रांची। झारखंड थंडर जोन है और यहां हर साल करीब 200 लोगों की मौत वज्रपात (Thundering) के कारण हो जाती है. पिछले 12 सालों की बात करें तो सूबे में ठनका से 24 सौ लोगों की मौत (Death) हो चुकी है. हालांकि इस दिशा में आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से तमाम प्रयास किये जाते हैं. बावजूद इसके जान जाने का सिलसिला जारी है. जानकारों के मुताबिक पठारी क्षेत्र होने के कारण यहां भू- गर्भ में हेमेटाइट, बॉक्साइट और यूरेनियम जैसे खनिज मौजूद हैं. इनकी वजह से आसमानी बिजली जमीन की ओर आकर्षित होती है. और जान-माल का नुकसान पहुंचाती है.
आसमान में बादल छाते ही रांची के नामकुम के रामपुर मध्य विद्यालय में शिक्षक से लेकर बच्चे तक सिहर उठते हैं. सभी के आंखों के सामने वो मंजर घुमने लगता है जब आसमानी आफत के चलते यहां के पांच बच्चे असमय काल की गाल में समा गये थे. आज भी जब बिजली कड़कती है तो रामपुर गांव में लोग कांप उठते हैं. करीब- करीब यही स्थिति झारखंड के अन्य गांवों की हर साल सूबे में वज्रपात के चलते करीब 200 सौ इंसानी जान जाती हैं. मवेशियों की मौत के आंकड़ें इससे अलग हैं.
रांची के नामकुम स्थित इसी स्कूल में ठनका से 5 बच्चों की हुई थी मौत
एक नजर मौत के आंकड़ों पर
2007 में सूबे भर में वज्रपात से 157 लोगों की मौत
2008 में 143
2009 में 153
2010 में 140
2011 में 136
2012 में 142
2013 में 167
2014 में 162
2015 में 204
2016 में 270
2017 में 300
2018 में 277
साल 2019 में अबतक 160 लोगों की मौत ठनका की चपेट में आने से हो चुकी है.
आपदा प्रबंधन विभाग के संयुक्त निदेशक मनीष कुमार कहते हैं कि यह राज्य पठारी क्षेत्र होने के कारण यहां के भू- गर्भ में ऐसे खनिज पदार्थ हैं, जो आसमानी बिजली को जमीन की ओर आकर्षित करता है. इसी वजह से सूबे में वज्रपात की घटनाएं ज्यादा होती हैं.
सूबे के इस सबसे बड़े आपदा से निबटने के लिए आपदा प्रबंधन विभाग लगातार प्रयास कर रहा है. इन प्रयासों में थंडरिंग का पूर्वानुमान दो घंटे पहले स्थानीय लोगों को एसएमएस के माध्यम से देने है. वहीं जागरुकता अभियान चलाकर भी लोगों को इससे बचने के उपाय बताये जाते हैं. विभाग ने इसे स्कूली कोर्स में शामिल
कराने के लिए पाठ्यक्रम भी तैयार किया है. अगले साल से 9वीं और 10वीं के बच्चे इसकी पढ़ाई करेंगे.
विभाग ने पीड़ित परिवारों के लिए मुआवजे का भी प्रावधान किया है. इसके तहत सभी जिलों को एक- एक करोड़ रुपये दिये गये हैं. मौत होने पर पीड़ित परिवार को 4 लाख रुपये देने का प्रावधान है. पशुओं की मौत या सामान की क्षति होने पर भी मुआवजा का प्रावधान है.
