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आंतरिक चुनौतियों से जूझती भाजपा को विधान सभा के चुनावों में हो सकती है नुकसानी


सम्पादक - अशोक कुमार झा । 

 संपादकीय 


गुजरात विधानसभा के चुनाव 2017में हुए थे।भाजपा ने जोर शोर से नारा लगाया था,अबकी बार-डेढ़ सौ पार।प.बंगाल विधानसभा के चुनाव अप्रैल,2021 में हुए थे,भाजपा ने जोर-शोर से नारा लगाया था,अबकी बार-200 पार।भाजपा को दोनों जगह में कहीं भी उसके दावे के अनुरूप सीटें नहीं मिल पाई थी। उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के संदर्भ में हाल-हाल तक भाजपा का दावा था-अबकी बार-350 पार।लेकिन,अब भाजपा ने अपने दावा को संशोधित किया है और अब अमित शाह कह रहे हैं-अबकी बार,तीन सौ पार। 

2019के आमचुनाव के बाद जहां भी विधानसभा चुनाव हुए,भाजपा के वोटों में जबरदस्त गिरावट दर्ज हुई है।महाराष्ट्र में आमचुनाव के दौरान उसे 51% वोट मिले थे,लेकिन अक्तूबर,2019में हुए विधानसभा चुनाव में उसे 42% मत मिले यानि कि वोटों में 9% की गिरावट दर्ज की गई।हरियाणा में आमचुनाव के दौरान भाजपा को 58% वोट मिले थे,लेकिन अक्तूबर,2019में हुए विधानसभा चुनाव में 37% मत मिले यानि कि वोटों में 21% की गिरावट दर्ज की गई।आमचुनाव के दौरान झारखंड में भाजपा को 55% वोट मिले थे, लेकिन,दिसम्बर,2019 में हुए विधानसभा चुनाव में उसे 33% वोट मिले यानि कि 22%की गिरावट दर्ज हुई। आमचुनाव के दौरान दिल्ली में भाजपा को 57%वोट मिले थे,लेकिन फरवरी,2020में हुए विधानसभा चुनाव में उसे 40%मत मिले यानि कि 17%की गिरावट दर्ज हुई।आमचुनाव के दौरान भाजपा को बिहार में 49% वोट मिले थे,लेकिन नवंबर,2020में हुए विधानसभा चुनाव में उसे 38% वोट मिले यानि 11%की गिरावट दर्ज की गई।अगर इन सबका मोटा-मोटी औसत निकाला जाए,इन राज्यों में 2019के आमचुनाव के दौरान 52% वोट मिले थे,और विधानसभाओं में उसे 39% वोट मिले यानि कि वोटों में औसतन 13%की गिरावट दर्ज की गई।


भाजपा को 2002 में 20.8%,2007 में 16.97%,2012 में 15% वोट मिले थे।2017 में भाजपा के वोटों में जबरदस्त उछाल आया और वह 39.67% पर पहुंच गया।भाजपा के वोटों में यह जबरदस्त उछाल की वजह राष्ट्रीय राजनीतिमें मोदीजी का प्रवेश था।जाहिर सी बात है,भाजपाके कोर वोटर 15-20% ही हैं।

इंडिया टुडेके अप्रकाशित सर्वेक्षण में मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ 42%की गिरावट दर्ज करते हुए 66% से घटकर 24% बताई गई है।उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर योगीकी लोकप्रियता का ग्राफ 49% से घटकर 29% तक पहुंच गया है।2016 की नोटबंदी, 2017 का जीएसटी कानून,बढ़ती मंहगाई और बेरोजगारी,गिरती अर्थव्यवस्था,कोरोना काल का कुप्रबंध ने यह स्थिति पैदा कर दी है कि 2022के उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा अपने कोर वोट-15-20%बचा ले,तो बड़ी बात होगी।

इसलिए,भाजपा उत्तरप्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव,2022में सत्ता हासिल नहीं करने जा रही है।तो, उसे खतरा किससे है-समाजवादी पार्टी से,कांग्रेस से या फिर बहुजन समाज पार्टी से।नहीं,भाजपा का सबसे बड़ा संकट अंदरूनी है।

भाजपा के लिए सबसे पहला अंदरूनी संकट अपने पैतृक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानि कि 

