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महेश नवमी पर्व 4 जून को मनाया जाएगा

महेश नवमी समाज में एकता, समृद्धि, भाईचारे और सकारात्मकता का देता है संदेश

रांची। श्री माहेश्वरी सभा के पूर्व सचिव मुकेश काबरा एवं रांची जिला मारवाड़ी सम्मेलन के संयुक्त महामंत्री सह प्रवक्ता संजय सर्राफ ने कहा है कि इस वर्ष महेश नवमी पर्व 4 जून को मनाया जाएगा। महेश नवमी हिंदू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पावन पर्व है, जो देवों के देव भगवान शिव और माता पार्वती के दिव्य स्वरूप को समर्पित है। यह त्योहार मुख्य रूप से माहेश्वरी समाज द्वारा बड़े ही उत्साह, श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई थी, इसलिए यह पर्व उनके लिए विशेष महत्व रखता है और इसे अपने पूर्वजों और संस्कृति से जुड़ने का दिन माना जाता है। यह पावन पर्व, शिव भक्तों के लिए सुख, समृद्धि और शांति की प्राप्ति का अवसर लेकर आता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, जिससे परिवार में खुशहाली बनी रहती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।  हिंदू पंचांग के अनुसार, महेश नवमी ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है। इस वर्ष नवमी तिथि 3 जून को रात 9:56 बजे शुरू होगी और 4 जून को रात 11:54 बजे समाप्त होगी। उदयातिथि के आधार पर, यह पर्व 4 जून को  मनाया जाएगा। इस दिन रवि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग बन रहा है, जो पूजा और धार्मिक कार्यों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।  महेश नवमी के दिन सुबह जल्दी उठें और स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र पहनकर पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें। एक चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाकर भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। सबसे पहले गणेश जी की पूजा करें, फिर शिवलिंग को जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा और फूल अर्पित करें। माता पार्वती को सोलह श्रृंगार की वस्तुएं चढ़ाएं। "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का 108 बार जाप करें। इसके बाद महेश नवमी की कथा सुनें और भगवान को खीर या फल का भोग लगाएं। इस दिन रुद्राभिषेक करना भी शुभ माना जाता है। अंत में शिव-पार्वती की आरती करें और प्रसाद वितरित करें।महेश नवमी का पर्व माहेश्वरी समाज के लिए विशेष महत्व रखता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने माहेश्वरी समुदाय के पूर्वजों को आशीर्वाद दिया था। यह पर्व सुख और समृद्धि का प्रतीक है। भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा से भक्तों के जीवन में शांति और सफलता आती है। यह पर्व एकता और भक्ति का संदेश भी देता है। महेश नवमी की धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती ने ऋषियों के श्राप के कारण पत्थर में परिवर्तित हो चुके 72 क्षत्रियों को शापमुक्त कर पुनर्जीवन प्रदान किया था। माता पार्वती ने उन क्षत्रियों को आशीर्वाद दिया कि उनके वंश पर हमेशा उनकी छाप रहेगी और वे 'माहेश्वरी' कहलाएंगे। महेश नवमी के दिन माहेश्वरी समाज के लोग एकजुट होकर इस पर्व को धूमधाम से मनाते हैं। समाज में एकता, भाईचारे और धार्मिकता का संदेश फैलाने के लिए विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों,सांस्कृतिक कार्यक्रमों, शोभायात्राओं और भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है। इस दिन को माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो समाज के गौरव और पहचान का प्रतीक है। महेश नवमी न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह समाज में एकता, समृद्धि और सकारात्मकता का संदेश भी देता है। भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करके भक्तजन अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की कामना करते हैं। यह पर्व माहेश्वरी समाज के लिए विशेष महत्व रखता है और उनके सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है।

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