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खतरे में है लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ, उसे बचाना होगा

पत्रकार और पत्रकारिता को समाज के दबे कुचले बेजुबान लोगों की जुबान माना जाता है और अन्याय उत्पीड़न के विरुद्ध आवाज बुलंद करने का एक सशक्त माध्यम माना गया है। 


 संपादकीय 
सम्पादक -अशोक कुमार झा । 

 वर्तमान समय में मीडिया की अहमियत किसी  से छिपी हुई नहीं है।  ऐसा कहना अनुचित न होगा कि आज हम मीडिया युग में जी रहे हैं । जीवन के प्रत्येक क्षेत्र और प्रत्येक रंग में मीडिया ने अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया है।  

लोकतंत्र में पत्रकार और पत्रकारिता दोनों की महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं । पत्रकार और पत्रकारिता लोकतंत्र से जुड़ी विधायिका कार्यपालिका और न्यायपालिका को निरंकुश होने से बचाती हैं।  पत्रकार और पत्रकारिता समाज और सरकार के बीच एक ऐसा दोहरा आईना माना जाता है जिसमें सरकार और समाज दोनों अपना-अपना स्वरूप देख कर उसमें सुधार कर सकते हैं।  

पत्रकार और पत्रकारिता को समाज के दबे कुचले बेजुबान लोगों की जुबान माना जाता है और अन्याय उत्पीड़न के विरुद्ध आवाज बुलंद करने का एक सशक्त माध्यम माना गया है।  पत्रकारिता और पत्रकार का इतिहास बहुत पुराना और  सभी युगों में रहा है । पत्रकारिता व्यवसाय नहीं बल्कि एक समाज सेवा और ईश्वरीय कार्य करने का सशक्त माध्यम माना गया है । पत्रकार और पत्रकारिता समाज और सरकार की तस्वीर प्रस्तुत करके वास्तविकता से परिचय कराती है।  

हर क्षेत्र में पत्रकार की भूमिका निभाना आजकल मुश्किल हो रहा है क्योंकि समाजद्रोही, अराजक तत्व ,भ्रष्ट सभी पत्रकारों को अपना दुश्मन मानने लगे हैं।  क्योंकि हर क्षेत्र में पत्रकारिता लोकतंत्र की परहरी बनी हुई है । समाज में आई गिरावट का प्रभाव पत्रकारिता पर भी पड़ा है।  इसके बावजूद अभी भी हमारे तमाम पत्रकार साथी विपरीत परिस्थितियों के बावजूद पत्रकारिता को गौरवान्वित कर सार्थकता प्रदान कर रहे हैं। 

आजकल पत्रकारों का मान सम्मान कम होता जा रहा है जबकि निष्पक्ष पत्रकारिता के करने वाले पत्रकारों की जान पर भी बात आ जाती है। ऐसी स्थिति आने पर सभी साथ छोड़ कर चले जाते हैं,  इसके बावजूद हमारे पत्रकार साथी अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटते । 

इस कर्तव्यपालन के दौरान अगर जरा सी चूक होने पर उनकी जान चली जाती है। वर्तमान में पत्रकारों की स्थिति बड़ी दयनीय हो गई है और पत्रकारों पर जानलेवा हमलों का दौर शुरु हो गया है जो सरकार के लिए बड़ी शर्म की बात है। पत्रकारों को चौथा स्तंभ कहने मात्र से उनकी स्थिति में सुधार नहीं होने वाला है।  

लोकतंत्र के और तीनों स्तंभों की तुलना में चौथे स्तंभ के साथ सौतेला व्यवहार कोई नई बात नहीं है । लोकतंत्र में तीन स्तंभ विधायिका कार्यपालिका व न्यायपालिका में भ्रष्ट होने पर इन्हें अगर किसी का डर है तो वह पत्रकार और पत्रकारिता से होता है।  यही कारण है कि पत्रकार के हित की सिर्फ बात की जाती है उसे अमलीजामा नहीं पहनाया जाता जिससे पत्रकारिता खतरे में पड़ कर बदनाम होने लगी है।  

गलत कार्यों के खिलाफ आवाज उठाने के बाद पत्रकार सुरक्षित नहीं है।  पत्रकारों को अपमानित प्रताड़ित पिटाई व जानलेवा हमले में असामाजिक तत्वों के अलावा अधिकारी व जनप्रतिनिधि भी पीछे नहीं है।  उक्त तमाम मुद्दों पर बड़ी लड़ाई लड़ने की जरूरत महसूस की जा रही है और इस लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने के लिए देश के सभी पत्रकारों को एक होने की जरूरत है । जिस प्रकार वकीलों के मामले में बार काउंसिल देखरेख करता है उसी प्रकार पत्रकारों के मामलों में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया देखता है । 

प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया एक संवैधानिक एवं  स्वायत्त संस्था है जो केंद्र व राज्य सरकारों को समय समय पर निर्देशित करती रहती है । परंतु उसका अनुपालन कितना किया जाता है वह हम सबसे छुपा नहीं है । पत्रकारों के हितों की रक्षा के लिए ठोस और कारगर  नियम बनने चाहिए जिससे उसकी भी समस्याओं का स्थायी निपटारा हो  सके तथा आये दिन पत्रकारों पर हो रहे हमलों लगाम लगाया जा सके ।



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