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कैसे बनी झारखंड की शमा परवीन अलकायदा मॉड्यूल की 'लास्ट बॉस': इंस्टाग्राम से आतंक का जाल तक


लेखक : अशोक कुमार झा।


हिंदुस्तान की धरती पर आतंकवाद का चेहरा तेजी से बदल रहा है। अब यह केवल सीमाओं से पार कर हथियार और बारूद के ज़रिए नहीं, बल्कि स्मार्टफोन और सोशल मीडिया की स्क्रीन से युवाओं के दिल-दिमाग तक पहुँच रहा है। झारखंड की 30 वर्षीय शमा परवीन की गिरफ्तारी इसी बदलते आतंकवादी तंत्र का जीवंत उदाहरण है। गुजरात एटीएस द्वारा बेंगलुरु से गिरफ्तार की गई यह महिला अल-कायदा इन द इंडियन सबकॉन्टिनेंट (AQIS) के भारत में ऑनलाइन मॉड्यूल की लास्ट बॉसबताई जा रही है।

यह घटना केवल एक व्यक्ति की गिरफ्तारी नहीं, बल्कि एक गहरी सच्चाई का खुलासा हैहिंदुस्तान का युवा वर्ग अब सोशल मीडिया के जरिये कट्टरपंथी संगठनों के सबसे आसान निशाने पर है। आतंकवाद की यह नई परत समाज और सुरक्षा तंत्र दोनों के लिए अभूतपूर्व चुनौती लेकर आई है।

सोशल मीडिया: आतंक का नया हथियार

एक दौर था जब आतंकवादी संगठन अपने एजेंडे को फैलाने के लिए गुप्त ठिकानों, हथियारों की तस्करी और सीमा पार से भेजे गए प्रशिक्षित लड़ाकों पर निर्भर रहते थे। लेकिन आज हालात बदल चुके हैं। अब आतंकवादियों के हाथ में बंदूक से ज्यादा ताकतवर हथियार हैसोशल मीडिया

इंस्टाग्राम, फेसबुक, टेलीग्राम और व्हाट्सऐप जैसे मंचों के जरिये आतंकी संगठन युवाओं तक सीधी पहुँच बना रहे हैं। धार्मिक कहानियाँ, भड़काऊ पोस्ट्स, वीडियो और कथित जिहाद की कहानियाँ उनके हथियार हैं।
शमा परवीन इसी डिजिटल जिहाद की प्रमुख कड़ी साबित हुई। उसने इंस्टाग्राम अकाउंट्स से युवाओं के साथ भावनात्मक जुड़ाव बनाया, उन्हें कथित धार्मिक आख्यान सुनाए और धीरे-धीरे कट्टरपंथ के गहरे दलदल में खींच लिया।

सोचिए, जब एक क्लिक से हजारों युवाओं तक पहुँच संभव हो, तो आतंकियों के लिए यह रास्ता कितना आसान हो जाता है। अब उन्हें न तो सीमा पार करनी पड़ती है और न ही हथियारों का जखीरा भेजने की जरूरत होती है।

झारखंड से बेंगलुरु तक: एक खतरनाक सफर

शमा परवीन की कहानी चौंकाने वाली है। झारखंड के एक सामान्य परिवार की यह महिला पढ़ाई और रोजगार की तलाश में बेंगलुरु पहुँची। शुरुआत में उसका जीवन साधारण था, लेकिन धीरे-धीरे वह AQIS के संपर्क में आई।

जांच एजेंसियों का कहना है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान में बैठे आकाओं ने उसे योजनाबद्ध तरीके से रेडिक्लाइज किया। उसे ऑनलाइन धार्मिक तालीम के नाम पर भड़काऊ सामग्री दी गई और धीरे-धीरे संगठन के एजेंडे को फैलाने का जिम्मा सौंपा गया।
महिला होने के कारण उस पर संदेह कम हुआ और उसने इस कमजोरी को ताकत में बदलते हुए युवाओं से गहरे संवाद स्थापित किए।

बेंगलुरु जैसे महानगर में जहाँ तकनीकी विकास और शिक्षा के अवसर बहुत हैं, वहाँ शमा जैसी महिला का AQIS की "डिजिटल कमांडर" बन जाना सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ा सबक है।

महिलाएं क्यों बन रही हैं आतंक की नई ताकत

विशेषज्ञों का मानना है कि महिलाएं आतंकी संगठनों के लिए खास महत्व रखती हैं क्योंकि समाज में उन पर सामान्यतः संदेह कम किया जाता है। वे भावनात्मक संवाद और सहानुभूति का सहारा लेकर युवाओं को अधिक प्रभावी ढंग से प्रभावित कर सकती हैं।

