामूहिक रूप से श्रीविष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करेंगे।
- फिर रात्रि में ‘तिरु आराधना’ और ‘शयन आरती’ सम्पन्न करायी जाएगी।
- आरती के पश्चात् शर्करायुक्त दूध से बनी खीर को चाँदनी की शीतल किरणों में, श्रीगरुड़ ध्वज (परम स्थान) बलि पीठम् के पास पूरी रात रखा जाएगा।
पंडितगण बताते हैं कि यह खीर चंद्रमा की अमृतमयी किरणों से सिक्त होकर अमृततुल्य प्रसाद बन जाती है। अगले दिन अर्थात मंगलवार की सुबह, इस ‘चंद्र अमृत खीर’ को भक्तों में प्रसाद स्वरूप वितरित किया जाएगा।
स्नान-दान और उपवास का विशेष महत्व
अगले दिन, मंगलवार को स्नान-दान की पूर्णिमा भी रहेगी। इस दिन सुबह विधिपूर्वक स्नान कर उपवास रखना, दान देना और लक्ष्मी-नारायण की आराधना करना अत्यंत पुण्यकारी माना गया है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन जो व्यक्ति जितेंद्रिय भाव से, अर्थात इंद्रियों को संयमित रखकर साधना करता है, उसे माता लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
महालक्ष्मी का रात्रि भ्रमण
शास्त्रों के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात देवी महालक्ष्मी अपने करकमलों में ‘वर’ और ‘अभय’ लिए निशीथ काल में भूतल पर विचरण करती हैं। वे मन ही मन संकल्प करती हैं —
“इस समय कौन जाग रहा है? कौन मेरी पूजा में लगा है? जो भी जागकर मेरी उपासना कर रहा है, मैं उसे आज धन और ऐश्वर्य का वर दूँगी।”
इसलिए इस रात को जागरण और पूजन की रात कहा गया है। जो भक्त पूरी श्रद्धा से इस व्रत का पालन करते हैं, उनके जीवन में समृद्धि, शांति और सौभाग्य स्थायी रूप से प्रवेश करते हैं।
भक्तों में उत्साह
मंदिर प्रबंधन समिति के अनुसार, इस बार शरद् पूर्णिमा पर सैकड़ों श्रद्धालुओं के पहुंचने की संभावना है। मंदिर परिसर को आकर्षक फूलों और दीपों से सजाया गया है।
भक्तों के लिए विशेष प्रसाद वितरण, दूध-दर्शन व्यवस्था और रात्रि भजन संध्या का आयोजन भी होगा।
भक्तों में भारी उत्साह देखा जा रहा है। कई लोग इसे वर्ष की सबसे पवित्र और प्रभावशाली रात्रि मानते हैं। श्रद्धालु पूरे दिन उपवास रखकर रातभर जागरण और नामस्मरण करेंगे।
शरद् पूर्णिमा की रात्रि केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और दिव्यता से जुड़ने का एक अवसर है।
यह वह क्षण है जब आस्था और अमृत का संगम होता है — जब चंद्रमा की शीतल किरणें भक्ति के महासागर को आलोकित करती हैं, और जब मनुष्य अपने भीतर के प्रकाश से मिलन करता है।
“शरद् पूर्णिमा की चाँदनी में रखा गया खीर अमृत बन जाता है, और जाग्रत भक्ति से भरा हृदय — लक्ष्मीमय।” 🌕✨

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