लेखक : अशोक कुमार झा, संपादक- रांची दस्तक व PSA Live News
22 अप्रैल 2025 की तारीख देश की आत्मा को झकझोर देने वाली बन गई। दक्षिण कश्मीर के पहलगाम की बैसरन घाटी, जिसे लोग मिनी स्विट्जरलैंड कह कर पुकारते हैं, उस दिन खूबसूरती की नहीं, दरिंदगी की गवाह बनी। वहां प्रकृति का आनंद लेने आए 26 निर्दोष पर्यटकों को गोलियों से छलनी कर दिया गया। यह हमला न केवल मानवता पर आघात था, बल्कि हमारे देश की सहिष्णुता, आतिथ्य और विकास की भावना पर एक सुनियोजित चोट भी।
जिस घाटी में सदियों से लोग शांति की तलाश में जाते रहे, वहीं अब गोलियों की गूंज ने भय और असुरक्षा का सन्नाटा भर दिया है। आतंकवादियों ने इस बार केवल लोगों की जान नहीं ली, उन्होंने देश की आत्मा को ललकारा है। एक नवविवाहित दंपति, जिनकी शादी महज दो दिन पहले हुई थी, वहां हनीमून मनाने पहुंचे थे। पति को सरेआम गोली मारी गई और पत्नी से कहा गया – "जाओ, सरकार को बताओ।" यह बयान सुनकर इंसानियत शर्म से सिर झुका देती है।
यह हमला क्या सिर्फ हत्या थी? नहीं। यह भारत की एकता, अमन और आत्मनिर्भर कश्मीर के विचार पर हमला था।
आतंकी संगठन TRF (The Resistance Front) ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है। इस संगठन की जड़ें पाकिस्तान से जुड़ी हैं और इसका मुख्य उद्देश्य कश्मीर के भीतर शांति को खत्म करना है। अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर में चुनावी भागीदारी बढ़ी है, विकास कार्य तेज हुए हैं और देश के हर कोने से लोग वहां घूमने जा रहे हैं। यही बात इन आतंकियों और उनके आकाओं को चुभ रही है।
वे नहीं चाहते कि कश्मीर की पहचान खूबसूरती, शांति और पर्यटन से हो। वे चाहते हैं कि खून, डर और बारूद ही वहां की पहचान बनी रहे। यही कारण है कि उन्होंने निर्दोष पर्यटकों को निशाना बनाया – क्योंकि एक खुशहाल, आत्मनिर्भर कश्मीर उनके एजेंडे को बर्बाद कर देता है।
राजनीति से ऊपर उठने की घड़ी है
इस हमले के बाद देश की संसद से लेकर गांव की चौपाल तक एक ही आवाज़ है – अब बहुत हो चुका। चाहे सत्तापक्ष हो या विपक्ष, सभी को यह समझना होगा कि आतंकवाद का कोई धर्म, कोई विचारधारा नहीं होती – इसका एकमात्र मकसद विनाश है। ऐसे समय में राजनैतिक बयानबाज़ी नहीं, बल्कि एकजुटता की जरूरत है। यह हमला किसी एक सरकार पर नहीं, पूरे भारतीय गणराज्य पर हुआ है।
पाकिस्तान की भूमिका पर सीधा सवाल
क्या यह हमला अकेले आतंकियों का कृत्य था? नहीं। TRF जैसे संगठन बिना विदेशी मदद के इतने बड़े हमले को अंजाम नहीं दे सकते। पाकिस्तान की आईएसआई और वहां की सत्ता संरचना ने बार-बार यह सिद्ध किया है कि वह भारत में अस्थिरता फैलाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। यह हमला सिर्फ टूरिज्म या धर्म के नाम पर नहीं, बल्कि भारत की बढ़ती वैश्विक प्रतिष्ठा को चुनौती देने के लिए किया गया है।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि इस हमले की टाइमिंग अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस की भारत यात्रा के दौरान हुई। यह आतंकियों का एक स्पष्ट संदेश है – कि वे कश्मीर को फिर से अंतरराष्ट्रीय चर्चा में लाना चाहते हैं। लेकिन इस बार भारत चुप नहीं बैठेगा।
जनभावनाओं को ठोस कार्रवाई में बदलने का समय
देश की जनता आज क्रोधित है। लेकिन यह गुस्सा सिर्फ सोशल मीडिया पोस्ट या श्रद्धांजलि सभाओं तक सीमित नहीं रहना चाहिए। यह वह क्षण है जब सरकार को नीतिगत और सामरिक दोनों स्तरों पर कड़ा संदेश देना होगा:
- आंतरिक सुरक्षा में जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई जाए।
- घुसपैठियों और स्लीपर सेल्स की पहचान कर उन्हें नेस्तनाबूद किया जाए।
- पाकिस्तान के खिलाफ वैश्विक मंचों पर राजनीतिक, कूटनीतिक और आर्थिक दबाव बढ़ाया जाए।
- कश्मीर में पर्यटन को बढ़ावा देकर आतंकियों के मंसूबों को ध्वस्त किया जाए।
निष्कर्ष: अब समय आ गया है कि भारत निर्णायक कदम उठाए
हमले के बाद गृहमंत्री अमित शाह का तुरंत श्रीनगर पहुंचना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विदेश यात्रा से ही सतर्कता दिखाना, यह दर्शाता है कि सरकार इस बार कोई कोताही नहीं बरतेगी। लेकिन देश की जनता अब वादा नहीं, परिणाम चाहती है।
यह हमला कश्मीर के आम नागरिकों के लिए भी चेतावनी है। अगर टूरिस्ट घाटी से कटेंगे तो वहां का रोज़गार खत्म हो जाएगा। ऐसे में कश्मीर को खुद खड़ा होना होगा – आतंकियों के खिलाफ, अपने भविष्य के लिए।
अब समय है कि भारत केवल हमलों की निंदा न करे, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक युद्ध छेड़े – चाहे वो हथियारों से हो, कूटनीति से हो या जनसहयोग से।
क्योंकि 26 बेगुनाहों का खून ये सवाल पूछ रहा है – आखिर कब तक?

सबसे पहले तो घटना की तारीख 16 नहीं, 22 लिखिए। आपने खबर की शुरुआत तारीख से की, वाह भी गलत तारीख बता कर।
जवाब देंहटाएंलेखक के साथ आप संपादक भी हैं, दोनों की आंख चूक गई।