शमा परवीन इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। वह केवल सहायक नहीं, बल्कि पूरे ऑनलाइन मॉड्यूल की संचालिका थी। उसने युवाओं को धार्मिक कर्तव्यों, जन्नत और शहादत के झूठे वादों से प्रभावित किया और उन्हें संगठन के लिए तैयार किया।
यह स्पष्ट है कि आतंक का चेहरा अब केवल पुरुषों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि महिलाएं भी उतनी ही खतरनाक भूमिका निभा सकती हैं।

AQIS और हिंदुस्तान की चुनौती

अलकायदा इन द इंडियन सबकॉन्टिनेंट (AQIS) की स्थापना 2014 में हुई थी। इसका घोषित उद्देश्य भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान और म्यांमार में इस्लामी शासन स्थापित करना है।
यह संगठन केवल हिंसक हमलों से ही नहीं, बल्कि सोशल मीडिया और शिक्षा संस्थानों में घुसपैठ करके धीरे-धीरे लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर करना चाहता है।

हिंदुस्तान आज जब वैश्विक शक्ति के रूप में उभर रहा है, ऐसे में AQIS जैसे संगठनों की साजिशें न केवल हमारी सुरक्षा बल्कि हमारी सामाजिक संरचना को भी खतरे में डाल रही हैं। शमा परवीन का मामला इस साजिश की गंभीरता को उजागर करता है।

डिजिटल जिहाद: आधुनिक आतंक का सबसे बड़ा खतरा

आज आतंकवाद की सबसे बड़ी ताकत उसका डिजिटल चेहरा है।

  • एक स्मार्टफोन से हजारों युवाओं तक पहुँच
  • धार्मिक आख्यानों और भ्रामक वीडियो का प्रयोग
  • जन्नत और शहादत की झूठी कहानियों से मानसिक ब्रेनवॉश
  • एन्क्रिप्टेड चैट्स और गुप्त ग्रुप्स के जरिए नेटवर्किंग
  • वर्चुअल ट्रेनिंग और ऑनलाइन हथियार-तकनीक का प्रशिक्षण

यह सब पारंपरिक सुरक्षा उपायों से कहीं अधिक खतरनाक है क्योंकि यह युद्ध हमारे घरों और दिमागों के अंदर लड़ा जा रहा है।

समाज और सुरक्षा तंत्र की जिम्मेदारी

शमा परवीन की गिरफ्तारी केवल पुलिस और एटीएस की जीत नहीं है, बल्कि समाज के लिए चेतावनी है। इस लड़ाई को जीतने के लिए केवल कानून-व्यवस्था पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं होगा।

  1. परिवार की जिम्मेदारी: माता-पिता को सतर्क रहना होगा कि उनके बच्चे सोशल मीडिया पर क्या देख रहे हैं और किससे जुड़ रहे हैं।
  2. शैक्षणिक संस्थानों की भूमिका: स्कूल-कॉलेजों में जागरूकता अभियान चलाए जाएं ताकि युवा कट्टरपंथ के जाल में न फँसें।
  3. सरकार और सुरक्षा एजेंसियों की रणनीति: साइबर मॉनिटरिंग और तकनीकी संसाधनों को मजबूत करना जरूरी है। आतंक से जुड़े अकाउंट्स की पहचान और उन्हें ब्लॉक करने की प्रक्रिया तेज होनी चाहिए।
  4. धार्मिक और सामाजिक संगठनों की भागीदारी: समाज में सही धार्मिक शिक्षाएं और मानवता के संदेश फैलाने के लिए धार्मिक नेताओं को आगे आना होगा।
  5. मीडिया की जिम्मेदारी: समाचार संस्थानों को ऐसे मामलों को सनसनीखेज न बनाकर जिम्मेदारी से प्रस्तुत करना होगा ताकि समाज में सही जागरूकता फैले।

कल की चेतावनी, आज की ज़िम्मेदारी

झारखंड की शमा परवीन की गिरफ्तारी हिंदुस्तान के लिए गहरी चेतावनी है। यह साबित करता है कि आतंकवाद अब सीमाओं से पार होकर नहीं, बल्कि हमारे मोबाइल स्क्रीन से हमारी जिंदगी में प्रवेश कर चुका है।
यदि हम आज सचेत नहीं हुए तो कल हमारे युवाओं को कट्टरपंथ की अंधेरी खाई में धकेल दिया जाएगा।

यह लड़ाई अब केवल हथियारों से नहीं, बल्कि विचारों और तकनीक के स्तर पर भी लड़ी जानी है। और यह ज़िम्मेदारी केवल सरकार की नहीं, बल्कि पूरे समाज की है।

शमा परवीन का केस हमें सिखाता है कि आतंक का यह डिजिटल चेहरा हिंदुस्तान की सबसे बड़ी राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौती है। यदि समय रहते समाज और सुरक्षा तंत्र ने मिलकर ठोस कदम नहीं उठाए, तो कल यह खतरा और गहरा हो सकता है।

 

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