*प्रेस विज्ञप्ति*
*वट सावित्री व्रत 26 मई को*
*वट सावित्री व्रत महिलाओं के साहस, समर्पण और प्रेम का प्रतीक: संजय सर्राफ*
रांची। भारतीय संस्कृति की महान परंपराओं में से एक, वट सावित्री व्रत इस वर्ष 26 मई, सोमवार को पूरे श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाएगा। इस अवसर पर विश्व हिंदू परिषद सेवा विभाग व श्रीकृष्ण प्रणामी सेवा-धाम ट्रस्ट के प्रांतीय प्रवक्ता संजय सर्राफ ने कहा कि "वट सावित्री व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि महिलाओं के साहस, समर्पण और प्रेम का प्रतीक है, जो सनातन संस्कृति की जड़ों को मजबूत करता है।"
26 मई को है व्रत, सोमवती अमावस्या का भी योग
संजय सर्राफ ने बताया कि ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि इस वर्ष 26 मई को दोपहर 12:11 बजे से प्रारंभ होकर 27 मई को सुबह 8:31 बजे तक रहेगी। ऐसे में व्रत 26 मई को ही मनाया जाएगा, जो संयोगवश सोमवती अमावस्या भी है। इस दिन वट वृक्ष (बरगद) की पूजा के साथ-साथ महिलाएं पति की दीर्घायु और पारिवारिक समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं।
पौराणिक कथा और सांस्कृतिक महत्त्व
वट सावित्री व्रत की प्रेरणा महाभारत काल की देवी सावित्री से जुड़ी है, जिन्होंने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से लौटाकर भारतीय नारी के धैर्य, दृढ़ संकल्प और भक्ति की मिसाल पेश की थी। यह व्रत पति-पत्नी के बीच अपार प्रेम, विश्वास और पारिवारिक एकता का प्रतीक बन चुका है।
संजय सर्राफ ने कहा कि “यह पर्व स्त्री-शक्ति के सम्मान, आत्मबल और पारिवारिक मूल्यों को जीवंत करता है। सावित्री जैसी नारी आज भी भारतीय समाज में प्रेरणास्त्रोत बनी हुई हैं।”
धार्मिक विधि और पूजन प्रक्रिया
व्रत करने वाली महिलाएं ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर व्रत का संकल्प लेती हैं। वट वृक्ष के नीचे पूजा का स्थान सजाया जाता है। सावित्री-सत्यवान की कथा का श्रवण किया जाता है। पूजा के दौरान वट वृक्ष की सात परिक्रमा कर उसे पवित्र धागे से बांधा जाता है।
पूजन सामग्री में शामिल हैं:
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देसी घी
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काले चने (भीगे हुए)
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मौसमी फल (आम, अंगूर, खरबूजा आदि)
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अक्षत (चावल), धूपबत्ती, वट वृक्ष की डाली
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गंगाजल, मिट्टी का घड़ा, सुपारी, पान
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सिंदूर, हल्दी, मिठाई
व्रत के समापन पर महिलाएं फल, वस्त्र, पंखा और पूजन सामग्री का दान करती हैं।
समाज को सकारात्मक ऊर्जा और परिवार को स्थायित्व का संदेश
संजय सर्राफ ने कहा कि वट सावित्री व्रत "न केवल धार्मिक बल्कि पर्यावरणीय, पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।" वट वृक्ष की पूजा हमें प्रकृति संरक्षण, वृक्षों के महत्व और पारिवारिक संबंधों की स्थायित्व का संदेश देती है।
उन्होंने अपील की कि “इस अवसर पर समाज के हर वर्ग को महिला शक्ति को सम्मान देना चाहिए, जो हमारे सामाजिक ताने-बाने को मजबूती प्रदान करती हैं।”
नारी शक्ति को सम्मान देने का पर्व
संजय सर्राफ ने सभी सुहागिनों को वट सावित्री व्रत की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि यह पर्व नारी सम्मान, परिवार की एकता और भारतीय मूल्यों को जीवित रखने का माध्यम है। उन्होंने कहा कि "भारतीय नारी की आस्था, शक्ति और समर्पण के बिना समाज की कल्पना अधूरी है।"
परंपरा, पर्यावरण और परिपक्वता का संगम
वट सावित्री व्रत भारतीय समाज की उन सांस्कृतिक परंपराओं में से है जो धार्मिक आस्था, पर्यावरणीय चेतना और स्त्री शक्ति के सामंजस्य को दर्शाता है। यह पर्व स्त्री के संघर्ष, बलिदान और उसके गौरव का उत्सव है। ऐसे में यह आवश्यक है कि समाज मिलकर इस पावन अवसर को सद्भाव, श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाए।

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