चंद्रशेखर आज़ाद (तिवारी) को केवल दो दिन ही याद किया जाता है – उनकी जन्मतिथि और पुण्यतिथि पर। यह इस बात का प्रमाण है कि हमारे समाज और नेताओं में महापुरुषों को उनकी जाति के आधार पर सम्मान देने की प्रथा है।
चंद्रशेखर आज़ाद, जो ब्राह्मण समाज से आते थे, उन्हें उनके योगदान के अनुरूप वह स्थान नहीं दिया गया जो उन्हें मिलना चाहिए। दूसरी ओर, डॉ. भीमराव अंबेडकर को, जिन्हें संविधान निर्माण का श्रेय दिया जाता है, ऐसे प्रस्तुत किया जाता है जैसे उन्होंने अकेले ही संविधान का निर्माण किया हो। यह जानते हुए भी कि संविधान सभा में अंबेडकर के साथ 298 अन्य सदस्य भी थे, जिन्होंने इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
नेताओं द्वारा अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए स्वतंत्रता सेनानियों को जाति के चश्मे से देखा जाता है। निकट भविष्य में ऐसे जातिवादी विचारधारा के चलते चंद्रशेखर आज़ाद, मंगल पांडे, पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, और रानी लक्ष्मीबाई जैसे महापुरुषों को गुमनाम या बदनाम करने का प्रयास किया जाएगा।
ब्राह्मण समाज इन सब पर मूकदर्शक बनकर बैठा है। यह समाज गहरी नींद में है। लेकिन मैं, एक जागरूक व्यक्ति, इसे जगाने के लिए निकला हूं।
मुझे सोशल मीडिया पर हजारों गालियां और धमकियां मिलती हैं, लेकिन मैं न तो डरा हूं, न पीछे हटूंगा। मेरा संघर्ष समाज के लिए है, भले ही मेरा समाज मेरा साथ दे या न दे। मेरी लड़ाई जारी रहेगी, क्योंकि यह सिर्फ मेरे लिए नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए है।
ब्राह्मण समाज को अब जागने और अपने महापुरुषों के सम्मान के लिए खड़े होने की आवश्यकता है।

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