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बिहार की वो क्रांति, जिसने लोगों को सरनेम हटाने पर मजबूर कर दिया: संपूर्ण क्रांति की सामाजिक चेतना और उसका प्रभाव

✍️ अशोक कुमार झा, प्रधान संपादक, रांची दस्तक | PSA Live News


आज़ादी के बाद अगर किसी एक आंदोलन ने हिंदुस्तान की राजनीति और समाज को गहराई से झकझोरा, तो वह था 1974 में बिहार की धरती से उठी 'संपूर्ण क्रांति'। यह सिर्फ एक राजनीतिक आक्रोश नहीं था, बल्कि एक सामाजिक, नैतिक और सांस्कृतिक जागरण था, जिसने जाति की दीवारों को चुनौती दी, नौजवानों को नए भारत के निर्माण के लिए प्रेरित किया और यहां तक कि लोगों को अपने नाम से 'सरनेम' हटाने तक पर विवश कर दिया — ताकि जातीय पहचान मिटे और समानता का सपना साकार हो सके।

संपूर्ण क्रांति: आंदोलन नहीं, समाज के पुनर्जन्म की शुरुआत

5 जून 1974 को जयप्रकाश नारायण ने पटना के गांधी मैदान में जो घोषणा की — "यह संपूर्ण क्रांति है दोस्तों!" — वो केवल भाषण नहीं था, वह एक ऐतिहासिक उद्घोषणा थी जिसने पूरे राष्ट्र में भूचाल ला दिया। उस क्रांति की गूंज न सिर्फ दिल्ली की सत्ता की दीवारों से टकराई, बल्कि हर गांव, हर गली में एक चेतना जगी — कि यह देश सिर्फ नेताओं का नहीं, जनता का है। यह क्रांति सिर्फ सत्ता परिवर्तन के लिए नहीं थी, बल्कि समाज के ढांचे को बदलने, जातिगत भेदभाव, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और शैक्षिक असमानता से लड़ने के लिए थी।

क्यों ज़रूरी हो गई थी संपूर्ण क्रांति?

1970 के दशक की शुरुआत में हिंदुस्तान गहरे राजनीतिक और सामाजिक संकट में था। बेरोजगारी चरम पर थी, महंगाई बेलगाम हो चुकी थी, शिक्षा व्यवस्था ढहती नज़र आ रही थी और युवाओं का भरोसा पूरी तरह से राजनीतिक दलों से उठ चुका था।

गुजरात से शुरू हुआ छात्र आंदोलन बिहार में तीव्र असंतोष में बदल गया। मार्च 1974 में जब छात्रों ने आंदोलन की शुरुआत की, तब उन्हें भी यह एहसास नहीं था कि कुछ महीनों में यह राष्ट्रव्यापी जनक्रांति में बदल जाएगा।

छात्रों का यह असंगठित आक्रोश, दिशा और नेतृत्व की तलाश में था — और तब मंच पर उतरे जयप्रकाश नारायण, जिन्हें स्नेह से ‘जेपी’ कहा जाता था। उन्होंने आंदोलन की बागडोर अपने हाथ में ली, लेकिन तीन स्पष्ट शर्तों के साथ —

  1. आंदोलन पूरी तरह अहिंसक रहेगा।
  2. यह आंदोलन किसी राजनीतिक दल से प्रेरित नहीं होगा।
  3. हर अंतिम निर्णय जेपी स्वयं लेंगे।

जातिवाद पर सबसे बड़ा प्रहार: नाम से हटने लगे सरनेम

संपूर्ण क्रांति का सबसे असाधारण और अदृश्य असर सामाजिक ढांचे पर पड़ा। विशेष रूप से बिहार जैसे राज्य, जहाँ जाति पहचान जीवन का पर्याय थी, वहाँ लोगों ने अपने नाम से जातिसूचक सरनेम हटा दिए। यह छोटा-सा प्रतीकात्मक कदम, एक बहुत बड़ी सामाजिक क्रांति का हिस्सा बन गया।

जातिगत पहचान छुपाना नहीं, बल्कि उसे अप्रासंगिक बना देना इस आंदोलन की आत्मा थी। बिहार के युवा वर्ग में यह चेतना फैल गई कि यदि समता आधारित समाज चाहिए, तो नाम, जाति और कुल से ऊपर उठना होगा।