आरएसएस से है।आरएसएस घोषित तौर एक गैर- राजनीतिक स्वयंसेवी संगठन है,जिसकी स्थापना 1925 में विजयादशमी के दिन हुई थी।यह खुद को धार्मिक, साम्प्रदायिक संगठन भी नहीं मानता।लेकिन,पिछले 96 साल का इसका इतिहास असफलता की जिम्मेदारी और जिम्मेवारी लिए बिना सफलता का श्रेय लूटने का इतिहास रहा है।इसके इस सांगठनिक चरित्र की सबसे बड़ी मिसाल 6दिसंबर,1992को अयोध्या में विवादित ढांचा को गिराया जाना है।वर्षों से लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे वरिष्ठ नेता इस विवादित ढांचे को हिन्दुओं की आस्था से जुड़ा मुद्दा बताते रहे थे,6दिसंबर,1992को कारसेवकों को जुटाने का अभियान इन लोगों ने चलाया।6दिसंबर,1992को कारसेवकों ने वह विवादित ढांचा ढाह दिया।1992के बाद हर 6दिसंबर को आरएसएस और उसके आनुषंगिक संगठन इस निमित्त शौर्य दिवस मनाते हैं। लेकिन,जब मामला अदालत में गया,तो लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे वरिष्ठ नेता ने भी स्वयं को इस मामले में निर्दोष बताया और पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव में ये सभी बाइज्जत बरी भी हो गए।आरएसएस के सांगठनिक इतिहास का पहला स्वर्णयुग तब था,जब इसके एक स्वयंसेवक अटलबिहारी बाजपेयी प्रधानमंत्री बने।लेकिन,प्रधानमंत्री बनने के बाद अटलजी ने आरएसएस की अपेक्षाओं को पूरा नहीं किया और स्वयं को सांवैधानिक दायित्वों के प्रति समर्पित रखा।अटलजी के बाद आडवाणीजी प्रधानमंत्री पद के स्वाभाविक दावेदार थे। लेकिन,जैसे ही उन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना को 

राष्ट्रवादी घोषित किया,आरएसएस ने मोदी के रूप में विकल्प ढूंढ़ लिया।पहले,उन्हें युवा हृदय सम्राट घोषित किया,फिर हिंदू हृदय सम्राट।आडवाणी ने रूठने की, विद्रोह की भूमिका तलाशी तो उन्हें उनकी औकात बता दी गई।मोदीजी 2014में प्रधानमंत्री बने और 2024तक वह प्रधानमंत्री रहेंगे।आरएसएस मोदी का विकल्प ढूंढ़ने में लगा हुआ है।योगी आदित्यनाथ में उसे मोदी की श्रृंखला की अगली कड़ी दिखी थी।योगी आदित्यनाथ के चेहरे पर भाजपा ने उत्तरप्रदेश विधानसभा का 2017 का चुनाव नहीं लड़ा था,योगी ने विधानसभा चुनाव,2017 लड़ा भी नहीं था, मुख्यमंत्री पद के लिए वह मोदी-शाह की पसंद भी नहीं थे।लेकिन,आरएसएस ने मुख्यमंत्री पद के लिए उनके नाम पर अपना वीटो लगा दिया। भारतीय राजनीति का प्रसिद्ध जुमला है,दिल्ली में प्रधानमंत्री की कुर्सी तक की राह लखनऊ होकर गुजरती है। चौधरी चरण सिंह और विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बनने के पहले उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके थे, जवाहरलाल नेहरू,लालबहादुर शास्त्री,इंदिरा गांधी,राजीव गांधी,चन्द्रशेखर,अटलबिहारी बाजपेयी सीधे प्रधानमंत्री जरूर बने,लेकिन वह उत्तरप्रदेशकी प्रादेशिक राजनीति को अपनी हथेली की रेखाओं की तरह जानते-समझते थे।सो योगी आदित्यनाथ में भी प्रधानमंत्री पद की महत्वाकांक्षा जागी,और वह 'मोदी के बाद योगी' अभियान में जुट गए।मोदी ने योगी आदित्यनाथ को एक चुनौती के लिए रूप में लिया और वह योगी आदित्यनाथ के पर कतरने में जुटे हुए हैं।मोदी बनाम योगी के इस द्वन्द्व में आरएसएस की सांगठनिक प्रतिष्ठा दांव पर है।अब तो,पेशेवर सर्वेक्षण भी घोषित कर रहे हैं कि उत्तरप्रदेश में भाजपा सत्ता में नहीं लौटने वाली।ऐसे में,अपने सांगठनिक इतिहास और चरित्र के अनुरूप संभव है आरएसएस किनारे बैठ जाए।

