यह दिवस उपभोक्ताओं को सजग, जागरूक और संगठित बनने का देता है संदेश: संजय सर्राफ
हिंदी साहित्य भारती के उपाध्यक्ष सह झारखंड पेरेंट्स एसोसिएशन के प्रवक्ता संजय सर्राफ ने कहा है कि भारत में राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस प्रत्येक वर्ष 24 दिसंबर को मनाया जाता है। यह दिवस उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के लागू होने की स्मृति में मनाया जाता है, जिसे 24 दिसंबर 1986 को संसद ने पारित किया था। इस अधिनियम ने उपभोक्ताओं के अधिकारों को कानूनी मान्यता दी और शोषण, धोखाधड़ी तथा अनुचित व्यापार व्यवहारों के विरुद्ध प्रभावी संरक्षण का मार्ग प्रशस्त किया। इसी ऐतिहासिक महत्व के कारण यह दिवस उपभोक्ता जागरूकता और सशक्तिकरण का प्रतीक बन गया है।राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक करना है,आधुनिक बाजार व्यवस्था में उपभोक्ता अनेक प्रकार के विज्ञापनों,ऑनलाइन खरीद-बिक्री और जटिल सेवाओं से जुड़ा होता है। ऐसे में सही जानकारी के अभाव में ठगे जाने की आशंका बढ़ जाती है। यह दिवस उपभोक्ताओं को सजग, जागरूक और संगठित बनने का संदेश देता है।उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उपभोक्ताओं को छह प्रमुख अधिकार प्रदान किए गए हैं-सुरक्षा का अधिकार,सूचना का अधिकार,चयन का अधिकार,सुने जाने का अधिकार, प्रतितोष पाने का अधिकार, तथा उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार, इन अधिकारों के माध्यम से उपभोक्ता न केवल दोषपूर्ण वस्तुओं और सेवाओं के विरुद्ध शिकायत दर्ज कर सकता है, बल्कि उचित मुआवजा भी प्राप्त कर सकता है। इसके लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता आयोगों की स्थापना की गई है, जिससे न्याय सुलभ और सरल हुआ है।इस दिवस की महत्ता इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि यह ईमानदार व्यापार और उत्तरदायी बाजार व्यवस्था को प्रोत्साहित करता है। जब उपभोक्ता जागरूक होता है, तो विक्रेता और सेवा प्रदाता भी गुणवत्ता, पारदर्शिता और नैतिकता का पालन करने के लिए बाध्य होते हैं। इससे स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलता है और अर्थव्यवस्था मजबूत होती है।आज के डिजिटल युग में, जहाँ ई-कॉमर्स और ऑनलाइन भुगतान तेजी से बढ़े हैं, राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस की प्रासंगिकता और अधिक हो गई है। यह दिवस उपभोक्ताओं को सुरक्षित लेन-देन, सही जानकारी की जांच और अपने अधिकारों के प्रयोग के लिए प्रेरित करता है।अंततः राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस केवल एक औपचारिक आयोजन नहीं, बल्कि जागरूक नागरिकता का उत्सव है। एक सजग उपभोक्ता ही सशक्त समाज और सुदृढ़ राष्ट्र की नींव रखता है।
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5:25:00 pm
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