बिमल कुमार मिश्रा के कलम से :-
सूखी नदियां करे पुकार ,
मुझे बचालो मेरे सरकार,
जमुई धरा का हम श्रृंगार ।
बहुत ही सटीक विश्लेषण
*नदी से* - पानी नहीं ,रेत चाहिए
*पहाड़ से*-औषधि नहीं,पत्थर चाहिए
*पेड़ से*- छाया नहीं,लकड़ी चाहिए
*खेत से*-अन्न नहीं,नकद फसल चाहिए
*उलीच ली रेत, खोद लिए पत्थर,*
*काट लिए पेड़, तोड़ दी मेड़*
रेत से पक्की सड़क , पत्थर से मकान बनाकर लकड़ी के नक्काशीदार दरवाजे सजाकर,
*अब भटक रहे हैं.....!!*
*सूखे कुओं में झाँकते,*
*रीती नदियाँ ताकते,*
*झाड़ियां खोजते लू के थपेड़ों में,*
*बिना छाया के ही हो जाती सुबह से शाम....!!!*
और गली-गली ढूंढ़ रहे हैं *आक्सीजन*
*फिर भी सब बर्तन खाली l
सोने के अंडे के लालच में , मानव ने मुर्गी मार डाली !!!,*
*विचार अवश्य कीजिए।*
हमें तो इतना ज्ञान नहीं फिर भी आपके लिए .........जागो जिला वासी जागो।
वह दिन दूर नहीं की टैंकर से भी पानी ना मिले.......।
सूखी नदियां करे पुकार , मुझे बचालो मेरे सरकार
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3:13:00 pm
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