भगवान राम के राज्याभिषेक का तुलसीदास ने ख़ूबसूरती से रामचरितमानस में वर्णित किया: शास्त्री दिलीप दास त्यागी
श्रद्धालुओं ने 1,40,000 से अधिक बार हनुमान चालीसा का पाठ किया
यज्ञ और हवन की आहुतियां के साथ आठ दिवसीय श्री हनुमान चालीसा पाठ अनुष्ठान का समापन
रांची। दीनदयाल बिरदु संभारी, हरहु नाथ मम संकट भारी...चौपाई का जिक्र करते हुए श्री श्री नरसिंह बांध बालाजीधाम बर्नपुर से आए संतोष भाई जी ने कहा कि संकट निवारण के लिए इससे बढ़िया कोई पाठ पाठ नहीं हो सकता। नौ दिवसीय अखंड सवा लाख श्री हनुमान चालीसा पाठ का मंत्र देते हुए शिष्यों को नियमित हनुमान चालीसा पाठ करने के लिए प्रेरित किया। पिछले 8 दिनों के दौरान श्रद्धालुओं ने 1,40,000 से अधिक श्री हनुमान चालीसा का पाठ किया। संकट कटे मिटे सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा और बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होए हमारो... चौपाइयों का भी पाठ बहुत प्रभावी माना गया है।
यह चौपाई हनुमान जी के नाम का स्मरण करने से सभी कष्टों और पीड़ा दूर करने का मंत्र हैं।
आयोजन स्थल पर हवन और यज्ञ के साथ पिछले 8 दिनों से जारी धार्मिक अनुष्ठानों का समापन हो गया। आसनसोल से आए पंडित दिलीप शास्त्री द्वारा 31 जोड़ों से हवन में मंत्रोंचारण के साथ आहुतियां डलवाई गई। सुबह 7 बजे मुख्य जजमान अनिल और शोभा अग्रवाल के साथ अरविन्द सिंह ने सपत्नीक पूजा-अर्चना, पूर्णाहुती हवन आरती करवाई। सभी 31 जोड़ों ने हवन में आहुति दीं। गुरुवार को भंडारे का आयोजन अजय जैन, संतोष अग्रवाल,अशोक मंगल और रितेश पाण्डेय द्वारा किया गया।
सात दिवसीय श्री राम कथा का समापन भगवान श्री रामचंद्र के राज्याभिषेक के साथ हुआ। अयोध्या से आए दिलीप दास त्यागी ने कहा कि भगवान् श्री राम पूरे 14 वर्ष के वनवास के बाद जब अयोध्या आये तो अयोध्यावासियों ने उनका भव्य स्वागत किया। पूरी अयोध्या दुल्हन की तरह सजाई गयी। मुनि श्री वशिष्ठ ने उनका राज्य तिलक किया।रावण को हराकर अयोध्या लौटने पर श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण के राज्याभिषेक की तैयारी गुरु वशिष्ठ के आदेश पर ही शुरू हुई। सुमन बृष्टि नभ संकुल भवन चले सुखकंद। अयोध्या नगरी को रंग-बिरंगे फूलों से सजाया गया और दीप माला कर भगवान का स्वागत किया गया। अयोध्या में जश्न का माहौल था। जिसे बेहद ख़ूबसूरती से तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में वर्णित किया। चढ़ी अटारिन्ह देखहिं नगर नारी नर बृंद।।इसका अर्थ है, आनंदकांद श्री राम जी अपने महल को चले। आकाश फूलों की दृष्टि में छा गया। नगर के स्त्री पुरुषों के समूह अटारियों पर चढ़कर उनके दर्शन कर रहे हैं।कंचन कलस बिचित्र संवारे। सबन्हि धरे सजि निज निजद्वारे ।।बंदनवार पताका केतू। सबन्हि बनाए मंगल हेतू ।।इसका अर्थ है,सोने के कलशों को विचित्र ढंग से अलंकृत करके सब लोगों ने अपने अपने दरवाज़े पर रख दिया। सभी लोगों ने मंगल के लिए बंदनवार, पताका और ध्वज लगाए।श्री राम के राज्याभिषेक प्रसंग का वर्णन करते हुए समापन किया। उन्होंने भगवान श्री रामचंद्र का राज्याभिषेक प्रसंग का आलोकिक वर्णन किया। मुख्य यजमान अशोक धानुका ने महाराजश्री की चरण वंदना कर विदा किया।
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4:21:00 pm
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