विमल कुमार मिश्रा के कलम से।
शादी विवाह के (buffet) खाने में वो आनंद नहीं...जो उनदिनों पंगत में आता था जैसे......
फटाफट पहले जगह छेकना..
बिना फटे पत्तल का सिलेक्शन...
उतारे हुयें चप्पल जूतें पर आधा ध्यान रखना...
फिर पत्तल पे ग्लास रखकर उड़ने से रोकना..
नमक रखने वाले को जगह बताना...
यहां रख नमक...
सब्जी देने वाले को गाइड करना..
हिला मिला के दे या थोड़ा थोड़ा देना..
उँगलियों के इशारे से मिठाई और गुलाब जामुन लेना...
पूरी छाँट छाँट के और गरम गरम लेना...
पीछे वाली पंगत में झांक के देखना क्या क्या आ गया...
अपने इधर और क्या बाकी है..
जो बाकी है उसके लिए आवाज लगाना...
पास वाले रिश्तेदार के पत्तल में जबरदस्ती पूरी रखवाना..
रायते वाले को दूर से आता देखकर फटाफट रायते लेना...
पहले वाली पंगत कितनी देर में उठेगी.. उसके हिसाब से बैठने की पोजीसन बनाना...और आखिर में पानी वाले को खोजना...आज भी कई जगह थोड़ी बहुत जीवित है यह व्यवस्था पर धीरे धीरे विलुप्त होती जा रही है..
क्यों सही कहा न ?

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