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संत कबीरदास जयंती 11 जून को: समाज सुधारक संत के विचार आज भी प्रासंगिक – संजय सर्राफ

 श्रीकृष्ण प्रणामी सेवा धाम ट्रस्ट की ओर से श्रद्धांजलि कार्यक्रम की तैयारी


रांची/वाराणसी
– भारतीय अध्यात्म, भक्ति और समाज सुधार की त्रिधारा को एक सूत्र में पिरोने वाले महान संत और कवि कबीरदास जी की जयंती इस वर्ष 11 जून, बुधवार को देशभर में श्रद्धा, भक्ति और समाजिक चेतना के भाव के साथ मनाई जाएगी। हिंदू पंचांग के अनुसार यह तिथि ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को पड़ती है। इसी उपलक्ष्य में श्रीकृष्ण प्रणामी सेवा धाम ट्रस्ट द्वारा विशेष कार्यक्रमों की योजना बनाई गई है।

कबीर: वह संत जिन्होंने समाज को आत्मचिंतन सिखाया
ट्रस्ट के प्रवक्ता और हिंदी साहित्य भारती के उपाध्यक्ष श्री संजय सर्राफ ने जानकारी देते हुए कहा कि संत कबीरदास ने न केवल भक्ति साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि सामाजिक चेतना को नई दिशा दी। उन्होंने जीवन पर्यंत समाज में व्याप्त आडंबर, पाखंड, जातिवाद और धार्मिक कट्टरता का मुखर विरोध किया। उनके दोहे और रचनाएं आज भी लोगों के अंतर्मन को झकझोरते हैं और उन्हें सच्चे धर्म की ओर अग्रसर करते हैं।

"ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर" – कबीर का यह मूल मंत्र आज के सामाजिक और राजनीतिक द्वेष के युग में भी उतना ही प्रासंगिक है जितना 15वीं सदी में था।

कबीर का जीवन परिचय – सीमाओं से परे मानवता की पहचान
संत कबीर का जन्म वर्ष 1398 में वाराणसी (काशी) में हुआ माना जाता है। यद्यपि उनके माता-पिता मुस्लिम जुलाहा समुदाय से थे, परंतु कबीरदास ने धर्म और जाति की सीमाओं को लांघते हुए मानवता को ही सर्वोच्च धर्म माना। वे कहते हैं:

"जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान,
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।"

उनकी रचनाएं 'बीजक', 'साखी', 'सबद' और 'अनुराग सागर' के रूप में संग्रहीत हैं, जिनमें जीवन की सच्चाइयों, ईश्वर भक्ति और सामाजिक समरसता का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।

समाज सुधारक के रूप में कबीरदास
संजय सर्राफ ने कहा कि संत कबीरदास एक युग प्रवर्तक विचारक थे जिन्होंने सीधे साधे शब्दों में गूढ़ सत्यों को जन-जन तक पहुँचाया। उन्होंने मूर्ति पूजा, कर्मकांड, तीर्थयात्राओं जैसे बाह्य आडंबरों का विरोध करते हुए कहा कि –

"पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।"

कबीर का मानना था कि ईश्वर किसी एक धर्म, संप्रदाय या विधि में सीमित नहीं है। वे निर्गुण भक्ति के उपासक थे और सीधे आत्मा से परमात्मा के मिलन को ही सच्ची भक्ति मानते थे।

आज भी जीवंत हैं कबीर के विचार
आज जब समाज में धार्मिक असहिष्णुता, जातिवाद और कट्टरता पुनः उभर रही है, तब कबीर के विचार और अधिक प्रासंगिक हो गए हैं। उनकी शिक्षाएँ हमें एक ऐसे समाज की कल्पना करने को प्रेरित करती हैं जो प्रेम, करुणा, समानता और समरसता पर आधारित हो।

जयंती पर देशभर में होंगे विविध कार्यक्रम
संत कबीरदास की जयंती के अवसर पर देशभर में भजन, कीर्तन, प्रवचन, सत्संग और कबीर पंक्तियों के पाठ जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस दिन कबीरपंथी समाज और अन्य श्रद्धालु संत की शिक्षाओं को आत्मसात करने का संकल्प लेते हैं।

संजय सर्राफ ने अपील की – "कबीर के मार्ग पर चलें, सामाजिक समरसता को अपनाएं"
संजय सर्राफ ने कहा कि कबीरदास जयंती केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह आत्म-चिंतन और सामाजिक सुधार का अवसर भी है। उन्होंने जनता से अपील की कि इस दिन को केवल रस्म अदायगी न मानकर कबीरदास जी की शिक्षाओं को अपने जीवन में आत्मसात करें और समाज में प्रेम, भाईचारे और समता के भाव को प्रसारित करें।

कबीर की अमर वाणी – आज का मार्गदर्शन

"बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।"

"कबीरा खड़ा बाजार में, लिए लुकाठी हाथ,
जो घर फूंके आपना, चले हमारे साथ।"

संत कबीरदास की जयंती हमें यह याद दिलाने का दिन है कि सच्चा धर्म प्रेम, करुणा, समता और सेवा में है। उनके विचारों और जीवनदर्शन को आत्मसात कर ही हम एक ऐसे समाज की ओर बढ़ सकते हैं जहाँ न जाति का भेद हो, न पंथ का संघर्ष, बल्कि हो तो सिर्फ मानवता की पूजा।
इस 11 जून को हम सब मिलकर संकल्प लें कि कबीर के सत्य, प्रेम और एकता के संदेश को अपने जीवन में उतारें और इसे समाज में भी फैलाएं। यही संत कबीर को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।


रिपोर्ट: PSA Live News, रांची/वाराणसी
संपर्क: editor@psalivenews.com

संत कबीरदास जयंती 11 जून को: समाज सुधारक संत के विचार आज भी प्रासंगिक – संजय सर्राफ संत कबीरदास जयंती 11 जून को: समाज सुधारक संत के विचार आज भी प्रासंगिक – संजय सर्राफ Reviewed by PSA Live News on 5:05:00 pm Rating: 5

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