क्या पाकिस्तान के मन में अब अमेरिका का डर नहीं रहा? ऑपरेशन सिंदूर ने खोली पोल, हाफ़िज अब्दुर रऊफ की मौत से मचा हड़कंप
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अशोक कुमार झा, प्रधान
संपादक - रांची दस्तक / PSA
Live News
इस्लामाबाद/नई दिल्ली। क्या अब पाकिस्तान के मन में अमेरिका का खौफ खत्म हो गया है? क्या वाशिंगटन की
चेतावनियों और प्रतिबंधों का अब इस्लामाबाद पर कोई असर नहीं होता? ये सवाल हाल के उस
सनसनीखेज खुलासे के बाद उठने लगे हैं जिसमें पाकिस्तान ने खुद यह मान लिया है कि
अमेरिका द्वारा घोषित कुख्यात आतंकवादी हाफिज अब्दुर रऊफ उसके ही देश में मौजूद था
और हिंदुस्तान के ऑपरेशन ‘सिंदूर’ में मारा गया है।
यह स्वीकारोक्ति पाकिस्तान की तरफ से
अनजाने में हुआ एक बड़ा कबूलनामा है,
जिसने उसकी वर्षों की नकारात्मक रणनीति, झूठ और वैश्विक मंचों
पर आतंकवाद को लेकर उसके दोहरे रवैये की पोल खोल दी है।
पाकिस्तान
ने खुद मानी आतंकवादी की मौजूदगी
आईएसपीआर (Inter-Services Public Relations) के महानिदेशक मेजर जनरल अहमद शरीफ चौधरी ने एक प्रेस
कॉन्फ्रेंस में रऊफ की पहचान सार्वजनिक कर दी। उन्होंने दावा किया कि रऊफ एक आम
नागरिक था, जिसकी तीन बेटियां और एक बेटा है, लेकिन जिस विवरण के
साथ उन्होंने रऊफ की फोटो, उसका जन्म वर्ष (मार्च 1973)
और पारिवारिक पृष्ठभूमि प्रस्तुत की, उससे यह स्पष्ट हो
गया कि पाकिस्तान हाफिज अब्दुर रऊफ की मौजूदगी से भली-भांति परिचित था।
उन्होंने खुद यह बताया कि रऊफ ने
मुद्रिके (पंजाब प्रांत, पाकिस्तान) में मारे गए लश्कर-ए-तैयबा आतंकियों की अंतिम नमाज
का नेतृत्व किया था। यह वही स्थान है जहां लश्कर-ए-तैयबा का मुख्यालय स्थित है।
हाफिज
अब्दुर रऊफ कौन है?
हाफिज अब्दुर रऊफ कोई साधारण व्यक्ति
नहीं, बल्कि एक अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी है। वह 1999 से
प्रतिबंधित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का सक्रिय सदस्य रहा है और फलाह-ए-इंसानियत
फाउंडेशन (FIF) का प्रमुख था। यही वह व्यक्ति है जिसे अमेरिका ने वैश्विक
आतंकवादी घोषित किया हुआ है और जो मुंबई 26/11
हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद का करीबी
सहयोगी था।
हिंदुस्तान
ने किया पर्दाफाश
हिंदुस्तान ने बेहद सटीक और जिम्मेदार
कार्रवाई करते हुए ऑपरेशन सिंदूर के दौरान रऊफ की मौजूदगी को ट्रैक किया और उसका
खात्मा किया। इसके साथ ही भारत ने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह दिखा
दिया कि पाकिस्तान की धरती आतंकवाद की सुरक्षित पनाहगाह बनी हुई है और वहां की
सरकार, सेना और पुलिस तंत्र इन आतंकियों को संरक्षण दे रहे हैं।
हिंदुस्तान ने रऊफ की वह तस्वीर भी
सार्वजनिक की जिसमें वह आतंकियों के जनाजे की नमाज का नेतृत्व करता नजर आता है।
इससे न सिर्फ उसकी मौजूदगी की पुष्टि हुई,
बल्कि पाकिस्तान के झूठ का पर्दाफाश भी
हो गया।
सैन्य
और राजनीतिक समर्थन की तस्वीरें भी आईं सामने
पाकिस्तान की पोल खोलने वाला पहलू यह भी
है कि आतंकवादियों के अंतिम संस्कार में सिर्फ आम लोग ही नहीं, बल्कि वहां के वरिष्ठ
सैन्य और पुलिस अधिकारी तक मौजूद थे। इतना ही नहीं,
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की मुख्यमंत्री
मरियम नवाज, जो प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की भतीजी हैं, उन्होंने भी
पुष्पांजलि अर्पित की।
यह साफ संकेत देता है कि पाकिस्तान की
सत्ता का एक बड़ा वर्ग आतंकियों के साथ सहानुभूति रखता है और उन्हें हीरो की तरह
प्रस्तुत करता है।
अब
अमेरिका क्या करेगा?
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि अमेरिका इस
खुलासे पर क्या प्रतिक्रिया देगा? क्या वह पाकिस्तान पर कोई ठोस कार्रवाई करेगा या फिर पुराने
ढर्रे पर कुछ बयान देकर चुप बैठ जाएगा?
हाफिज अब्दुर रऊफ कोई सामान्य आतंकी
नहीं, बल्कि अमेरिका की मोस्ट वांटेड लिस्ट में शामिल था। यदि
पाकिस्तान उसकी मौजूदगी से वाकिफ था और फिर भी उसे संरक्षण देता रहा, तो यह अमेरिका के
आतंकवाद विरोधी नीति की खुली अवमानना है।
यदि अमेरिका इस बार भी चुप रहता है, तो इससे यह संदेश
जाएगा कि आतंक के खिलाफ उसकी नीति में अब कोई कठोरता नहीं बची। वहीं, यदि वह पाकिस्तान के
खिलाफ वित्तीय, सैन्य या कूटनीतिक दबाव बनाता है, तो दुनिया को यह
संकेत मिलेगा कि अमेरिका अब भी आतंकवाद के खिलाफ गंभीर है।
क्या
पाकिस्तान खुद फंस गया है?
इस घटना से स्पष्ट है कि पाकिस्तान और अमरीका दोनों ही अब
खुद अपनी चालों में उलझ चुका है। वह आतंकवाद को रणनीतिक संपत्ति की तरह इस्तेमाल
करता रहा है, लेकिन अब उसका यह दोहरा खेल दुनिया की नजर में आ चुका है।
हिंदुस्तान ने न केवल कूटनीतिक स्तर पर
पाकिस्तान को घेरा है, बल्कि सैन्य दृष्टि से भी ऑपरेशन सिंदूर के जरिए यह संदेश दिया
है कि वह आतंक के खिलाफ किसी भी सीमा तक जाने को तैयार है।
अब यह देखना बाकी है कि क्या अमेरिका
वास्तव में पाकिस्तान के खिलाफ ठोस कदम उठाएगा या फिर वह भी केवल बयानबाज़ी तक
सीमित रह जाएगा।
यह लेख राष्ट्रीय सुरक्षा, अंतरराष्ट्रीय
संबंधों और आतंकवाद के विरुद्ध हिंदुस्तान के संकल्प का दस्तावेज़ है। यदि अमेरिका
और वैश्विक मंचों पर अब भी चुप्पी छाई रही,
तो इसका अर्थ केवल यही होगा कि आतंक के
खिलाफ जंग अब केवल हिंदुस्तान को ही अकेले लड़नी है।

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