लेखक: अशोक कुमार झा, प्रधान संपादक – PSA Live News व ‘रांची दस्तक’
जब दो परमाणु शक्तियाँ आमने-सामने हों, और दोनों के बीच दशकों से दुश्मनी की दीवार खड़ी हो, तो
किसी भी छोटे-बड़े घटनाक्रम को हल्के में नहीं लिया जा सकता। हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच 10 मई 2025 को घोषित पूर्ण युद्धविराम भी ऐसा ही एक संवेदनशील और निर्णायक क्षण था—ऐसा क्षण जो दक्षिण एशिया के भविष्य को परिभाषित कर सकता है। लेकिन इस गंभीर घटनाक्रम को लेकर अब एक नया विवाद खड़ा हो गया है—वो है अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का 'यू-टर्न' वाला बयान।ट्रंप ने कतर के दोहा में दिए गए एक
भाषण में यह कहकर सभी को चौंका दिया कि उन्होंने भले ही भारत और पाकिस्तान के बीच
"सीधे मध्यस्थता" न की हो,
लेकिन उन्होंने दोनों देशों के बीच
शत्रुता को शांत करने में “मदद” की। उन्होंने यह भी कहा कि अगर यह सीजफायर कायम रहता है, तो इसका कुछ श्रेय
उन्हें जाना चाहिए।
डोनाल्ड
ट्रंप का दावा: हकीकत या भ्रम?
यह पहली बार नहीं है जब ट्रंप ने भारत-पाकिस्तान संबंधों पर विवादास्पद बयान दिया हो। 2019 में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मुलाकात के बाद प्रेस कांफ्रेंस में दावा किया था कि मोदी ने उन्हें कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता के लिए कहा है। तब भारतीय विदेश मंत्रालय ने तत्काल इस दावे का खंडन किया था और साफ कहा था कि कश्मीर एक द्विपक्षीय मुद्दा है, और किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता की जरूरत नहीं।
अब एक बार फिर वही ट्रंप ने आज बेहद चालाकी से अपने शब्दों की बाजीगरी करते हुए कहा है, “मैं यह नहीं कहता कि
मैंने मध्यस्थता की, लेकिन मैंने जरूर मदद की।”
अब सवाल उठता है कि यह ‘मदद’ किस रूप में की गई? क्या दोनों देशों से
ट्रंप की कोई प्रत्यक्ष बातचीत हुई?
क्या किसी राजनयिक चैनल के माध्यम से
कोई ठोस पहल हुई? या फिर यह सिर्फ एक राजनीतिक बयान है, ताकि अंतरराष्ट्रीय
मंच पर अपनी प्रासंगिकता साबित की जा सके?
हिंदुस्तान
की स्पष्ट नीति: कोई मध्यस्थता नहीं
हिंदुस्तान की विदेश नीति हमेशा से इस
बात पर अडिग रही है कि हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच के मुद्दे द्विपक्षीय हैं और इन्हें आपसी
बातचीत से ही सुलझाया जाएगा। किसी तीसरे देश या संस्था को इस प्रक्रिया में शामिल
होने की अनुमति नहीं दी जाएगी—चाहे वह अमेरिका जैसा महाशक्ति राष्ट्र ही क्यों न हो। यही
कारण है कि ट्रंप का यह बयान आज न केवल भ्रामक हो गया है, बल्कि हिंदुस्तान
की विदेश नीति की सार्वभौमिकता पर भी
आंशिक रूप से प्रश्नचिन्ह लगाने वाला
है।
सीजफायर
की पृष्ठभूमि: पहलगाम हमला और ऑपरेशन सिंदूर
डोनाल्ड ट्रंप के बयान को समझने से पहले, हमें हालिया घटनाक्रम
को फिर से खंगालना होगा। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल 2025 को
हुए भीषण आतंकी हमले में 26 निर्दोष पर्यटकों की मौत ने पूरे देश को झकझोर दिया था। इसके जवाब में
भारतीय सेना ने 6-7 मई को ऑपरेशन सिंदूर
नामक सैन्य कार्रवाई चलाकर पाकिस्तान
अधिकृत कश्मीर (PoK) में स्थित आतंकियों के ठिकानों को नष्ट किया।
भारतीय रक्षा सूत्रों के अनुसार, इस ऑपरेशन में 100 से अधिक आतंकियों को
मार गिराया गया और पाकिस्तान की ओर से की गई मिसाइल व ड्रोन स्ट्राइक का जवाब एयर
डिफेंस सिस्टम ने मुस्तैदी से दिया। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस टकराव ने युद्ध जैसे
हालात पैदा कर दिए थे। ऐसे में हिंदुस्तान और पाकिस्तान का सीजफायर पर सहमत होना, स्वाभाविक रूप से
वैश्विक समुदाय के लिए राहत की खबर थी।
क्या
अमेरिका का हाथ था?
इस प्रश्न का उत्तर सीधा है—नहीं। ट्रंप ने जिस समय सोशल मीडिया पर सीजफायर की घोषणा की थी, वह महज एक प्रचारात्मक दावा
था। असल में यह घोषणा पहले से दोनों
देशों के सैन्य और कूटनीतिक चैनलों के बीच बातचीत के बाद हुई थी, और अमेरिका का इसमें
कोई प्रत्यक्ष योगदान नहीं था।
ट्रंप ने अपनी टिप्पणी में यह भी जोड़ा
कि भारत और पाकिस्तान “1000 सालों से लड़ते आ रहे हैं।”
जबकि पाकिस्तान के बने हुए सिर्फ अभी 77
साल पूरे हुए है । यह बयान ऐतिहासिक
रूप से न केवल गलत है, बल्कि दक्षिण एशिया की जटिलता को सरलीकृत करके पेश करने की एक
अपरिपक्व कोशिश है। इस प्रकार के बयान दुनिया के सबसे अस्थिर क्षेत्रों में से एक
को और अधिक भड़काने का काम करते हैं।
सियासी
महत्वाकांक्षा या कूटनीतिक चाल?
डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर अमेरिका में
राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव जीत चुके
हैं। उनकी राजनीति अक्सर बड़े और भड़काऊ
बयानों पर ही टिकी रही है। उनका यह अटपटा बयान भी उसी रणनीति का एक
हिस्सा लगता है, जहां वह वैश्विक मंच पर खुद को एक "शांति निर्माता"
के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि ट्रंप के कार्यकाल
में अमेरिकी विदेश नीति असंतुलित और अनिश्चितता से भरी रही है। अफगानिस्तान से
वापसी का असंगठित निर्णय, ईरान परमाणु समझौते से बाहर निकलना और नाटो सहयोगियों के साथ
तनाव, इन सभी घटनाओं से ट्रंप की कूटनीतिक योग्यता पहले ही सवालों
के घेरे में रही है।
हिंदुस्तान
को चाहिए आत्मनिर्भर कूटनीति
आज यह सीजफायर चाहे जिस किसी भी कारण से हुआ हो, इसके मूल में चाहे डर हो, या दबाव या फिर विवेक —हिंदुस्तान को यह हमेशा सुनिश्चित करना होगा कि उसकी सीमाएं सुरक्षित रहें और कोई भी राष्ट्र या नेता उसकी सुरक्षा नीति पर राजनीतिक लाभ के लिए सवाल न उठा सके। ट्रंप का यह अटपटा बयान भले ही खबरों में कुछ दिन चर्चा का विषय बना रहे, लेकिन इससे यह तय हो जाना चाहिए कि हिंदुस्तान की सुरक्षा और कूटनीति केवल नई दिल्ली में तय होगी, वॉशिंगटन या दोहा में नहीं।

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