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गुरु नानक देव जयंती 5 नवंबर को

गुरु नानक जयंती मानवता, समानता, प्रेम और सत्य का उत्सव: संजय सर्राफ

रांची। विश्व हिंदू परिषद सेवा विभाग एवं श्री कृष्ण प्रणामी सेवा धाम ट्रस्ट के प्रांतीय प्रवक्ता संजय सर्राफ ने कहा है कि भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपरा में गुरु नानक देव जी का स्थान अत्यंत ऊँचा है। वे न केवल सिख धर्म के संस्थापक थे, बल्कि एक ऐसे संत, समाज सुधारक और मानवतावादी थे जिन्होंने पूरे विश्व को सत्य, करुणा और समानता का संदेश दिया। गुरु नानक देव जी की जयंती, जिसे गुरुपर्व या प्रकाश पर्व भी कहा जाता है, हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। इस वर्ष यह पावन पर्व 5 नवंबर दिन बुधवार को मनाया जाएगा। इस साल गुरु नानक देव जी की 556वीं जयंती होगी गुरु नानक देव जी का जन्म सन् 1469 ईस्वी में पंजाब के तलवंडी गाँव (अब पाकिस्तान में ननकाना साहिब) में हुआ था। उनके पिता का नाम मेहता कालू और माता का नाम माता तृप्ता था। बचपन से ही वे अत्यंत बुद्धिमान, सत्यनिष्ठ और करुणामयी थे। सांसारिक वैभव से दूर, वे हमेशा ईश्वर की भक्ति और मानवता की सेवा में लीन रहते थे। यह जयंती गुरु नानक देव जी के जन्म दिवस के रूप में मनाई जाती है। इस दिन सिख समुदाय और उनके अनुयायी उनकी शिक्षाओं को स्मरण करते हुए कीर्तन, भजन, लंगर और सेवा के माध्यम से प्रेम, समानता और भाईचारे का संदेश फैलाते हैं। गुरु नानक देव जी ने समाज में फैले भेदभाव, अंधविश्वास और पाखंड का विरोध किया तथा ‘एक ओंकार सतनाम’ का उपदेश दिया-अर्थात् ईश्वर एक है और वह सबमें विद्यमान है।गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ तीन मूल सिद्धांतों पर आधारित थीं-नाम जपना-ईश्वर का स्मरण करना,किरत करना-ईमानदारी से जीवनयापन करना,वंड छकना- दूसरों के साथ बाँटकर खाना, उनके विचारों ने न केवल सिख धर्म की नींव रखी, बल्कि पूरी मानवता को सत्य, करुणा और समानता का मार्ग दिखाया। गुरुपर्व से दो दिन पहले नगाड़ा कीर्तन यात्रा निकाली जाती है, जिसमें नगर की गलियाँ गुरुवाणी से गूंज उठती हैं। गुरुद्वारों को पुष्पों और दीपों से सजाया जाता है। अखंड पाठ (48 घंटे का निरंतर गुरुग्रंथ साहिब पाठ) आयोजित होता है। जयंती के दिन प्रभात फेरी, भजन-कीर्तन, गुरु का लंगर और सेवा का माहौल अद्भुत शांति और सौहार्द का अनुभव कराता है। लंगर में सभी धर्मों और वर्गों के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं, जो समानता का प्रतीक है। कहा जाता है कि एक दिन नानक देव जी स्नान के लिए नदी में गए और तीन दिन तक लापता रहे। जब वे लौटे तो बोले, “ना कोई हिंदू, ना कोई मुसलमान।” इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है। इसी अनुभव के बाद उन्होंने संसार में प्रेम, सच्चाई और सेवा का संदेश फैलाना शुरू किया।गुरु नानक देव जयंती केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि मानवता, समानता और सत्य का उत्सव है। उनकी शिक्षाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं,जितनी 500 वर्ष पूर्व थीं। उन्होंने हमें सिखाया कि ईश्वर की सच्ची उपासना सेवा, प्रेम और सत्य के मार्ग पर चलने में है।इसलिए हर वर्ष यह पर्व हमें याद दिलाता है-मानव सेवा ही सबसे बड़ी पूजा है।

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