✍ अशोक कुमार झा
संपादक – रांची दस्तक / PSA Live News
हिंदुस्तान की सरज़मीं पर जब आतंक की आग फैलती है, तो केवल खून नहीं बहता — बहता है भरोसा, टूटती हैं उम्मीदें और तिलमिलाती है एक संप्रभु राष्ट्र की आत्मा। जम्मू-कश्मीर के खूबसूरत पर्यटन स्थल पहलगाम में जब निर्दोष नागरिकों, खासकर बहन-बेटियों को निशाना बनाकर 26 लोगों की निर्मम हत्या की गई, तो यह सिर्फ एक आतंकी हमला नहीं था—यह हिंदुस्तान की गरिमा और सहिष्णुता पर सीधा प्रहार था।
इस
हमले के बाद हिंदुस्तान की सेना द्वारा पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले
कश्मीर (पीओके) में किए गए निर्णायक जवाबी हमले—ऑपरेशन सिंदूर—ने
यह सिद्ध कर दिया कि अब हिंदुस्तान न तो आंखें मूंदेगा, न केवल बयान
देगा, बल्कि आतंक को उसकी ही भाषा में जवाब देगा। और यह जवाब सिर्फ सैन्य
स्तर पर नहीं, बल्कि कूटनीतिक, वैचारिक और
नैतिक रूप से भी निर्णायक होगा।
"सिंदूर"
पर हमला, परंपरा नहीं
अपमान
जिस
हमले ने हिंदुस्तान को कार्रवाई के लिए विवश किया, वह सामान्य
आतंकी घटना नहीं थी। वह हमला हमारी संस्कृति के प्रतीक—सिंदूर—पर
था। वह हमारी बहन-बेटियों की अस्मिता, उनकी सामाजिक पहचान और हिंदुस्तानी
मूल्यों की रक्षा करने वाले प्रतीकों को लहूलुहान करने का प्रयास था। जब किसी
महिला का सिंदूर मिटता है, तो वह केवल एक व्यक्ति की त्रासदी नहीं
होती—वह पूरे समाज की चेतना को झकझोरती है। ऑपरेशन
सिंदूर उसी भावनात्मक और सांस्कृतिक चोट का
जवाब था।
मुख्यमंत्री
योगी आदित्यनाथ ने इसे अत्यंत मार्मिक शब्दों में रखा—“जिन्होंने हमारी
बहन-बेटियों का सिंदूर मिटाने की कोशिश की, अब उन्हें अपना
खानदान गंवाना पड़ा।” यह बयान केवल राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं,
बल्कि
पूरे देश के आक्रोश की गूंज थी।
पाकिस्तानी
प्रधानमंत्री की बौखलाहट: आतंक का पर्दा और खुला
हिंदुस्तान
की सैन्य कार्रवाई के कुछ ही घंटों बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने
राष्ट्र को संबोधित कर कहा कि “भारत को इसका बदला भुगतना होगा”
और 26
मृतकों
को ‘शहीद’ बताया। इस बयान ने एक बार फिर पाकिस्तान के
दोहरे चेहरे को बेनकाब कर दिया—वह दुनिया से आतंक के खिलाफ लड़ाई की
बात करता है और अपने देश में आतंकियों को शहादत का दर्जा देता है।
क्या
यह वही पाकिस्तान नहीं है जो फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) में
ग्रे लिस्ट से बाहर आने के लिए आतंकवाद को लेकर गंभीरता का ढोंग करता है? और
क्या यह वही प्रधानमंत्री नहीं हैं जो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खुद को शांति प्रिय
साबित करने का प्रयास करते हैं, लेकिन आतंकवादियों की मौत पर 'राष्ट्र
को संबोधित' कर भावनात्मक एकता की अपील करते हैं?
हिंदुस्तान
जानता है कि यह बौखलाहट उसी पाकिस्तान की है जो अपनी असफल घरेलू राजनीति और
चरमराती अर्थव्यवस्था से ध्यान हटाने के लिए बार-बार सीमा पर उकसावे की राजनीति
करता रहा है।
हिंदुस्तान
की रणनीति अब स्पष्ट है—पहले चेतावनी, फिर
निर्णायक वार
ऑपरेशन
सिंदूर से यह स्पष्ट हो गया है कि हिंदुस्तान
की आतंकवाद के प्रति नीति अब “सिर्फ निंदा नहीं, एक्शन
होगा” पर आधारित है। यह सिर्फ एक रात का सैन्य अभियान नहीं था, बल्कि
यह वर्षों की पीड़ा, धैर्य और अब निर्णायक इच्छाशक्ति की परिणति है।
यह
भी ध्यान देने योग्य है कि यह कार्रवाई उस समय हुई जब अंतरराष्ट्रीय मंच पर
हिंदुस्तान की छवि एक जिम्मेदार लोकतांत्रिक शक्ति के रूप में मजबूती से स्थापित
हो रही है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से लेकर G20 मंच तक
हिंदुस्तान ने बार-बार आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक सहमति बनाने का प्रयास किया है।
लेकिन जब दुनिया ने केवल “संयम” की अपील की,
तब
हिंदुस्तान ने अपने नागरिकों की रक्षा के लिए स्वयं मोर्चा संभालने का संकल्प
लिया।
यह युद्ध की ओर
इशारा या यह
शांति के लिए लिया गया कठोर फैसला है?
