रांची में प्रचंड गर्मी से लोगों का हाल हुआ बेहाल, एक तो पानी की किल्लत ऊपर से बिजली कट की पुरानी समस्या टैंकर के सहारे से नगर निगम का प्रयास जारी
सम्पादक - अशोक कुमार झा ।
रांची । कभी संयुक्त बिहार में ग्रीष्मकालिन
राजधानी कहलाने बाली झारखंड की राजधानी रांची में अब गर्मी में आम लोगों का जीना दूभर हो चुका है । एक तरफ गर्मी शुरू होते ही
यहाँ बिजली कटने की समस्या शुरू हो जाती है जो अब पुरानी समस्या हो चुकी है और
उसको झेलने के लिये यहाँ की जनता अब आदी होती जा रही है
। परंतु अब रांची में उससे भी बड़ी एक नई समस्या पानी की बन चुकी है ।
स्थिति यह हो गई है कि काफी पैसे खर्च
करके एक सुनहरे सपने लेकर यहाँ अपना घर द्वार बनाकर रहने वाले लोग हर साल करीब डेढ़
से दो लाख रुपये लगाकर पानी के लिये नया बोरिंग करवाते हैं । परंतु यहाँ पानी का
लेवेल इस तरह से नीचे की तरफ जा रहा है जो एक या दो साल आते आते फिर से वहाँ का
लेयर सुख जाता है और उसके बोरिंग में पानी आना बंद हो जाता है । जैसा कि हम सभी जानते हैं, पानी के बिना आदमी के जीवन की कल्पना करना भी संभव नहीं है । ऐसे में हर साल मई, जून और जुलाई महीने को गुजार पाना यहाँ का एक एक
दिन पानी के लिए कड़े संघर्ष से भरा होता है ।
वैसे रांची नगर निगम के द्वारा इस समस्या पर काबू पाने के लिये कई जगह डीप बोरिंग (सरकारी बोरिंग) भी कराई गयी है, जहां सुबह से लोगों की हाथ में बाल्टी लेकर पानी के लिये लाइन लगनी शुरू हो जाती है और इससे काफी हद तक आम लोगों को राहत भी हो जाती है । परंतु जून महिना आते-आते उस डीप बोरिंग में भी पानी देने की क्षमता में काफी कमी आ जाती है। जिसके बाद वहाँ स्थिति गाली-गलौज से शुरू होकर फिर धक्का मुक्की और मारपीट तक की नौबत आ जाती है। जिसमें कई बार पुलिस को भी हस्तक्षेप करना पड़ता है ।
फिर नगर के द्वारा आम लोगों को राहत देने
के लिये एक और कोशिश की जाती है, टैंकर के माध्यम से लोगों को घर तक पानी पहुंचाने का। क्योकि इसके सिवा उसके पास और कोई चारा भी नहीं
रह पाता है । इसके लिये नगर निगम के फील्ड के कर्मचारियों को इसमें काफी मेहनत करनी पड़ती है । परंतु इस टैंकर के माध्यम से सभी को घर घर पानी पहुंचा
पाना संभव नहीं हो पता है । यह टैंकर किसी गली में जाकर एक जगह पर रुकती है जहां
गली के सभी लोग इकट्ठा हो जाते है और फिर पानी का वितरण शुरू हो जाता है । परंतु इसमें सभी को समान मात्रा में पानी मिल
पाये यह संभव नहीं हो पाता है । जिसके पास जितना बाल्टी उपलब्ध हो उसे उतना पानी
मिल पाता है । साथ ही रांची शहर में अभी नगर निगम भंग रहने के कारण यहाँ कोई भी वैसा निर्वाचित जनप्रतिनिधि नहीं है, जो पूरे एक वार्ड या क्षेत्र की जवाबदेही ले सके । ऐसे में इस पानी के
वितरण की पूरी की पूरी जवाबदेही नगर निगम द्वारा नियुक्त उस वार्ड के सुपरवाइजर के ऊपर हो जाता है । इस स्थिति में आम पब्लिक से
नोक झोक और उच्चाधिकारियों का दवाब के साथ इन सारी बातों के बीच संतुलन को बरकरार रखते हुए पानी का
वितरण करते रहना एक बहुत बड़ी चुनौती सी होती है ।
उसमें भी रांची शहर के अन्य जगहों की अपेक्षा वार्ड नं -34 के बस्तियों में जिसमें विद्यानगर, गंगानगर, कृष्णा नगर से लेकर
आनंदपुरी चौक तक इस विषम परिस्थितियों में नगर निगम के नियुक्त
सुपरवाइजर के मेहनत का असर दिख रहा है । इस वार्ड के सुपरवाइजर राजकिशोर कुमार रोज सुबह के 5.00 बजे से रात के 9.00 बजे तक टैंकर में
पानी भरवाने और उस पानी को जरूरतमन्द लोगों तक पहुंचाने में लगे रहते हैं । जिससे पूरी
तरह से सुख चुकी इस धरती में लोगों की पूरी प्यास तो बुझ नहीं पाती है, पर काफी हद तक राहत जरूर हो जाती है ।
वार्ड नंबर 34 के सुपरवाइजर राजकिशोर ने बताया कि इस साल टैंकर में पानी भरने
के लिये अपने वार्ड में जो बोरिंग कराया गया था वह काफी पहले से खराब पड़ा हुआ है, जिस कारण इस बार पानी भी काफी दूर से लाना पड़ता है,
जिसमे काफी जायदा समय भी लग जाता है । फिर भी नगर निगम का प्रयास है कि हरेक
जरूरतमन्द लोगों तक पानी की पहुँच लगातार बनी रहे । परंतु इसके लिये आम लोगों से
भी इतना सहयोग की अपेक्षा है कि वह इस विषम परिस्थिति में जितना अति आवश्यक हो
उतने ही पानी का उपयोग करें और बचे हुए पानी अपने परोस के दूसरे जरूरतमन्द लोगों
को उपयोग करने दें ।
एक ऐसा समय था जब संयुक्त बिहार की
उप राजधानी रांची इसलिए कहलाता था, क्योकि यहाँ गर्मी के मौसम में
पूरे बिहार में सबसे ठंढा और अनुकूल जगह माना जाता था । बिहार सरकार का
ग्रीष्मकालीन विधान सभा, हाई कोर्ट, एजी ऑफिस
सहित कई बड़े कार्यालय आज भी यहाँ इसके गवाह हैं, जिसके उपयोग राज्य
के विभाजन के बाद झारखंड सरकार ने करना शुरू किया । परंतु बढ़ती हुई आबादी और जंगल, पहाड़ सहित यहाँ की प्राकृतिक धरोहर को नुकसान पहुंचाने का नतीजा यह हुआ कि आज से चौबीस साल
पहले जिस रांची शहर में लोग गरमी बिताने के लिये आया करते थे, वहाँ आज गरमी शुरू होते ही लोग यहाँ से पलायन
करने शुरू कर देते हैं। जिनके परिवार के कोई अन्य सदस्य अगर किसी अन्य
शहर में नौकरी या व्यवसाय करते हैं तो वह इस गरमी के मौसम में अपना शहर रांची को छोड़ कुछ दिनों के लिये अपने
किसी परिजन के पास दूसरे शहर में बिताना पसंद करते हैं । अब आज की इस रांची में इस
गरमी के मौसम में वीआईपी लोगों को छोड़कर सिर्फ वही लोग यहाँ रहना चाहते हैं, जिसका किसी भी हाल में यहाँ रहना आवश्यक है, चाहे कितनी भी मुसीबत क्यों न हो ।

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