बिमल कुमार मिश्रा के कलम से :-
एक दिन मेरे गांव में आना बहुत उदासी है,
सबकी प्यास बुझाने वाली तू खुद प्यासी है,
तेरी प्यास बुझा सकते हैं, हममें है वह ज़ोर
नदी तू बहती रहना।
तू ही मंदिर तू ही मस्जिद तू ही पंच प्रयाग,
तू ही सीढ़ीदार खेत है, तू ही रोटी आग,
तुझे बेचने को आये हैं ये पूंजी के चोर
नदी तू बहती रहना।
नेता अफ़सर गुंडे खुद को कहते सूरज चांद,
बसे बसाये शहर डुबोते, बड़े-बड़े ये बांध,
चाहे कोई भी आये, चाहे मुनाफ़ाख़ोर
नदी तू बहती रहना।
नदी तू बहती रहना, नदी तू बहती रहना।“
नदी आरती : पर्वत की चिट्ठी ले जाना तू सागर के द्वार, नदी तू बहती रहना।
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7:03:00 pm
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