जेपी के नेतृत्व में व्यापक परिवर्तन की मांग

जेपी ने साफ कहा था — "यह केवल सत्ता की लड़ाई नहीं है, यह व्यवस्था की पूरी सड़न के खिलाफ संघर्ष है।" उन्होंने इस क्रांति को सात मूल स्तंभों पर टिका बताया:

1. राजनीतिक क्रांति:

भ्रष्टाचार, सत्ता के दुरुपयोग और गैर-जवाबदेही के खिलाफ लड़ाई। चुनाव सुधार, पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग।

2. शैक्षिक क्रांति:

शिक्षा को रोजगारोन्मुखी, नैतिक मूल्यों से परिपूर्ण और समाजोपयोगी बनाने की दिशा में बदलाव।

3. आर्थिक क्रांति:

गरीबी, बेरोजगारी और आर्थिक असमानता को समाप्त करने का प्रयास, विशेषकर किसानों और मज़दूरों के लिए नीति में सुधार।

4. सामाजिक क्रांति:

जातिवाद, छुआछूत और सामाजिक अन्याय का उन्मूलन। सभी के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना।

5. सांस्कृतिक क्रांति:

भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों की पुनःस्थापना, साथ ही उन्हें आधुनिक समय से संतुलित करना।

6. प्रशासनिक क्रांति:

नौकरशाही को उत्तरदायी और संवेदनशील बनाना, लालफीताशाही को खत्म करना।

7. नैतिक क्रांति:

हर नागरिक को आत्मानुशासन, ईमानदारी और सामाजिक जिम्मेदारी की भावना से जीने की प्रेरणा।

आंदोलन से सरकार तक का सफर: सत्ता का हस्तांतरण

संपूर्ण क्रांति का प्रभाव इतना गहरा था कि देश की सबसे ताकतवर नेता इंदिरा गांधी की सरकार तक हिल गई। जून 1975 में देश में आपातकाल घोषित कर दिया गया — जो कहीं न कहीं इस आंदोलन की प्रतिक्रिया थी।

लेकिन यह क्रांति रुकी नहीं। सत्ता परिवर्तन हुआ और 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी — एक ऐतिहासिक क्षण, जब पहली बार गैर-कांग्रेसी गठबंधन ने केंद्र की सत्ता संभाली।

बिहार की क्रांति, भारत की चेतना बनी

बिहार में उपजी यह क्रांति सिर्फ एक क्षेत्रीय उभार नहीं था। उत्तर प्रदेश, बंगाल, महाराष्ट्र, कर्नाटक से लेकर तमिलनाडु तक इसकी लहरें फैलीं। यह आंदोलन एक सामाजिक पुनर्जागरण में तब्दील हो गया, जिसमें हर जाति, वर्ग, भाषा और धर्म के लोगों ने भाग लिया।

संपूर्ण क्रांति ने भारत को सिर्फ एक नई सरकार नहीं दी, बल्कि नई सोच, नया नेतृत्व और एक नए समाज की दिशा दी।

इतिहास में दर्ज सबसे बड़ा जनजागरण

आज जब हम जातिवाद, भ्रष्टाचार और सामाजिक विषमता की बात करते हैं, तो 1974 की संपूर्ण क्रांति का स्मरण ज़रूरी हो जाता है। यह एक ऐसा आंदोलन था, जिसने राजनीतिक जागरूकता को सामाजिक चेतना में बदला।

आज ज़रूरत है उसी आत्मा को फिर से जीवित करने की, जब बिहार के लोगों ने न सिर्फ सत्ता से सवाल किए, बल्कि अपने नाम और पहचान से भी जातिवाद को बाहर फेंक दिया। यही थी संपूर्ण क्रांति — एक सम्पूर्ण बदलाव की शुरुआत।

बिहार की वो क्रांति, जिसने लोगों को सरनेम हटाने पर मजबूर कर दिया: संपूर्ण क्रांति की सामाजिक चेतना और उसका प्रभाव बिहार की वो क्रांति, जिसने लोगों को सरनेम हटाने पर मजबूर कर दिया: संपूर्ण क्रांति की सामाजिक चेतना और उसका प्रभाव Reviewed by PSA Live News on 12:58:00 pm Rating: 5

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