अलीनगर (दरभंगा) से विशेष ग्राउंड रिपोर्ट : मैथिली के लिए चुनौती आसान नहीं, विपक्षी उम्मीदवार की पकड़ मजबूत
✍️ अशोक कुमार झा, संपादक — रांची दस्तक / PSA Live News
दरभंगा । दरभंगा जिले की अलीनगर विधानसभा सीट इस बार बिहार चुनाव के केंद्र में है। वजह हैं — देश-विदेश में अपनी सुरीली आवाज़ से लाखों दिलों में जगह बनाने वाली गायिका मैथिली ठाकुर (25), जो अब राजनीति की पगडंडी पर अपना पहला कदम रख चुकी हैं।
युवा चेहरा, साफ छवि और मिथिला की बेटी होने का भाव — इन तीन बिंदुओं पर टिके मैथिली के प्रचार ने अचानक इस शांत इलाके को राज्य की राजनीतिक सुर्खियों में ला दिया है।
लेकिन, हर चमक के पीछे सियासत की सच्चाई भी है — और वह यह कि अलीनगर की ज़मीन जितनी उपजाऊ है, उतनी ही जटिल भी।
जातीय समीकरणों से लेकर स्थानीय संगठन और पुराने नेताओं की पकड़ तक, सब कुछ यहां के राजनीतिक भविष्य को प्रभावित करने वाला है।
‘सुर’ से ‘सियासत’ तक की यात्रा
मैथिली ठाकुर की पहचान अब किसी परिचय की मोहताज नहीं। ‘इंडियन आइडल’ से लेकर ‘राइजिंग स्टार’ तक मंचों पर अपनी गायकी से उन्होंने मिथिला को राष्ट्रीय मंच पर सम्मान दिलाया।
लेकिन, राजनीति का यह नया अध्याय उनके लिए बिल्कुल अलग चुनौती है। सोशल मीडिया पर लोकप्रियता को मतदाताओं के भरोसे में बदलना आसान नहीं होता — खासकर तब, जब सामने पुराना और जमीनी प्रतिद्वंदी हो।
अलीनगर के आशापुर बाजार में चाय की दुकान पर बैठा एक बुज़ुर्ग कहता है —
“बिटिया की आवाज़ बहुत सुरीली है, लेकिन राजनीति में सुर बिगड़ना आसान है। गांव-गांव घूमना, जनता के बीच रहना, यह सब अलग बात है।”
सोशल मीडिया से निकली चर्चा, गांव तक पहुंची बहस
मैथिली का नाम घोषित होते ही सोशल मीडिया पर चर्चा तेज़ हो गई। समर्थकों ने इसे मिथिला की नई आवाज़ बताया, तो विरोधियों ने सवाल उठाए —
“इतनी छोटी उम्र में राजनीति क्यों?”,
“क्या यह सिर्फ़ पब्लिसिटी स्टंट है?”,
“वह तो दिल्ली में रहती हैं, चुनाव के बाद लौट जाएंगी।”
अलीनगर के कई इलाकों में यह मतभेद साफ महसूस किया जा सकता है। एक तरफ युवाओं में जोश और उम्मीद है, तो दूसरी ओर बुज़ुर्गों में संशय और अनुभवजन्य सवाल।
विनोद मिश्र का संगठनात्मक वर्चस्व
मैथिली के सामने राजद प्रत्याशी विनोद मिश्र की चुनौती किसी भी तरह कम नहीं आंकी जा सकती।
विनोद मिश्र लंबे समय तक बीजेपी के साथ रहे। 2015 में टिकट न मिलने के बाद उन्होंने राजद का दामन थामा।
तब से लेकर अब तक उन्होंने अपने संगठन और जातीय आधार दोनों को मजबूत किया है।
उनकी पहचान एक जमीनी नेता की है, जिनके कार्यकर्ता गांव-गांव सक्रिय हैं और पंचायत स्तर तक पकड़ बनाए हुए हैं।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि “अलीनगर में राजद का पारंपरिक वोट बैंक अब भी intact है, जबकि मैथिली का प्रभाव शहरी और युवा वर्ग में अधिक है।”
महिलाओं और युवाओं का झुकाव मैथिली की ओर
हालांकि मैथिली की सबसे बड़ी ताकत महिलाएँ और युवा मतदाता हैं।
उनके जनसभाओं में महिलाओं की बड़ी उपस्थिति देखने को मिल रही है।
लगमा गांव की बिंदु चौधरी कहती हैं —
“मैथिली हमारी बेटी है। उसने मिथिला की संस्कृति को देश-विदेश में सम्मान दिलाया है। अगर वह विधायक बनती हैं, तो महिलाओं की आवाज़ विधानसभा तक जाएगी।”
युवाओं में भी मैथिली का प्रचार अभियान चर्चा का विषय है।
