सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के विरुद्ध रांची विश्वविद्यालय में कुलपति के पद पर नियुक्त अजित कुमार सिन्हा की योग्यता और नियुक्ति जाँच की माँग: इंदरजीत सिंह
रांची । छात्र नेता NSUI के प्रदेश उपाध्यक्ष इंद्रजीत सिंह की ओर से मुख्यमंत्री, झारखंड राज्य के नामे परिवाद पत्र दायर किया है, जिसमें रांची विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ अजीत कुमार को कुलपति पद के अयोग्य ठहराते हुए
साक्ष्य दिए गए हैं। इसमें साक्ष्यों के आधार पर आरोप लगाया गया है कि रांची विश्वविद्यालय सहित अन्य विश्वविद्यालयों में कुलपति के रिक्त पद के लिए 23 फरवरी 2018 को विज्ञापन जारी किया गया था। इसके तहत डॉ सिन्हा 10 वर्षों का प्रोफेसर या समतुल्य पद पर कार्य करने की योग्यता नहीं रखते हैं।
परिवाद पत्र में आरोप लगाया गया है कि 27 मार्च 2014 को इंटरनेशनल सेरीकल्चर कमिशन, भारत सरकार को अजित कुमार सिन्हा की ओर से प्रेषित स्वहस्ताक्षित बायोडाटा में साइंटिस्ट डी के रूप में पदस्थापित होने की पुष्टि की गई है। डॉ सिन्हा को साइंटिस्ट डी के रूप में सरकार की ओर से निर्धारित अधिकतम वेतनमान 15600-39100, पे बैंड ग्रेड पे- 8700 है। सेवानिवृत्ति के समय उनका स्वप्रमाणित अधिकतम वेतनमान लेवल 13 तक ही रहा। प्रोफेसर के लिए निर्धारित वेतनमान लेवल 14 का कार्यानुभव उन्हें नहीं रहा। जबकि कुलपति पद के लिए जारी विज्ञापन में 10 वर्षों का प्रोफेसर या समतुल्य पद कार्यानुभव वांछित है, जो इनके अभिलेखों से पुष्ट नहीं होता। इस आधार पर डॉ अजीत कुमार सिन्हा प्रति कुलपति के लिए निर्धारित न्यूनतम योग्यता के दायरे में भी नहीं आते। जबकि, वह रांची विश्वविद्यालय का कुलपति बनने से पूर्व दो वर्षों तक विनोबा भावे विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति रहे।
डॉ अजित कुमार सिन्हा सेंट्रल तसर रिसर्च एंड ट्रेनिंग सेंटर, रांची में लगभग दो वर्ष पांच महीने तक निदेशक पद पर रहे। वहां से 60 साल की उम्र में 31 अगस्त 2018 में सेवानिवृत्त हुए। निदेशक पद का अधिकतम वेतनमान 5600-39100, पे बैंड ग्रेड पे- 8700, रहा था, जो सातवें वेतनमान के अनुसार लेवल 13 तक रहता है। डॉ सिन्हा निदेशक पद से सेवानिवृत्ति के बाद डॉ कलाम एग्रीकल्चर कॉलेज, किशनगंज बिहार यूनिवर्सिटी, भागलपुर में यूनिवर्सिटी प्रोफेसर सह चीफ साइंटिस्ट के पद नियुक्त किए गए। सेवानिवृत्ति के बाद प्रोफेसर पद पर नियुक्ति किन नियमों के तहत की गई।
डॉ अजीत कुमार सिन्हा ने रांची विश्वविद्यालय के 1981 में जूलॉजी में 50.5 प्रतिशत प्राप्तांक के साथ एमएससी किया। यह उस समय में व्याख्याता नियुक्ति के लिए निर्धारित योग्यता 52.5 प्रतिशत से भी कम है। ऐसे में उनकी नियुक्ति पहले प्रतिकुलपति और बाद में कुलपति पद कैसे की गई। साथ ही माननीय सुप्रीम कोर्ट के द्वारा 2019 में पारित आदेश के अनुसार डॉ अजीत कुमार सिन्हा ने 10 वर्षों तक प्रोफेसर या उसके समतुल्य पद का अनुभव नहीं होने एवं राज्यपाल सचिवालय को संबंधित साक्ष्य से भ्रमात्मक होकर कुलपति के पद पर आसीन हुए है इसकी उच्च स्तरीय जांच की माँग की गई है।

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