पाकिस्तानी
रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ का यह कहना कि “हम पूर्ण युद्ध से बचना चाहते हैं”,
एक
प्रकार से स्वीकारोक्ति है कि पाकिस्तान को पता है कि इस बार हिंदुस्तान रुकने
वाला नहीं। यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तानी नेतृत्व ने हमले के बाद खुद को
शांति का पक्षधर बताया हो, लेकिन यह पहली बार है जब उनकी आवाज में
डर, असमंजस और बिखराव साफ दिखा है।
हिंदुस्तान
युद्ध नहीं चाहता। लेकिन अगर कोई हमारे घर में घुसकर आग लगाए, और
हमारी बहनों पर वार करे, तो हम जवाब देने से पीछे नहीं हटेंगे।
और यही लोकतांत्रिक संप्रभुता का वास्तविक अर्थ है।
अमेरिका
और पश्चिम को अब स्पष्ट भूमिका निभानी होगी
अमेरिका
के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि “मैं दोनों को जानता हूं, दोनों
के साथ संबंध हैं, और अगर मदद कर सका तो करूंगा।” यह
एक संतुलित बयान लग सकता है, लेकिन सवाल यह है—क्या
ऐसे संघर्ष में तटस्थता सही नीति है?
पश्चिमी
देश जो मानवाधिकारों की बात करते हैं, उन्हें अब स्पष्ट शब्दों में यह कहना चाहिए कि आतंकवाद के खिलाफ
कार्रवाई करने वाला देश पीड़ित है, न कि उकसाने वाला। और आतंकवादियों को
पनाह देने वाला, उन्हें ‘शहीद’ बताने
वाला देश ही वास्तव में वैश्विक खतरा है।
जब भी हिंदुस्तान आतंक के खिलाफ सैन्य
कार्रवाई करता है, तो अमेरिका और पश्चिमी देश संयम बरतने की अपील करते हैं। इस
बार भी अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि “हम दोनों के साथ हैं, और हम चाहते हैं कि
तनाव कम हो।”
लेकिन सवाल यह है कि क्या इस ‘तटस्थता’ के नाम पर आतंकवाद और उससे लड़ने वाले को एक तराजू में तौलना न्याय है?
क्यों नहीं अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र
यह स्पष्ट करते कि जो देश मारे गए आतंकियों को शहीद कहे, उसे
वैश्विक मंचों से अलग-थलग कर दिया जाए? क्या ये वही मूल्य
हैं जिनकी बात लोकतंत्र और मानवाधिकार के नाम पर बार-बार की जाती है?
यह
हिंदुस्तान अब बदल चुका है
आज
का हिंदुस्तान 26/11 के बाद चुप रहने वाला देश नहीं है। यह अब
पुलवामा का बदला लेने वाला और पहलगाम की बेटियों के सिंदूर की रक्षा करने वाला देश
है। यह देश अब न आत्मसमर्पण करेगा और न सहन करेगा। अब
“चुप्पी” को “कार्रवाई” में बदला जा
चुका है।
ऑपरेशन
सिंदूर केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि
हिंदुस्तान की नई राष्ट्रीय नीति का उद्घोष है—अब आतंक का हर
पैगाम, मिसाइल से मिलेगा जवाब।
दुनिया को अब स्पष्ट रेखा खींचनी होगी
अगर आज भी अमेरिका, यूरोपीय यूनियन, संयुक्त राष्ट्र और OIC जैसे मंच पाकिस्तान
के इस चरित्र को अनदेखा करते हैं, तो वे न केवल आतंक को पनपने देंगे, बल्कि खुद अपने देशों
में भविष्य में होने वाले आतंकी हमलों की ज़मीन भी तैयार कर रहे होंगे।
अब समय आ गया है कि वैश्विक मंचों पर यह स्पष्ट रूप से घोषित किया जाए कि – जो
आतंक का समर्थन करता है, वह मानवता का शत्रु है,
और उसे किसी भी तरह की मदद, समर्थन
या सहयोग से वंचित किया जाना चाहिए।
आतंकियों को ‘शहीद’ बताना
सिर्फ शब्द नहीं, एक मानसिकता है —
और यही मानसिकता दुनिया के लिए सबसे
बड़ा ख़तरा है
हिंदुस्तान की ओर से हुआ ऑपरेशन सिंदूर
केवल सैन्य जवाब नहीं था, यह एक वैचारिक युद्ध
की घोषणा थी — जिसमें यह संदेश साफ है: “अब आतंक के हर पोषक को बेनकाब किया जाएगा, हर
आतंकी को दफनाया जाएगा, और हर पीड़ित को न्याय मिलेगा।”
जो देश आतंकियों की मौत पर उन्हें ‘शहीद’ बताएं, उन्हें अब सिर्फ
शब्दों से नहीं, वैश्विक कूटनीति,
प्रतिबंध और अलगाव के माध्यम से रोका
जाना चाहिए।
अब चुप्पी नहीं चलेगी — कार्रवाई ही उत्तर
है।

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