गिरिडीह/पीरटांड। झारखंड के गिरिडीह जिले के पीरटांड प्रखंड से इंसानियत को झकझोर देने वाली एक हृदयविदारक घटना सामने आई है। एक मां ने अपनी नवजात बच्ची को जंगल में छोड़ दिया। भूख और डर से कांपती उस मासूम की चीख पुकार जंगल की खामोशी चीरती रही, जब तक कि पास ही बकरी चरा रही कुंती देवी की नजर उस पर नहीं पड़ी।
कुंती देवी ने जैसे ही बच्ची को देखा, उनके कदम ठिठक गए। नंगी धरती पर, चींटियों और कीड़ों के बीच बिलखती नवजात को देखकर उन्होंने बिना देर किए अपनी रिश्तेदार तिलेश्वरी देवी को खबर दी। तिलेश्वरी देवी वर्षों से निःसंतान थीं और जैसे ही उन्होंने उस बच्ची को गोद में लिया, उनके चेहरे पर मातृत्व का एक दुर्लभ सुकून उभर आया।
मां बनने की ख्वाहिश टूटी रास्ते में
तिलेश्वरी देवी ने बच्ची को सीने से लगाकर कहा कि वह उसे अपनी संतान मानकर जीवन भर पालेंगी। मगर नियति को कुछ और ही मंजूर था। बच्ची के सिर पर चोट के निशान देखकर उन्होंने झटपट उसे अस्पताल पहुंचाने का निर्णय लिया। लेकिन अस्पताल पहुंचने से पहले ही नवजात ने रास्ते में दम तोड़ दिया।
मातृत्व की ममता और मौत का मातम
बच्ची को गोद में लिए फूट-फूटकर रोती तिलेश्वरी देवी का दृश्य हर किसी की आंखें नम कर गया। जिन बाहों में उसे जीवन भर का प्यार मिलने वाला था, उन्हीं बाहों में उसने अंतिम सांस ली।
पुलिस सक्रिय, मां की तलाश शुरू
घटना की सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची। बच्ची के शव को पोस्टमॉर्टम के लिए गिरिडीह सदर अस्पताल भेजा गया है। साथ ही, उस महिला की तलाश शुरू कर दी गई है जिसने बच्ची को जन्म देने के बाद जंगल में मरने के लिए छोड़ दिया।
सवाल कई, जवाब अनसुने
यह घटना समाज और व्यवस्था दोनों से कई सवाल पूछती है—क्यों एक मां को अपनी नवजात को जंगल में छोड़ने की मजबूरी हुई? क्या गरीबी, सामाजिक तिरस्कार या कोई और मजबूरी इसके पीछे थी? वहीं यह भी सवाल है कि यदि बच्ची समय पर अस्पताल पहुंचा दी जाती, तो क्या उसकी जान बचाई जा सकती थी?
इस घटना ने यह साबित कर दिया कि झारखंड में महिलाओं और नवजात बच्चों की सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य को लेकर अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
Reviewed by PSA Live News
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4:27:00 pm
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