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राष्ट्र की रक्षा के लिए सेना के बाद दूसरा स्थान पत्रकार का आता है - राजू चारण

 बाड़मेर ।  अधिमान्यता केवल उन पत्रकारों के लिए है जो सरकारी दामाद बनना चाहते है ,बाकि ईमानदारी से पत्रकारिता करने के लिए आपको कही पर भी पंजीयन या अनुमति लेने की जरुरत नहीं पडती है | आप जिस प्रिंट मिडिया तंत्र से जुड़े है उसके लिए ही आर एन आई पंजीयन जरुरी है | यदि इलेक्ट्रानिक मिडिया से जुड़े हुए हैं  तो केवल आईडी कार्ड  होने से नहीं बल्कि यह भी जांच  लीजिये की उनका लायसेंस सरकार द्वारा वैध है या नहीं |



आजकल के हालात को देखकर लगता  है कि हमारी बाड़मेर पुलिस विभाग के कर्मचारी इस गलतफहमी में है कि पत्रकारिता के लिए लाइसेंस पब्लिक पार्क के सामने जनसम्पर्क विभाग द्वारा जारी होतें है , आश्चर्य्य है कि जिले के सरकारी अधिकारियों द्वारा इतनी मुर्खता पूर्ण बात कर सकता है कि बाड़मेर जिले में कौन  कौन से पत्रकार हैं और कौन पत्रकार नहीं इसका निर्णय जनसंपर्क विभाग करता है | जन सम्पर्क विभाग के पास केवल जिला मुख्यालय के ही पत्रकारों की सूचि रहती है और यह सूची केवल सरकारी योजनाओं और सरकारी कार्यक्रमों को जनता तक पहुँचाने के लिए होती है | इन्हें इस बात के लिए इन पत्रकारों की जीहुजूरी करने के लिए बाकायदा सरकार से समयानुसार बजट भी मिलता है , जिससे पत्रकरों को पटाया जा सके | कुल मिलकर जनसंपर्क विभाग सरकार का मिडिया मैनेजमेंट का हिस्सा होता है |


आज कल जागरूक लोगों ने भारतीय पत्रकारिता परिषद से सूचना का अधिकार से प्राप्त किया गया दस्तावेज है , जिसमे स्पष्ट है कि कोई पत्रकार है या नहीं यह तय करने की एजेंसी जनसम्पर्क विभाग नही है | साथ ही यह भी कि कोई दुसरा भी ऐसी कोई सरकारी एजेंसी राज्य में नहीं है जो यह तय करे कि आपके यहाँ पर पत्रकार कौन हो सकता है | यह तो विधिवत चल रहे मिडिया संस्थानों द्वारा जारी नियुक्ति पत्र और आईकार्ड ही तय करता है | 


साथ ही अधिमान्यता की स्थिति यह है की यह फिल्ड से दूर बुजुर्ग हो चुके वरिष्ठ पत्रकारों , राजधानी के टेबल रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों , अख़बार मालिकों , दैनिक अख़बारों के संपादकों और नेताओं की सूची बनकर रह गयी है | किन्तु आदरणीय वरिष्ठ साथियों को किसी भी प्रकार की सुविधा पाने का सरकार द्वारा पूरा हक़ है ।


आज-कल अधिमान्यता विरोधी संघ बनाइये , उसी में शामिल रहने से ही इज्जत है | जो सच लिखना चाहतें है , सरकार किसी की भी रहे , उनका इस संघ में स्वागत है | कम से कम पुलिस को पत्रकारिता नापने या जांचने का अधिकार अभी तक तो है ही नहीं |


भारतीय संविधान के तहत प्रत्येक नागरिक को न केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत अपने विचार बनाने से पहले हर प्रकार की बात जानने का और  उसके प्रकट करने का अधिकार प्राप्त है | इसी अधिकार के तहत प्रत्येक नागरिक पत्रकारिता कर सकता है | कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक जनता के सिर्फ नौकर है , इन्हें हमारे हर प्रश्न का जवाब देना होता है | 


