रांची (झारखंड)। राज्य की राजधानी रांची का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व वाला पर्यटन स्थल टैगोर हिल आज भी बदहाली की तस्वीर बना हुआ है। सरकार और नगर निगम द्वारा लाखों रुपये खर्च किए जाने के बावजूद यहां की व्यवस्था जस की तस बनी हुई है। साफ-सफाई, आधारभूत संरचना और पर्यटकों की सुविधाओं के नाम पर हालात बेहद निराशाजनक हैं।
टूटे रास्ते, उखड़ी रेलिंग और गंदगी का आलम:
टैगोर हिल तक जाने वाला रास्ता जगह-जगह से टूटा हुआ है। सीढ़ियों की मरम्मत अधूरी है, रेलिंग उखड़ी हुई है और परिसर में कूड़े-कचरे का ढेर लगा रहता है। न तो नियमित सफाई की व्यवस्था है और न ही निगरानी। परिसर में पीने के पानी, शौचालय और बैठने जैसी बुनियादी सुविधाएं भी बदहाल हैं।
पर्यटकों में नाराजगी, स्थानीयों में निराशा:
यह स्थल न केवल रांचीवासियों के लिए एक पिकनिक और शांति स्थल रहा है, बल्कि देशभर से आने वाले पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। लेकिन अव्यवस्था और उपेक्षा के कारण अब पर्यटक यहां आने से कतराने लगे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि हर साल मरम्मत और सौंदर्यीकरण के नाम पर बजट पास होता है, लेकिन काम धरातल पर नहीं दिखता।
इतिहास से जुड़ी पहचान भी धुंधली:
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से जुड़ा यह स्थान साहित्यिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है। कहा जाता है कि टैगोर परिवार के सदस्य रथींद्रनाथ टैगोर यहां साधना किया करते थे। परंतु शासन और प्रशासन की बेरुखी के चलते इस स्थल का महत्व दिन-ब-दिन घटता जा रहा है।
प्रशासन की चुप्पी, जवाबदेही नहीं:
स्थानीय प्रशासन की ओर से न तो कोई स्पष्ट योजना सामने आई है और न ही पूर्व में खर्च हुए फंड का पारदर्शी हिसाब। पर्यटन विभाग की उदासीनता से टैगोर हिल एक उपेक्षित धरोहर बनता जा रहा है।
टैगोर हिल सिर्फ एक पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि झारखंड की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का प्रतीक है। जरूरत है ईमानदार इच्छाशक्ति, नियमित रखरखाव और पारदर्शी व्यवस्था की, ताकि यह स्थान फिर से अपनी गरिमा हासिल कर सके।

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