"अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते।
पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तुते।।"
हिंदुस्तान के विभिन्न हिस्सों में आज सुहागिन महिलाओं ने अपने पति की दीर्घायु, पारिवारिक सुख-समृद्धि और वैवाहिक सौभाग्य की कामना के साथ वट सावित्री व्रत श्रद्धा एवं भक्ति भाव से मनाया। पारंपरिक परिधानों में सजी महिलाओं ने वट (बरगद) वृक्ष की विधिपूर्वक पूजा कर उसके चारों ओर 108 बार परिक्रमा की और यमराज से अपने पतियों के दीर्घ जीवन की प्रार्थना की।
यह पर्व सावित्री और सत्यवान की उस पौराणिक कथा से जुड़ा है, जिसमें पतिव्रता नारी सावित्री ने अपने दृढ़ संकल्प, तप और समर्पण के बल पर मृत्यु के देवता यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले लिए थे। इस व्रत में स्त्रियां सूर्योदय से पहले स्नान कर व्रत का संकल्प लेती हैं और पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं। संध्या को वट वृक्ष की पूजा कर कथा का श्रवण करती हैं और अंत में सुहाग सामग्रियों का आदान-प्रदान कर व्रत का पारायण करती हैं।
आध्यात्मिकता और पर्यावरण संरक्षण का संगम
वट सावित्री व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह प्रकृति के प्रति हमारी जिम्मेदारियों की भी याद दिलाता है। बरगद, पीपल जैसे वृक्ष केवल पूजनीय ही नहीं, बल्कि जैव विविधता और मानव जीवन के लिए अनमोल धरोहर हैं। ये वृक्ष प्रचुर मात्रा में ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं, पर्यावरण को शुद्ध रखते हैं और पक्षियों व जीव-जंतुओं के लिए आश्रय स्थल होते हैं। आज जबकि शहरीकरण की अंधी दौड़ में ये वृक्ष तेजी से विलुप्त हो रहे हैं, ऐसे में यह पर्व हमें वृक्षों की रक्षा और संवर्धन का भी संदेश देता है।
इस अवसर पर पर्यावरणविदों और समाजसेवियों ने अपील की कि व्रत केवल प्रतीकात्मक पूजा तक सीमित न रहे, बल्कि हर महिला और परिवार इस दिन एक पौधा रोपण का संकल्प ले ताकि अगली पीढ़ियों को हरियाली और शुद्ध वायुमंडल मिल सके। कई स्थानों पर महिलाओं ने पूजा के साथ-साथ वट वृक्ष का संरक्षण करने, नए पौधे लगाने और बच्चों को पेड़ों के महत्व के बारे में जानकारी देने के कार्यक्रम भी आयोजित किए।
संस्कृति और संवेदना का प्रतीक
वट सावित्री व्रत एक ओर जहां भारतीय संस्कृति में स्त्री की श्रद्धा, निष्ठा और पारिवारिक मूल्यों का प्रतीक है, वहीं यह सामाजिक चेतना और पारिस्थितिक संतुलन का संदेश भी देता है। पति की दीर्घायु की कामना और वट वृक्ष की पूजा के इस पर्व ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि हिंदुस्तानी परंपराएं केवल आस्था नहीं, बल्कि जीवन को संतुलित और सामंजस्यपूर्ण बनाने की दिशा में गहन दृष्टि प्रदान करती हैं।
इस पर्व के माध्यम से जहां परिवारों में सौहार्द और प्रेम बढ़ता है, वहीं प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता भी जागृत होती है। ऐसे में वट सावित्री व्रत केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि यह हमारे सामाजिक और पर्यावरणीय उत्तरदायित्वों का भी जीवंत उत्सव बन चुका है।

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