हिंदुस्तान के हर नागरिक के नाम एक खुला पत्र
"स्वतंत्रता कोई उपहार नहीं, यह हमारे संघर्ष और बलिदान की कमाई है।" — महात्मा गांधी
15 अगस्त 1947 — वह दिन जब हिंदुस्तान की धरती पर सदियों की पराधीनता की बेड़ियाँ टूटीं। लाल किले की प्राचीर से तिरंगा लहराया और करोड़ों दिलों में आज़ादी की धड़कन गूंज उठी। अंग्रेज़ी हुकूमत का अंत हुआ, और हम अपने भाग्य के निर्माता बने।
लेकिन आज, 78 साल बाद, हमें अपने दिल पर हाथ रखकर यह सवाल पूछना होगा —
क्या हम सच में आज़ाद हैं?
क्या वह आज़ादी केवल सत्ता परिवर्तन का नाम थी, या यह एक ऐसे समाज की रचना का सपना थी जहाँ हर नागरिक बराबरी, न्याय और सम्मान के साथ जी सके?
इतिहास का संघर्ष
हमारे स्वतंत्रता संग्राम की नींव 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम से पड़ी, जब मंगल पांडे, रानी लक्ष्मीबाई, कुंवर सिंह और हजारों क्रांतिकारियों ने अंग्रेज़ों को ललकारा।
फिर महात्मा गांधी के अहिंसात्मक आंदोलन, नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फौज, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव के बलिदान और countless गुमनाम नायकों के संघर्ष ने इस चिंगारी को ज्वाला में बदला।
डॉ. भीमराव अंबेडकर ने संविधान के माध्यम से हमें अधिकारों का कवच दिया। सरदार पटेल ने देश को एकता के सूत्र में बांधा। पंडित नेहरू ने आधुनिक भारत की नींव रखी।
उन सभी का सपना सिर्फ विदेशी शासन से मुक्ति नहीं था — उनका सपना एक ऐसे हिंदुस्तान का था जो समानता, शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय में आत्मनिर्भर हो।
आज की सच्चाई
- गरीबी: 21वीं सदी में भी करोड़ों लोग दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
- बेरोज़गारी: लाखों डिग्रीधारी युवा नौकरी की तलाश में निराश हो रहे हैं।
- भ्रष्टाचार: सिस्टम के हर स्तर पर फैला भ्रष्टाचार विकास को निगल रहा है।
- सामाजिक विभाजन: धर्म, जाति, भाषा और क्षेत्र के नाम पर नफरत और हिंसा फैल रही है।
- किसानों की बदहाली: आज भी हजारों किसान आत्महत्या को मजबूर हैं।
क्या यह वही भारत है जिसका सपना गांधी, भगत सिंह और सुभाष ने देखा था?
अधूरी आज़ादी
अंग्रेज़ों की गुलामी खत्म हुई, लेकिन क्या हम भ्रष्टाचार, गरीबी, अज्ञानता, भेदभाव और डर की गुलामी से मुक्त हो पाए हैं?
असली आज़ादी का मतलब है —
- भय से मुक्ति — किसी नागरिक को अपनी राय रखने में डर न हो।
- समान अवसर — हर वर्ग के लोगों को शिक्षा, रोजगार और संसाधनों में बराबरी मिले।
- न्याय तक आसान पहुंच — अमीर-गरीब, ताकतवर-कमजोर, सभी को कानून बराबर देखे।
- सामाजिक एकता — धर्म, जाति, भाषा से ऊपर उठकर "हम हिंदुस्तानी" की पहचान मजबूत हो।
महापुरुषों की चेतावनी
- भगत सिंह ने कहा था — "क्रांति की तलवार विचारों की धार से तेज होती है।"
- सुभाष चंद्र बोस का आह्वान था — "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा।"
- डॉ. अंबेडकर ने चेताया — "राजनीतिक आज़ादी व्यर्थ है अगर सामाजिक और आर्थिक समानता नहीं है।"
आज इन वचनों को याद करने का दिन है, क्योंकि हम अभी भी अधूरी आज़ादी के दौर में जी रहे हैं।
हमारी जिम्मेदारी
प्यारे देशवासियो, आज़ादी को बनाए रखना और उसे सार्थक बनाना केवल सरकार का काम नहीं, यह हर नागरिक का कर्तव्य है।
हमें चाहिए कि —
- ईमानदारी को जीवन का मूल बनाएं।
- भेदभाव का बहिष्कार करें।
- लोकतंत्र में सक्रिय भागीदारी निभाएं — वोट डालें, सवाल पूछें, जवाब मांगें।
- नए भारत का निर्माण शिक्षा, विज्ञान, कला और उद्योग में योगदान देकर करें।
इस स्वतंत्रता दिवस का संकल्प
आइए, इस 15 अगस्त को हम सिर्फ झंडा न फहराएं, बल्कि यह संकल्प लें कि —
- हम हिंदुस्तान को भ्रष्टाचार, भय और भेदभाव से मुक्त करेंगे।
- हम अपने बच्चों को ऐसा देश देंगे, जहाँ उनके सपनों को उड़ान मिले।
- हम अपने महापुरुषों के अधूरे सपनों को पूरा करेंगे।
क्योंकि आज़ादी सिर्फ अतीत की उपलब्धि नहीं, बल्कि भविष्य की जिम्मेदारी है।
जय हिंद! वंदे मातरम्!
(— एक सजग नागरिक की कलम से)

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