गृह, कारा एवं आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से यह आदेश जारी किया गया है, जिसमें मृतक के निकटतम आश्रित को राहत राशि देने की स्वीकृति दी गई है। मुआवजा राशि का भुगतान आपदा राहत कोष से किया जाएगा।
मृतकों की पहचान चकमा गांव निवासी पति-पत्नी के रूप में हुई थी, जिनकी हत्या गांव के ही कुछ लोगों ने डायन होने के शक में कर दी थी। इस जघन्य कांड के बाद पूरे इलाके में दहशत और आक्रोश फैल गया था। पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए कई आरोपियों को गिरफ्तार किया था और मामले में चार्जशीट भी दायर की जा चुकी है।
सामाजिक कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार संगठनों ने सरकार से लगातार मांग की थी कि पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने के साथ आर्थिक सहायता भी दी जाए। सरकार की यह देर से मिली मदद राहत की एक छोटी किरण जरूर है, लेकिन इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या झारखंड जैसे राज्य में आज भी डायन बिसाही जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ पर्याप्त जागरूकता और कड़ा कानूनन अमल मौजूद है?
ज्ञात हो कि झारखंड में डायन प्रथा के नाम पर हर साल दर्जनों महिलाएं और कभी-कभी उनके परिवार भी हिंसा का शिकार बनते हैं। सरकार ने भले मुआवजा देने की प्रक्रिया पूरी की हो, लेकिन इस सामाजिक बुराई के खिलाफ जमीनी स्तर पर सशक्त अभियान की आवश्यकता लगातार महसूस की जा रही है।

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