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ब्राह्मण समाज की उपेक्षा : एक राष्ट्रीय आत्ममंथन की आवश्यकता

✍️ अशोक कुमार झा

प्रधान संपादक — रांची दस्तक एवं PSA Live News

"जिस समाज ने युगों तक राष्ट्र को ज्ञान, नीति और संस्कार दिए, आज वही समाज उपेक्षा और अपमान का पात्र क्यों बन गया है?"

ब्राह्मण — यह शब्द भारतीय सभ्यता में ज्ञान, तप, नीति और आत्मबल का प्रतीक रहा है। इतिहास के पन्ने गवाह हैं कि ब्राह्मणों ने सदैव राष्ट्र के हित में अपने जीवन का बलिदान दिया। उन्होंने सत्ता की लालसा कभी नहीं की, बल्कि सत्ता को दिशा दी। धन-संपदा की चाह नहीं की, बल्कि समाज को नैतिकता का पाठ पढ़ाया। उन्होंने अपने तप और ज्ञान के बदले केवल सम्मान मांगा — और वह भी इसलिए ताकि समाज में संतुलन बना रहे।

लेकिन आज स्थिति उलट गई है। ब्राह्मण समाज जो कभी आदर और श्रद्धा का केंद्र था, वह आज हास्य, अपमान और बहिष्कार का शिकार होता जा रहा है। यह न केवल एक सामाजिक त्रासदी है, बल्कि एक गहरी वैचारिक गिरावट का संकेत है।

इतिहास से वर्तमान तक : ब्राह्मणों की भूमिका

भगवान परशुराम हों या आचार्य चाणक्य, ब्राह्मणों ने भारत को न केवल रक्षक दिए, बल्कि राष्ट्र के राजनीतिक, सामाजिक और नैतिक मार्गदर्शक भी दिए। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर संविधान निर्माण तक ब्राह्मणों का योगदान अनुपम रहा है। लेकिन आज उसी समाज को दोयम दर्जे का नागरिक मान लिया गया है।

यह प्रश्न केवल किसी एक जाति की पीड़ा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय असंतुलन का विषय बन चुका है।

क्या ब्राह्मण होना आज एक अपराध बन गया है?

आज के आरक्षण ढांचे में सबसे उपेक्षित, सबसे अधिक उपहास का शिकार कोई है — तो वह ब्राह्मण वर्ग है।

• 550 अंक लाने वाला ब्राह्मण छात्र मेडिकल कॉलेज में प्रवेश नहीं पाता,
• जबकि 300–350 अंक लाने वाला आरक्षित वर्ग का छात्र आराम से प्रवेश पा लेता है।

यह कैसी न्याय व्यवस्था है?

क्या आरक्षण का अर्थ यह है कि प्रतिभा और मेहनत को जाति के आधार पर कुचल दिया जाए? आरक्षण की मूल भावना थी – जो पीछे हैं, उन्हें आगे लाया जाए। परंतु जब किसी समाज को लगातार पीछे धकेला जाता है, तो वह भावना भेदभाव बन जाती है।

ब्राह्मणों की आर्थिक स्थिति : एक अनदेखी सच्चाई

एक आम धारणा है कि ब्राह्मण आर्थिक रूप से संपन्न होते हैं। लेकिन यदि निष्पक्ष सर्वेक्षण किया जाए तो यह तथ्य सामने आएगा कि आज सबसे अधिक आर्थिक संकट से जूझ रहा वर्ग ब्राह्मणों का है:

• लाखों ब्राह्मण आज दिहाड़ी मजदूरी कर रहे हैं।
• कई ब्राह्मण परिवार सफाई कर्मचारी, रसोइया, क्लर्क जैसे कामों में जीने को विवश हैं।
• हजारों ब्राह्मण छात्र शिक्षा अधूरी छोड़ने को मजबूर हैं, सिर्फ इसलिए क्योंकि कोई आरक्षण, कोई आर्थिक सहायता, कोई सरकारी सहारा नहीं है।

ब्राह्मण-विरोध : सामाजिक न्याय या सुनियोजित साजिश?

आज यदि किसी वर्ग के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी होती है, तो पूरा देश सड़कों पर उतर आता है। लेकिन जब ब्राह्मणों को अपशब्द कहे जाते हैं, उन्हें गालियाँ दी जाती हैं, उन पर पेशाब करने जैसे अमानवीय घटनाएं होती हैं — तो पूरा देश मौन क्यों हो जाता है?

क्या ब्राह्मणों का अपमान अब राजनीतिक और सामाजिक स्वीकृति का हिस्सा बन चुका है?

ब्राह्मण क्या चाहता है?

• ब्राह्मण भीख नहीं मांगता।
• वह विशेषाधिकार नहीं चाहता।
• वह केवल यह चाहता है — अपने ज्ञान, तप और त्याग के लिए आदर और सम्मान।

यह मांग किसी जातिगत अहंकार की नहीं, बल्कि एक सभ्यता की बुनियाद की रक्षा की मांग है। अगर समाज के सबसे ज्ञानवान, संवेदनशील और नैतिक आधार को ही आप अपमानित करेंगे, तो देश किस दिशा में जाएगा?

यह समय है आत्मचिंतन का, न कि बहिष्कार का

यह लेख किसी वर्ग के विरोध में नहीं है। यह केवल यह याद दिलाने का प्रयास है कि राष्ट्र की आत्मा विविधताओं में संतुलन से ही सुरक्षित रह सकती है। ब्राह्मणों के साथ हो रहे सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक अन्याय की अनदेखी राष्ट्र के भविष्य के लिए घातक हो सकती है।

"ब्राह्मणों का सम्मान सिर्फ एक जाति का विषय नहीं,
यह राष्ट्र के बौद्धिक, नैतिक और सांस्कृतिक संतुलन का मूल है।"

आज नहीं सोचे, तो कल इतिहास हमें माफ नहीं करेगा।
अब समय है — सम्मान की पुनर्स्थापना का।

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