कार्तिक मास के पांच दिवसीय व्रतानुष्ठान का हुआ दिव्य समापन — वैकुण्ठ चतुर्दशी पर भगवान श्री वेंकटेश्वर का हुआ भव्य महाभिषेक
रांची, 04 नवम्बर : दिव्यदेशम् श्री लक्ष्मी वेंकटेश्वर (तिरुपति बालाजी) मंदिर, रांची में चल रहे कार्तिक मास व्रतानुष्ठान का आज चौथे दिन वैकुण्ठ चतुर्दशी के अवसर पर भव्य और भावनापूर्ण आयोजन किया गया। भगवान श्री वेंकटेश्वर की भक्ति में डूबे सैकड़ों भक्तों ने दूध, दधि, शहद, हल्दी, चंदन और गंगाजल से महाभिषेक कर अपने आराध्य को श्रद्धा सुमन अर्पित किए।
मंदिर प्रांगण “गोविंद गोविंद, वेंकटेश मुरारी” के उद्घोषों से गूंज उठा। पूरे परिसर में भक्ति, शांति और दिव्यता का ऐसा वातावरण था जिसमें हर भक्त स्वयं को भगवान श्रीमन्नारायण के श्रीचरणों में समर्पित महसूस कर रहा था।
कार्तिक मास व्रतानुष्ठान का आध्यात्मिक महत्व
मंदिर के आचार्यों और वैदिक विद्वानों ने बताया कि कार्तिक मास का यह अंतिम चरण अत्यंत पुण्यदायी माना गया है।
पुराणों के अनुसार —
“जो भक्त कार्तिक के अंतिम पाँच दिनों में भगवान विष्णु की आराधना करते हैं, उनके सभी पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं और उन्हें परमपद की प्राप्ति होती है।”
इन पांच तिथियों — एकादशी से लेकर पौर्णमासी तक — को पुष्करिणी तिथियाँ कहा गया है।
पवित्र पंचरात्र आगम शास्त्र के अनुसार —
- एकादशी को भगवान श्रीमन्नारायण योगनिद्रा से जागते हैं।
- द्वादशी को देवताओं से मिलते हैं।
- त्रयोदशी को वे जगत को दर्शन देते हैं।
- चतुर्दशी (वैकुण्ठ चतुर्दशी) को सभी देवता उनकी आराधना करते हैं।
- और पूर्णिमा के दिन समस्त व्रतों का उद्यापन होता है, जिससे मासभर के सभी पुण्यों का फल प्राप्त होता है।
मंदिर के मुख्य आचार्य ने कहा कि —
“इन दिनों में जो व्यक्ति स्नान, दान, दीपदान और श्रीहरि का पूजन करता है, उसे अश्वमेध यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। यह समय आत्मशुद्धि, पितृ उद्धार और ईश्वर साक्षात्कार का अवसर प्रदान करता है।”
वैकुण्ठ चतुर्दशी का भव्य आयोजन
04 नवम्बर की प्रातः बेला में भगवान श्री वेंकटेश्वर का महाभिषेक पंचामृत से सम्पन्न हुआ — जिसमें दूध, दधि, शहद, घृत, शर्करा के साथ हल्दी, चंदन, नारियल जल और गंगाजल का प्रयोग किया गया।
पूजन के पश्चात मंदिर परिसर में वेद मंत्रों, उपनिषदों, देशिक स्तोत्रों और विष्णु सहस्रनाम का उच्चारण किया गया।
मंदिर के पुजारियों द्वारा भगवान का दिव्य श्रृंगार किया गया — जिसमें रत्नजटित मुकुट, पीताम्बर, तुलसीमाला और पुष्पहार से भगवान का अलंकरण किया गया। इसके बाद महाआरती और नैवेद्य भोग अर्पित किया गया। आरती के समय मंदिर परिसर में दीपों की ज्योति और शंखध्वनि से अलौकिक वातावरण निर्मित हो गया।
भक्तों की श्रद्धा और सहभागिता
इस पावन अवसर के महाभिषेक यजमान रहे श्री अमरेश कुमार गुप्ता एवं उनकी धर्मपत्नी श्रीमती ऊषा गुप्ता (निवासी रांची), जिन्होंने विधिवत पूजन और अर्चना कर भगवान श्री वेंकटेश्वर से परिवार और समाज के कल्याण की प्रार्थना की।
मंदिर समिति के अध्यक्ष ने बताया कि पूरे व्रतानुष्ठान के दौरान भक्तों ने प्रत्येक दिन गीता पाठ, विष्णु सहस्रनाम अर्चना, दीपदान और हरि नाम संकीर्तन में भाग लिया।
पूर्णिमा के दिन व्रत का समापन उद्यापन पूजन और सामूहिक दीपदान के साथ किया जाएगा। इसके बाद भक्तों के लिए महाप्रसाद वितरण का आयोजन भी होगा।
क्या कहते हैं शास्त्र
पद्म पुराण और स्कंद पुराण के अनुसार —
“कार्तिक मास के अंतिम तीन दिन — त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णिमा — समस्त पापों को नष्ट करने वाली मानी गई हैं। जो भक्त इन दिनों में भगवान विष्णु का पूजन करते हैं, वे अपने पितरों का उद्धार करते हैं और मोक्ष की प्राप्ति करते हैं।”
आध्यात्मिक संदेश
मंदिर के आचार्य ने कहा —
“कार्तिक मास व्रतानुष्ठान आत्मशुद्धि और ईश्वर प्रेम का प्रतीक है। जब भक्त दीपदान करता है, तो वह केवल दीप नहीं जलाता, बल्कि अपने हृदय में ज्ञान और भक्ति की ज्योति प्रज्वलित करता है। यही ज्योति संसार के अंधकार को मिटाने की शक्ति रखती है।”
इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु, भक्तगण और वैदिक विद्वान उपस्थित रहे। सभी ने भगवान श्री वेंकटेश्वर के चरणों में पुष्प अर्पित कर अपनी मनोकामनाएँ प्रकट कीं।
(रिपोर्ट : PSA Live News / Ranchi Dastak ब्यूरो, रांची)
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6:35:00 pm
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