बचने के उपाय
बिजली कड़कने पर खुले स्थान पर ना रहें
अकेले बड़े पेड़ या पोल के नीचे खड़े न हों
कोशिश करें कि थंडरिंग के समय घर में ही या पक्के छत वाले मकान के नीचे रहें
बारिश और थंडरिंग के दौरान अपना मोबाइल ऑफ कर दें
घर की खिड़की और दरवाजे को बंद करके रखें
लोहा, एलुमिनियम या तांबे के तार पर कपड़ा पसारने से परहेज करें
नायलॉन या प्लास्टिक की रस्सी पर कपड़ा डालें
घरों में वाशिंग मशीन, टीवी, वाटर प्यूरीफायर जैसे इलेक्ट्रिकल इक्विपमेंट्स के प्लग बोर्ड से निकाल दें।
आसमान में बादल छाते ही रांची के नामकुम के रामपुर मध्य विद्यालय में शिक्षक से लेकर बच्चे तक सिहर उठते हैं. सभी के आंखों के सामने वो मंजर घुमने लगता है जब आसमानी आफत के चलते यहां के पांच बच्चे असमय काल की गाल में समा गये थे. आज भी जब बिजली कड़कती है तो रामपुर गांव में लोग कांप उठते हैं. करीब- करीब यही स्थिति झारखंड के अन्य गांवों की हर साल सूबे में वज्रपात के चलते करीब 200 सौ इंसानी जान जाती हैं. मवेशियों की मौत के आंकड़ें इससे अलग हैं.
रांची के नामकुम स्थित इसी स्कूल में ठनका से 5 बच्चों की हुई थी मौत
एक नजर मौत के आंकड़ों पर
2007 में सूबे भर में वज्रपात से 157 लोगों की मौत
2008 में 143
2009 में 153
2010 में 140
2011 में 136
2012 में 142
2013 में 167
2014 में 162
2015 में 204
2016 में 270
2017 में 300
2018 में 277
साल 2019 में अबतक 160 लोगों की मौत ठनका की चपेट में आने से हो चुकी है.
आपदा प्रबंधन विभाग के संयुक्त निदेशक मनीष कुमार कहते हैं कि यह राज्य पठारी क्षेत्र होने के कारण यहां के भू- गर्भ में ऐसे खनिज पदार्थ हैं, जो आसमानी बिजली को जमीन की ओर आकर्षित करता है. इसी वजह से सूबे में वज्रपात की घटनाएं ज्यादा होती हैं.
सूबे के इस सबसे बड़े आपदा से निबटने के लिए आपदा प्रबंधन विभाग लगातार प्रयास कर रहा है. इन प्रयासों में थंडरिंग का पूर्वानुमान दो घंटे पहले स्थानीय लोगों को एसएमएस के माध्यम से देने है. वहीं जागरुकता अभियान चलाकर भी लोगों को इससे बचने के उपाय बताये जाते हैं. विभाग ने इसे स्कूली कोर्स में शामिल
कराने के लिए पाठ्यक्रम भी तैयार किया है. अगले साल से 9वीं और 10वीं के बच्चे इसकी पढ़ाई करेंगे.
विभाग ने पीड़ित परिवारों के लिए मुआवजे का भी प्रावधान किया है. इसके तहत सभी जिलों को एक- एक करोड़ रुपये दिये गये हैं. मौत होने पर पीड़ित परिवार को 4 लाख रुपये देने का प्रावधान है. पशुओं की मौत या सामान की क्षति होने पर भी मुआवजा का प्रावधान है.
बचने के उपाय
बिजली कड़कने पर खुले स्थान पर ना रहें
अकेले बड़े पेड़ या पोल के नीचे खड़े न हों
कोशिश करें कि थंडरिंग के समय घर में ही या पक्के छत वाले मकान के नीचे रहें
बारिश और थंडरिंग के दौरान अपना मोबाइल ऑफ कर दें
घर की खिड़की और दरवाजे को बंद करके रखें
लोहा, एलुमिनियम या तांबे के तार पर कपड़ा पसारने से परहेज करें
नायलॉन या प्लास्टिक की रस्सी पर कपड़ा डालें
घरों में वाशिंग मशीन, टीवी, वाटर प्यूरीफायर जैसे इलेक्ट्रिकल इक्विपमेंट्स के प्लग बोर्ड से निकाल दें।
ये है झारखंड की सबसे बड़ी आफत! हर साल होती है 200 लोगों की मौत
Reviewed by PSA Live News
on
11:23:00 pm
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