पारस हत्याकांड: न्याय की लड़ाई में संघर्ष समिति का नेतृत्व, पर ‘मनोहर मोर्चा’ की राजनीति पर उठे सवाल
हरियाणा/ हिसार (राजेश सलूजा)। 15 जुलाई को हिसार के एक होटल में मैनेजर दीक्षित उर्फ पारस कुकड़ेजा की निर्मम हत्या ने पूरे शहर को झकझोर दिया। महज 27 वर्षीय पारस अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था, जिसकी हत्या से पूरा अरोड़ा खत्री पंजाबी समाज और 36 बिरादरी के लोग एकजुट होकर न्याय की मांग के लिए सड़कों पर उतर आए। इसी क्रम में पारस कुकड़ेजा न्याय दिलाओ संघर्ष समिति हिसार (हरियाणा) का गठन हुआ, जिसने परिवार को न्याय और आर्थिक-सामाजिक संबल दिलाने का बीड़ा उठाया।
संघर्ष समिति की 20 जुलाई को पंजाबी भवन में हुई बैठक में विभिन्न सामाजिक संगठनों और समाजसेवियों ने शामिल होकर एक स्वर में न्याय की मांग को और मज़बूत करने का संकल्प लिया। लेकिन इसी बीच मनोहर मोर्चा नामक संगठन के कुछ पदाधिकारियों की पहल ने आंदोलन की निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर दिए।
दरअसल, सोमवार को संघर्ष समिति के प्रतिनिधिमंडल ने चंडीगढ़ में मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी से मुलाकात की। पर मुलाकात के बाद जो प्रेस नोट जारी किया गया, उसमें संघर्ष समिति की बजाय “मनोहर मोर्चा के संस्थापक अध्यक्ष सुभाष ढींगड़ा” और “हरीश चौधरी, प्रदेश प्रभारी, मनोहर मोर्चा” का नाम ही प्रमुखता से सामने रखा गया। प्रतिनिधिमंडल में मौजूद अन्य संगठनों और समाजसेवियों का ज़िक्र नहीं किया गया। इससे समाज में यह संदेश गया कि किसी एक संगठन ने पूरी मुहिम को अपने नाम करने की कोशिश की।
समाज के भीतर इस पर असहमति भी जाहिर हुई कि क्या न्याय की इस लड़ाई को किसी संगठन विशेष के प्रचार का साधन बनाना चाहिए? संघर्ष समिति का गठन सभी बिरादरियों के सहयोग से हुआ था, न कि किसी संगठन की ब्रांडिंग के लिए। ऐसे में आंदोलन की मूल भावना और पारस के परिवार की उम्मीदों को ठेस पहुँचने की आशंका भी जताई गई।
इस बीच इंसानियत की मिसाल भी सामने आई। रविवार रात संघर्ष समिति के प्रतिनिधि भाजपा विधायक रामकुमार गौतम से मिले, जिन्होंने संवेदना व्यक्त करते हुए एसपी को सख्ती बरतने को कहा और एनकाउंटर जैसे कड़े कदम की भी सलाह दी। विधायक गौतम ने मुख्यमंत्री से मिलने का समय दिलाया और अपनी ओर से 51 हजार रुपये की मदद भी दी। जाट सेवक संघ के संदीप सावंत ने भी 20 हजार रुपये की आर्थिक मदद का ऐलान किया।
खास बात यह रही कि सबसे पहले आर्थिक मदद के लिए पंजाबी समाज की बजाय अन्य समाजों के लोग सामने आए, जिसने यह दिखा दिया कि यह सिर्फ एक समाज की नहीं, बल्कि इंसानियत की साझा लड़ाई है। संघर्ष समिति के सामूहिक नेतृत्व और पूरे समाज की एकजुटता से ही इस आंदोलन को ताकत मिलेगी और यही पारस के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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