भाजपा के चुनावी संभावनाओं को एक गंभीर चुनौती स्वयं मोदी पेश कर रहे हैं। मोदी की शिकायत है कि आरएसएस की बात मानकर उन्होंने योगी आदित्यनाथ को उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार किया, तो आरएसएस का यह सांगठनिक दायित्व है कि वह योगी आदित्यनाथ की महत्वाकांक्षा पर अंकुश लगाए रखे।अनेक अवसरों पर,योगी आदित्यनाथ ने मोदी को ठेंगा दिखाया है।मोदी की तात्कालिक राजनैतिक विवशता है कि वह योगी आदित्यनाथ के चेहरे पर चुनाव मैदान में जाएं।वह भाजपा की सत्ता में वापसी तो चाहते हैं,लेकिन योगी आदित्यनाथ की सत्ता में वापसी नहीं चाहते,जो प्रधानमंत्री और पार्टी सुप्रीमो के रूप में उनकी सत्ता को चुनौती पेश करे।मोदी जानते हैं कि अगर योगी आदित्यनाथ की सत्ता में वापसी होती है,तो 2024तक प्रधानमंत्री बने रहना उनके लिए निरापद नहीं रह जाएगा।योगी आदित्यनाथ उनको प्रधानमंत्री पद से बेदखल करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ेंगे।

उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव,2022 में भाजपा की संभावना के लिए एक गंभीर चुनौती केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह हैं।अमित शाह पिछले दो-ढाई दशकों से मोदीजी के सबसे विश्वस्त प्रबंधक की भूमिका में रहे हैं।वह यह मानकर चल रहे हैं कि जब मोदीजी बढ़ते उम्र की वजह से राजनैतिक संन्यास लेने को बाध्य होंगे, प्रधानमंत्री की कुर्सी पर उन्हें दावा ठोकना नहीं पड़ेगा, प्रधानमंत्री की कुर्सी उन्हें तोहफे के तौर पर मिल जाएगी। लेकिन,योगी आदित्यनाथ ने 'मोदी के बाद योगी'अभियान चलाकर उनकी महत्वाकांक्षा पर मानो ब्रेक लगाने की धृष्टता की है। मोदी की तरह ही अमित शाह यही चाहते हैं कि उत्तरप्रदेश में भाजपा सत्ता में तो लौटे, लेकिन योगी आदित्यनाथ नहीं।

जैसा कि पहले कहा जा चुका है मोदी-शाह की जोड़ी चाहती है कि उत्तरप्रदेश में भाजपा तो सत्ता में लौटे, लेकिन योगी आदित्यनाथ नहीं।इसलिए भाजपा की चुनावी संभावना को स्वयं योगी आदित्यनाथ एक गंभीर चुनौती पेश कर रहे हैं।योगी आदित्यनाथ की समस्या है कि श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति और श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए लगभग 7दशकों से ज्यादा समय से सबसे गंभीर प्रयास गोरखनाथ मठ करता रहा है।लेकिन,1984के बाद पहले तो आरएसएस और भाजपा ने इस मुद्दे को ही हड़प लिया और जब श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए शिलान्यास की बात आई,तो मोदीजी ने अपना चेहरा आगे कर दिया। पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के उद्घाटन के अवसर पर मोदी अपनी कार में चले और योगी जी पैदल दौड़ते नजर आए।यह योगी आदित्यनाथ की ही नहीं गोरखनाथ मठ और नाथ सम्प्रदाय के लिए तौहीनी है।योगी आदित्यनाथ मोदी-शाह की जोड़ी को माकूल जवाब देना चाहते हैं।

आजतक पर प्रसारित एक ताजा सर्वेक्षण में एक बात सामने आई है कि 62%लोग मानते हैं कि अपराधिक पृष्ठभूमि वाले केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी को अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए और अगर वह नहीं देते हैं,तो उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया जाना चाहिए। जाहिर सी बात है अजय मिश्र टेनी जितने दिन भी पद पर बने रहेंगे, भाजपा के वोटों में गिरावट के कारण बने रहेंगे।

इतनी सारी आंतरिक चुनौतियों से जूझती भाजपा शायद ही सत्ता में वापसी कर पाएगी।


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