लेखक: अशोक कुमार झा, संपादक - रांची दस्तक व PSA Live News
16 अप्रैल की वह शाम किसी के लिए भी भुला पाना मुश्किल होगा। दक्षिण कश्मीर की खूबसूरत बैसरन घाटी, जिसे मिनी स्विट्जरलैंड कहा जाता है, में तब चीखों की गूंज सुनाई दी जब चार से पाँच आतंकियों ने टूरिस्ट कैंप पर धावा बोल दिया। पुलिस की वर्दी में आए इन दरिंदों ने पहले पर्यटकों से पंजाबी में उनका नाम पूछा, फिर एक-एक कर पुरुषों को चुनकर गोली मार दी। 15 से 20 मिनट तक गोलियों की बौछार हुई और फिर आतंकवादी जंगलों में गायब हो गए।
इस बर्बर हमले में 26 निर्दोष लोगों की जान गई। इनमें वे नवविवाहित जोड़े भी शामिल थे, जो जीवन की नई शुरुआत करने पहलगाम आए थे। एक पीड़िता का बयान रूह कंपा देने वाला है – "मैंने आतंकियों से कहा, मुझे भी मार दो, मेरे पति को मार दिया, लेकिन उन्होंने जवाब दिया – नहीं, तू जा और सरकार को बता क्या हुआ है।"
आतंकियों का एजेंडा: खुशहाल कश्मीर को बदनाम करना
इस नृशंस हमले की जिम्मेदारी 'द रेजिस्टेंस फ्रंट' (TRF) ने ली है – वही संगठन जो अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से घाटी में सक्रिय है। TRF का सीधा मकसद है – जम्मू-कश्मीर के बदलते हालात को पटरी से उतारना। पाकिस्तान द्वारा पोषित यह संगठन नहीं चाहता कि कश्मीर में अमन लौटे, टूरिज्म फले-फूले, और स्थानीय लोगों को सम्मानजनक जीवन मिले। आतंकी जानते हैं कि पर्यटक कश्मीर की रीढ़ हैं – उनका डर फैलाकर ये स्थानीय अर्थव्यवस्था को ही निशाना बना रहे हैं।
क्या यह हमला सुनियोजित अंतरराष्ट्रीय संदेश था?
संयोग से हमले के समय अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भारत यात्रा पर हैं। क्या यह हमला वैश्विक मंच पर कश्मीर का मुद्दा फिर से उठाने की कोशिश थी? क्या यह अमरनाथ यात्रा को अस्थिर करने की भूमिका है, जो आने वाले महीनों में पहलगाम से ही शुरू होनी है? ये सवाल आज हर भारतीय के मन में हैं।
सरकार की सख्ती: आतंक के खिलाफ आर-पार की लड़ाई
गृहमंत्री अमित शाह घटना के बाद तुरंत श्रीनगर पहुंचे। सेना की चिनार कॉर्प्स ने सर्च ऑपरेशन तेज कर दिया है। चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा बल तैनात हैं। प्रधानमंत्री भले विदेश यात्रा पर हों, लेकिन उन्होंने इस घटना पर न सिर्फ त्वरित प्रतिक्रिया दी बल्कि गृहमंत्री से लगातार संपर्क में भी हैं।
यह स्पष्ट है कि अब आतंक के खिलाफ आर-पार की लड़ाई होगी। जिस क्रूरता से यह हमला हुआ है, उससे देश भर में उबाल है और जनता यह जानती है – जब तक आतंकियों को उनके अंजाम तक नहीं पहुंचाया जाता, यह गुस्सा शांत नहीं होगा।
कश्मीरियों की भी टूटी उम्मीदें
यह हमला न सिर्फ देश के लिए बल्कि कश्मीरियों के लिए भी करारा झटका है। टूरिज्म ही उनकी जीविका का प्रमुख साधन है। जो आतंकी कश्मीरी होने का दम भरते हैं, उन्हीं की हरकतों ने घाटी की छवि को फिर धूमिल किया है। आज कश्मीर का आम नागरिक भी इस हिंसा से आहत है, भयभीत है, और चाहता है कि दोषियों को जल्द से जल्द सज़ा मिले।
अब सहन नहीं करेगा भारत
26 बेगुनाहों की जान गई है। यह सिर्फ आंकड़ा नहीं, 26 परिवार उजड़ गए हैं। भारत अब इस खून को यूं ही बह जाने नहीं देगा। आतंक और उसके आकाओं – चाहे वे सीमा पार हों या भीतर – सभी को इसकी कीमत चुकानी होगी। यह केवल सरकार की नहीं, देश की सामूहिक लड़ाई है। और इस बार जीत सिर्फ हमारी होगी।

फिर वही 16 तारीख,,
जवाब देंहटाएंलेखक और संपादक, आप दोनों एक साथ तो मत ही रहिए।