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विश्व पत्रकारिता स्वतंत्रता दिवस: एक लोकतांत्रिक समाज के प्रहरी की पुकार

लेखक: अशोक कुमार झा 

प्रधान संपादक, रांची दस्तक व PSA Live News 

हर वर्ष 3 मई को विश्व पत्रकारिता स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है — एक ऐसा दिन जो सिर्फ पत्रकारों की ही नहीं, बल्कि समूचे लोकतांत्रिक समाज की स्वतंत्रता और चेतना का प्रतीक है। यह दिन हमें न केवल पत्रकारों की भूमिका की याद दिलाता है, बल्कि यह भी सिखाता है कि स्वतंत्र और निडर मीडिया के बिना लोकतंत्र अधूरा है।

विंडहोक से विश्व स्तर तक: एक संघर्ष की कहानी

1991 में नामीबिया की राजधानी विंडहोक में अफ्रीकी पत्रकारों द्वारा पारित 'विंडहोक घोषणा' ने मीडिया की स्वतंत्रता, विविधता और प्लुरलिज़्म की मांग की। यह घोषणा दुनिया भर में पत्रकारों की सुरक्षा और अधिकारों के लिए मील का पत्थर बनी। इसके दो वर्ष बाद, 1993 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 3 मई को विश्व पत्रकारिता स्वतंत्रता दिवस के रूप में घोषित किया।

यह दिन वैश्विक स्तर पर उस मूलभूत अधिकार की याद दिलाता है जिसे अक्सर ताकतवर सत्ता और तानाशाही प्रवृत्तियाँ कुचलने का प्रयास करती हैं — अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।

लोकतंत्र का चौथा स्तंभ – संकट में

पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। इसका कार्य है – सत्ता की जवाबदेही तय करना, जनता की आवाज़ बनना और समाज में चेतना का विस्तार करना। लेकिन मौजूदा दौर में यह स्तंभ कई गंभीर चुनौतियों से जूझ रहा है।

  • सेंसरशिप और दमन: कई देशों में सरकारें पत्रकारों को असहमति व्यक्त करने के लिए दंडित कर रही हैं। चीन, रूस, अफगानिस्तान, ईरान जैसे देशों में यह दमन खुलकर सामने आता है।
  • भारत की स्थिति: रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा जारी प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत की रैंकिंग लगातार गिरती रही है। पत्रकारों को धमकियाँ मिलती हैं, केस दर्ज होते हैं और कई बार उनकी हत्या तक कर दी जाती है।
  • डिजिटल युग की चुनौतियाँ: सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव ने जहाँ सूचना की पहुँच को सरल बनाया है, वहीं फेक न्यूज़, ट्रोलिंग और संगठित डिजिटल हमला पत्रकारों को डराने और चुप कराने का नया हथियार बन गए हैं।

पत्रकारिता: व्यवसाय नहीं, जनसेवा

झारखंड पेरेंट्स एसोसिएशन के प्रांतीय प्रवक्ता सह मीडिया प्रभारी संजय सर्राफ के अनुसार, यह दिवस पत्रकारों की स्वतंत्रता, अधिकारों की रक्षा और निष्पक्ष पत्रकारिता के महत्व को रेखांकित करता है। उनके शब्दों में – “पत्रकारों को बिना डर या पक्षपात के सत्य को सामने लाने की आज़ादी होनी चाहिए।”

वास्तव में, पत्रकारिता अब केवल सूचना देने का काम नहीं है, बल्कि यह समाज को जागरूक, सतर्क और संगठित रखने का कार्य है। यह उन आवाज़ों को मंच देती है जो अक्सर दबा दी जाती हैं – ग्रामीण भारत, आदिवासी समाज, महिलाओं, और कमजोर तबकों की।

एक आत्मावलोकन की घड़ी

आज जब पत्रकारों पर हमले हो रहे हैं, मीडिया हाउस कॉर्पोरेट और राजनीतिक दबाव में आ रहे हैं, तब इस दिवस को केवल प्रतीकात्मक रूप से नहीं, बल्कि आत्ममंथन और संकल्प के रूप में मनाना आवश्यक है।

हमें यह तय करना होगा:

  • क्या हम एक ऐसी मीडिया चाहते हैं जो सत्ता से सवाल पूछे?
  • क्या हम फेक न्यूज़ से लड़ने को तैयार हैं?
  • क्या हम पत्रकारों की सुरक्षा, उनके श्रम और उनके अधिकारों को महत्व देते हैं?

निष्कर्ष: यह सिर्फ पत्रकारों का दिन नहीं

विश्व पत्रकारिता स्वतंत्रता दिवस सिर्फ पत्रकारों का नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति का दिन है जो स्वतंत्र विचार, न्यायप्रिय समाज और लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास करता है। आज आवश्यकता है कि हम सभी इस स्वतंत्रता की रक्षा के लिए एकजुट हों – चाहे वह पत्रकार हों, पाठक हों या नीतिनिर्माता।

आइए, इस अवसर पर हम यह संकल्प लें कि –

  • हम पत्रकारों की निडरता को सलाम करेंगे,
  • सत्य और निष्पक्षता की पत्रकारिता को समर्थन देंगे,
  • और एक ऐसे समाज का निर्माण करेंगे जहाँ अभिव्यक्ति की आज़ादी सबसे बड़ा अधिकार होगी।
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