उनकी टीम ने डिजिटल माध्यमों पर जिस तरह से प्रचार को आधुनिक रूप दिया है, उसने कई पारंपरिक पार्टियों को चौकाया है।
“#मिथिला_की_बेटी” और “#नई_राजनीति” जैसे हैशटैग इस समय ट्विटर और इंस्टाग्राम पर ट्रेंड कर रहे हैं।
मिथिला की अस्मिता और पहचान का सवाल
अलीनगर सिर्फ़ एक विधानसभा सीट नहीं, यह मिथिला की सांस्कृतिक अस्मिता से भी जुड़ा इलाका है।
यहाँ की जनता भावनात्मक रूप से अपनी भाषा, परंपरा और संस्कृति से गहराई से जुड़ी है।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि मैथिली ठाकुर ने इस भावनात्मक बिंदु को सही तरह से छुआ है।
उनका प्रचार स्लोगन — “मिथिला बोलेगी, दिल्ली सुनेगी” — स्थानीय मतदाताओं को एक सांस्कृतिक एकता के सूत्र में बांध रहा है।
जातीय समीकरणों का गणित भी अहम
अलीनगर में ठाकुर, यादव, मुस्लिम और दलित मतदाता बड़ी संख्या में हैं।
यादव-मुस्लिम समीकरण पारंपरिक रूप से राजद के पक्ष में जाता रहा है, जबकि ऊंची जातियों में बीजेपी समर्थक वर्ग भी प्रभावी है।
इस बीच मैथिली का प्रवेश इन दोनों ध्रुवों के बीच एक तीसरे विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।
हालांकि जातीय राजनीति के गहरे प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता। मोहम्मद जहीर, जो लंबे समय से इस इलाके की राजनीति पर नजर रखते हैं, कहते हैं —
“यहां लोग चेहरे से ज़्यादा जात और जुड़ाव देखते हैं। अब देखना होगा कि ‘मिथिला की बेटी’ का भाव इन सीमाओं को कितना पार कर पाता है।”
‘नई राजनीति बनाम पुराना अनुभव’ की जंग
यह चुनाव एक मायने में पीढ़ियों की लड़ाई जैसा दिख रहा है —
एक ओर युवा चेहरा और आधुनिक दृष्टिकोण वाली मैथिली,
दूसरी ओर अनुभवी, जमीनी और जातीय समीकरणों के माहिर विनोद मिश्र।
मैथिली की राजनीति विकास, शिक्षा, महिला सशक्तिकरण और सांस्कृतिक गौरव के मुद्दों पर केंद्रित है।
वहीं, विनोद मिश्र स्थानीय समस्याओं — सड़कों, सिंचाई, रोजगार, बिजली और किसानों की चिंता — को अपने प्रचार का केंद्र बना रहे हैं।
जनता की राय बंटी हुई, मुकाबला दिलचस्प
अलीनगर की गलियों में आज सबसे बड़ा सवाल यही है —
क्या मिथिला की पहचान और युवाओं की उम्मीदें एक साथ जीत दर्ज कर पाएंगी,
या फिर पुराना अनुभव और सामाजिक समीकरण अपना रंग दिखाएंगे?
गांव के एक शिक्षक कहते हैं —
“अगर मैथिली का प्रचार गांवों में गहराई तक पहुंच गया, तो परिणाम चौंकाने वाले हो सकते हैं। लेकिन राजद का नेटवर्क बहुत मजबूत है, इसलिए अंतिम क्षणों तक मुकाबला कांटे का रहेगा।”
मिथिला की राजनीति का नया मोड़
अलीनगर का यह चुनाव सिर्फ़ एक सीट का नहीं, बल्कि मिथिला की नई राजनीतिक दिशा का प्रतीक बन सकता है।
अगर मैथिली ठाकुर जैसी नई पीढ़ी की प्रतिनिधि यहां अपनी पहचान बना पाती हैं, तो यह बिहार की राजनीति में युवाओं, खासकर महिलाओं की नई भूमिका की शुरुआत होगी।
और अगर परंपरागत संगठन फिर से भारी पड़ता है, तो यह संकेत होगा कि बिहार की राजनीति में वोटरों का दिल जीतने से पहले उनकी ज़मीन जीतनी पड़ती है।
जो भी हो —
अलीनगर की यह लड़ाई आने वाले वर्षों तक मिथिला की सियासी पहचान का केंद्र बनी रहेगी।
यहाँ जीत सिर्फ़ एक प्रत्याशी की नहीं होगी, बल्कि नई राजनीति बनाम परंपरागत व्यवस्था के भविष्य की होगी।
 
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8:12:00 am
 
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