शासन भी अपना है , राज्य में सत्ता किसी भी पार्टी की क्यों ना हो | हर घटना - दुर्घटना , अपराध और ताजा स्थिति जानने के लिए आप अपने एस पी और कलेक्टर , कंट्रोल रूम  को फोन व मेल | उनकी जवाबदारी है की वे आपकी जिज्ञासा शांत करने की उचित व्यवस्था करें | इसी तरह आप  नीति - नियम , सरकारी योजनाओं की जानकारी सीधे कलेक्टर से जान सकते है | इसके लिए आप को पत्रकार का परिचय पत्र लेने या दिखाने की कोई जरुरत नहीं है |  न ही पत्रकार होने का मतलब कोई तोपचंद होता है  | बिना आपकी अनुमति के कोई भी पत्रकार न तो फोटो ले सकता है ना ही आपका इंटरव्यू अपने मोबाइल फोन पर रिकार्ड कर सकता है | 

 

राष्ट्र की रक्षा के लिए सेना के बाद दूसरा स्थान पत्रकार का आता है. अपनी कलम की ताकत से वह भ्रष्टाचार एवं देश की सुरक्षा पर सेंध लगाने के लिए गिद्ध की तरह नजर गढ़ाए बैठे असामाजिक तत्वों पर अपनी पैनी नजर रख उन्हें उजागर करता है. लेकिन कभी-कभी कलम के सिपाही पत्रकार की खुद की जिंदगी खतरे में पड़ जाती है। सत्य को उजागर करने पर कई लोग उसके जान के दुश्मन बन जाते हैं उसमें आजकल सबसे ज्यादा उनके पत्रकार साथी भी हो सकतें है।


विडंबना यह है कि सेना के पास तो आत्मरक्षा के लिए हथियार है लेकिन पत्रकार के पास केवल कलम जो सत्य उजागर करने के लिए तो एक सशक्त हथियार है लेकिन आत्मरक्षा के लिए नहीं. जब कोई उसकी हत्या के इरादे से उसे निशाना बनाता है तो वह आत्मरक्षा में असमर्थ होता है. पत्रकार को अपना कार्य करते समय यदि कोई मारता है तो मरने के बाद उसे वो सम्मान प्राप्त नहीं होता जो एक सैनिकों को प्राप्त होता है जबकि दोनों का काम जोखिमपूर्ण और राष्ट्रवाद से ओत प्रोत होता है ।


दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दावा करने वाले भारत में अभी तक पत्रकारों को सुरक्षा प्रदान करने वाला कोई ठोस कानून नहीं बना हुआ है. सत्य की कलम से लिखने वाले पत्रकारों पर मौत का साया हरदम मंडराता रहता है और कई पत्रकारों को अकाल मौत भी हुआ है l


पत्रकारों की सुरक्षा से संबंधित कानून को जब भी लाने की बात की गई तो उस पर कभी भी गंभीरता से विचार नहीं किया गया. आखिर ऐसा क्या है जो देश की सत्ता पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं होने देती क्यों कानून लाने की बात पर वह चुप्पी साध लेती है. भारत के संविधान में जहां सूचना लेने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है, वहां इस अधिकार के कई बार हनन के बावजूद सरकार क्यों कुछ नहीं करती क्या यह लोकतंत्र और मौलिक अधिकारों पर प्रश्न चिन्ह नहीं है ।


पत्रकारिता की नींव राष्ट्रवाद समाज के सही दिशा निर्माण और लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए रखी गई थी। पत्रकारों को संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों की धारा 19,1 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। इसी के तहत वह निर्भीकतापूर्वक अपनी बात को देश के सामने रखता है। लेकिन पत्रकारों की इस स्वतंत्रता को आजकल चोट पहुंचाई जा रही है और उसकी आवाज को दबाने का पुरजोर प्रयास किया जा रहा है। यह संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकार का उल्लंघन तो है ही लोकतंत्र पर भी आघात है। यदि इसी तरह पत्रकारों पर हमलों की घटनाएं होती रही तो बहुत कम पत्रकार निर्भीक छवि वाले इस जहाँ में बचेंगे। ऐसी स्थिति में लोकतंत्र का चैथा स्तंभ भी लड़खड़ा जाएगा। आज पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और इससे सम्बन्धित उपयोगी कानून लाने की जरूरत है जिससे पत्रकार निर्भीकतापूर्वक अपने विचार अखबारों में व्यक्त कर सकें।

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