जगन्नाथपुरी । मान्यता है कि भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण मानव रूप में द्वापर युग में इस धरती पर पैदा हुए थे। इसी युग में महाभारत और कौरव पांडवों का भी जिक्र आता है। चूकी श्रीकृष्ण मानव रूप में थे इसलिए उन्हें पृथ्वी से विदा भी होना था क्योंकि यहां आने वाला हर शख्स नश्वर होता है। ऐसे में महाभारत के युद्ध के करीब 36 साल बाद श्रीकृष्ण की मृत्यु हो गई।
कथा के अनुसार श्रीकृष्ण की मृत्यु के बाद जब पांडवों ने उनका अंतिम संस्कार किया तो मानव शरीर तो अग्नि देव को समर्पित हो गया लेकिन उनका दिल जलता रहा। उसमें से लगातार ज्योति निकल रही थी। यह देख पांडवों ने उनके दिल को जल में प्रवाहित कर दिया। कहते हैं कि जल में प्रवाहित होते ही उस दिल ने एक लट्ठ का रूप ले लिया और बहता हुआ राजा इंद्रदुम के पास पहुंच गया। भगवान के परम भक्त इंद्रदुम को जब लट्ठ की सच्चाई के बारे में मालूम हुआ तो उन्होंने उसे जगन्नाथ जी की मूर्ति में रखवा दिया।
जगन्नाथ रथ यात्रा: आज भी मूर्ति में है दिल, किसी के देखने पर है मनाही
मान्यता है कि उस दिन के बाद से श्रीकृष्ण का दिल जगन्नाथ जी की मूर्ति के अंदर ही है। प्रथा के अनुसार हर 12 साल में भगवान जगन्नाथ जी की मूर्ति बदली जाती है लेकिन उस दिल को कोई देख नहीं पाता। मूर्ति बदले जाने की प्रक्रिया के 'नवा-कलेवर' कहा जाता है।
दरअसल, मूर्ति बनाने वाले जब उस लट्ठ को नई मूर्ति में रखते हैं उनके आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है। साथ ही हाथों पर भी कपड़े बांधे जाते हैं। इस क्रिया के दौरान बिजली भी काट दी जाती है ताकि अंधेरा रहे और कोई और नहीं देख सके। ऐसा कहा जाता है कि इस दिल को देखने वाले की मृत्यु हो जाएगी।
कथा के अनुसार श्रीकृष्ण की मृत्यु के बाद जब पांडवों ने उनका अंतिम संस्कार किया तो मानव शरीर तो अग्नि देव को समर्पित हो गया लेकिन उनका दिल जलता रहा। उसमें से लगातार ज्योति निकल रही थी। यह देख पांडवों ने उनके दिल को जल में प्रवाहित कर दिया। कहते हैं कि जल में प्रवाहित होते ही उस दिल ने एक लट्ठ का रूप ले लिया और बहता हुआ राजा इंद्रदुम के पास पहुंच गया। भगवान के परम भक्त इंद्रदुम को जब लट्ठ की सच्चाई के बारे में मालूम हुआ तो उन्होंने उसे जगन्नाथ जी की मूर्ति में रखवा दिया।
जगन्नाथ रथ यात्रा: आज भी मूर्ति में है दिल, किसी के देखने पर है मनाही
मान्यता है कि उस दिन के बाद से श्रीकृष्ण का दिल जगन्नाथ जी की मूर्ति के अंदर ही है। प्रथा के अनुसार हर 12 साल में भगवान जगन्नाथ जी की मूर्ति बदली जाती है लेकिन उस दिल को कोई देख नहीं पाता। मूर्ति बदले जाने की प्रक्रिया के 'नवा-कलेवर' कहा जाता है।
दरअसल, मूर्ति बनाने वाले जब उस लट्ठ को नई मूर्ति में रखते हैं उनके आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है। साथ ही हाथों पर भी कपड़े बांधे जाते हैं। इस क्रिया के दौरान बिजली भी काट दी जाती है ताकि अंधेरा रहे और कोई और नहीं देख सके। ऐसा कहा जाता है कि इस दिल को देखने वाले की मृत्यु हो जाएगी।
जगन्नाथ रथ यात्रा: क्या है श्रीकृष्ण के दिल के रखे होने का सच
Reviewed by PSA Live News
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10:43:00 am
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