पहाड़ों से उठी उम्मीद की आवाज़: JPSC में सफलता पाने वाली पहली पहाड़िया बेटी बनीं बबिता, गांव की मिठाई चीनी से मीठी हो गई
दुमका/रांची। झारखंड की सिविल सेवा परीक्षा (JPSC) के फाइनल परिणाम में इस बार जो नाम सबसे ज्यादा चर्चा में है, वो है — बबिता पहाड़िया। संथाल परगना के सुदूर और पिछड़े इलाके दुमका ज़िले के आसनसोल गांव से ताल्लुक रखने वाली बबिता, शायद पहली पहाड़िया जनजाति की बेटी हैं, जिन्होंने JPSC जैसी कठिन परीक्षा पास कर राज्य प्रशासनिक सेवा में अपना स्थान सुनिश्चित किया है। यह सिर्फ एक व्यक्तिगत सफलता नहीं है, बल्कि एक आदिवासी समाज की सामाजिक प्रगति और बदलाव की कहानी है।
अभावों में पला सपना, चीनी से मनाई गई मिठाई
बबिता की सफलता पर गांव में खुशी का माहौल है, लेकिन यह कोई साधारण जश्न नहीं है। मिठाई के पैसे नहीं थे, तो मां ने चीनी बांटकर खुशी मनाई। शायद यही उस मिट्टी की सच्ची मिठास है जो संघर्ष से तपकर हीरे बनाती है।
बबिता के पिता बिंदुलाल पहाड़िया एक प्राइवेट स्कूल में हेल्पर हैं। परिवार बेहद साधारण है — सीमित संसाधन, समाज का दबाव और रोजमर्रा की आर्थिक चुनौतियां। चार भाई-बहनों में बबिता सबसे बड़ी हैं। छोटी बहन की शादी हो चुकी है, लेकिन बबिता ने अपने सपनों को प्राथमिकता दी और सरकारी अफसर बनने की ज़िद में अब तक विवाह नहीं किया। इसके लिए उन्हें और उनके परिवार को गांववालों और रिश्तेदारों से तानों और सामाजिक दबाव का भी सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी।
गांव से बाहर कभी नहीं गई, लेकिन पढ़ाई में कोई कमी नहीं छोड़ी
बबिता ने कभी अपने गांव आसनसोल से बाहर पढ़ाई के लिए कदम नहीं रखा। कोचिंग, गाइडेंस, या किताबों की दुनिया से दूर रहकर भी उन्होंने इंटरनेट को अपना शिक्षक बनाया। उन्होंने गूगल और यूट्यूब के माध्यम से सेल्फ-स्टडी की, खुद नोट्स तैयार किए और उन्हें गहराई से समझा। यह आधुनिक तकनीक और ग्रामीण प्रतिभा का वह संगम है, जो आज की डिजिटल पीढ़ी के लिए उदाहरण बन चुका है।
समाज को तोड़ा, नई परंपरा बनाई
बबिता ने न केवल खुद को बदला, बल्कि वह अपने समाज के लिए एक प्रेरणा की चिंगारी बन गई हैं। पहाड़िया जनजाति, जो आज भी शिक्षा और प्रशासनिक सेवा में काफी पीछे मानी जाती है, उसकी एक बेटी का अधिकारी बनना ऐतिहासिक उपलब्धि है। वह आज उन हजारों पहाड़िया बेटियों के लिए रोल मॉडल हैं, जो अपने सपनों को लेकर संघर्षरत हैं।
संघर्ष को गहना बनाया, बहाना नहीं
बबिता कहती हैं – "मेरे पास समय कम था, साधन कम थे, लेकिन मन में ठान लिया था कि पीछे नहीं हटूंगी।"
उनके इसी आत्मबल ने उन्हें JPSC परीक्षा में 337वीं रैंक दिलाई। अब वे झारखंड प्रशासनिक सेवा में अधिकारी बनेंगी और वही समाज जो कभी उनकी राह में दीवार बनता था, अब उन्हें सलाम कर रहा है।
मां की आंखों में आंसू, लेकिन गर्व के
जब मीडिया ने बबिता की मां से पूछा कि अब कैसा लग रहा है, तो उन्होंने आंखों से बहते आंसुओं के बीच सिर्फ इतना कहा — "मेरी बेटी ने मेरी गरीबी को हरा दिया। अब कोई नहीं कहेगा कि पहाड़िया की बेटियां कुछ नहीं कर सकतीं।"
बबिता पहाड़िया की यह कहानी केवल एक सफलता की कहानी नहीं है, यह उन तमाम लड़कियों के लिए दीपक है, जो अभाव, ताने, गरीबी और सामाजिक बंधनों से लड़ रही हैं।
यह कहानी बताती है कि अगर संकल्प मजबूत हो, तो संसाधन नहीं, समर्पण काम आता है।
बबिता को सलाम।
उनकी मां, उनके पिता और उस गांव को भी सलाम, जिसने अब एक बेटी के रूप में झारखंड को रोशन किया।
(PSA Live News | संपादक – अशोक कुमार झा)

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