ओडिशा की प्रथम महिला कलाकार बसंत कुमारी सामंत: जिन्होंने पेंटिंग को बनाया महिलाओं के लिए पहचान का ज़रिया
विशेष रिपोर्ट, भुवनेश्वर से।
भारतीय स्वतंत्रता के ठीक एक दशक बाद जब देश नवनिर्माण की राह पर अग्रसर हो रहा था, तब ओडिशा के गंजम ज़िले के खलीकोट में एक ऐतिहासिक पहल हुई—‘गवर्नमेंट स्कूल ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट्स’ की स्थापना। एक समय जब औसत ओड़िया परिवारों में लड़कियों को घर की चारदीवारी लांघने की इजाज़त तक नहीं थी, तब बसंत कुमारी सामंत ने न केवल उस संस्थान में दाख़िला लिया, बल्कि अपनी कला साधना और लेखन से ओडिशा की सांस्कृतिक पहचान को एक नया आयाम दिया।
आज वह केवल एक कलाकार नहीं, बल्कि ओडिशा की पहली पेशेवर महिला चित्रकार, कला शिक्षिका, लेखिका और महिला सशक्तिकरण की प्रेरणा स्तंभ बन चुकी हैं।
शुरुआत एक घूंघट में लिपटी आकांक्षा से...
साल था 1957। स्वतंत्र भारत को दस वर्ष पूरे हो चुके थे, पर ग्रामीण ओडिशा की बेटियों के लिए सामाजिक बंधन आज़ादी से कहीं अधिक मज़बूत थे। ऐसे माहौल में बसंत कुमारी सामंत के माता-पिता ने एक साहसी निर्णय लिया—अपनी बेटी को गवर्नमेंट स्कूल ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट्स, खलीकोट में दाखिला दिलवाने का। यह वह समय था जब पेंटिंग को करियर नहीं, शौक माना जाता था—और वह भी केवल पुरुषों का।
लेकिन बसंत कुमारी ने न केवल इस रूढ़ धारणा को तोड़ा, बल्कि 1961 में ललित कला (तेल चित्रकला) में डिप्लोमा प्राप्त कर ओडिशा की पहली महिला चित्रकार के रूप में इतिहास रच दिया।
कलाकार, शिक्षिका और महिला प्रेरणा का स्वरूप
बसंत कुमारी सामंत का जीवन केवल चित्रकला तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने ललित कला के साथ-साथ साहित्य को भी अपने अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। उनके अनुसार:
"मैंने पढ़ाई की, साहित्य और ललित कला पढ़ी, और अपने सपनों का करियर बनाया। कला और साहित्य में रुचि रखने वाले किसी व्यक्ति के लिए शिक्षण से ज़्यादा उपयुक्त पेशा कोई नहीं हो सकता।"
उनकी सोच यह रही कि कला को केवल दीवारों की शोभा न बनाकर, समाज के विकास का औज़ार बनाया जाए। विशेष रूप से महिलाओं के लिए पेंटिंग को करियर विकल्प के रूप में स्थापित करना उनका मिशन बन गया। वह कहती हैं:
“यहाँ ओडिशा में युवा उत्साहित हैं, लेकिन अवसर नहीं हैं। सरकार की ज़िम्मेदारी है कि शिक्षा के बाद उन्हें कलात्मक करियर में टिकने का आधार दे।”
गुरुओं से मिली प्रेरणा, शिष्यों को दी दिशा
बसंत कुमारी सामंत ने अपने कलात्मक जीवन में कई महापुरुषों से प्रेरणा ली। वे कहती हैं:
“शरत चंद्र देव, जीत चरण मोहंती, अजीत केशरी रे और रबी नारायण नायक जैसे कलाकारों की चित्रकृतियाँ मेरे जीवन की दिशा बनीं। जब भी पेंटब्रश उठाती हूँ, वे मेरे साथ होते हैं।”
आज उन्हीं की प्रेरणा से कई छात्राएं, विशेषकर ग्रामीण ओडिशा से, चित्रकला को न केवल अपनाती हैं बल्कि उसमें अपनी स्वतंत्र पहचान भी बनाती हैं।
अद्भुत यात्रा, अनगिनत सम्मान
बसंत कुमारी सामंत को कला और समाज सेवा के लिए अनेक सम्मानों से नवाज़ा गया है। इनमें उल्लेखनीय हैं:
विशिष्ट उपाधियाँ:
- असिमा – टाटा स्टील
- कला गौरव – गंजम जिला प्रेस क्लब
- जुगलबंदी – द समाज
- माटी पर गर्व – ओडिशा ललित कला
- आजीवन समर्पण – ओडिशा ललित कला
- बहुमुखी प्रतिभा – ओ.टी.डी.सी
- गांधी गौरव – अनाया उत्कल
- बहुवर्णी सर्जना – निर्भया
महत्वपूर्ण पुरस्कार:
- राष्ट्रीय ललित कला अकादमी
- ओडिशा ललित कला अकादमी
- एनसीईआरटी
- ईस्ट ज़ोन कल्चरल सेंटर
- टाटा स्टील, आई.पी.सी.ए
- चलापथ लेखक संगठन
- गंजम जिला पत्रकार संघ
- कोणार्क नाट्य मंडप
- बीके कला महाविद्यालय – नंदीघोष
- निर्भया सम्मान
इन सभी सम्मान केवल उनके कौशल का नहीं, बल्कि उनकी सामाजिक प्रतिबद्धता और कला के प्रति समर्पण का प्रमाण हैं।
कला को संस्थागत संरचना में लाने की अपील
बसंत कुमारी सामंत आज भी सक्रिय हैं और लगातार ओडिशा में कला को शिक्षा के मूलधारा में लाने की मांग कर रही हैं। उनका स्पष्ट मानना है:
“आज भी हमारे यहाँ कला शिक्षक या तो अतिथि के रूप में काम करते हैं या अल्प मानदेय पर। इससे युवा प्रेरित नहीं होते। सरकार को ललित कला को स्कूलों और कॉलेजों में नियमित विषय के रूप में शामिल करना चाहिए।”
उनका यह आग्रह केवल सरकारी तंत्र से नहीं है, बल्कि समाज से भी है कि वह कला को मात्र मनोरंजन नहीं, राष्ट्र निर्माण का औज़ार माने।
नारी सशक्तिकरण का चलायमान प्रतीक
बसंत कुमारी सामंत ने यह सिद्ध कर दिया है कि एक महिला न केवल घर-परिवार संभाल सकती है, बल्कि समाज की दिशा भी तय कर सकती है। उन्होंने पेंटिंग को एक जीवंत क्रांति में बदल दिया—जो महिलाओं को आत्मनिर्भरता, आत्मसम्मान और सामाजिक पहचान देती है।
उनका जीवन इस बात का सशक्त उदाहरण है कि "जहाँ चाह होती है, वहाँ राह अपने आप बन जाती है।"
आज जब हम महिला सशक्तिकरण, शिक्षा और कला की स्वतंत्रता की बात करते हैं, तो बसंत कुमारी सामंत जैसी विभूतियाँ हमारे लिए प्रेरणा बनकर खड़ी होती हैं। उन्होंने कला को न केवल आत्म-प्रकाशन का माध्यम बनाया, बल्कि समाज और राष्ट्र के निर्माण का औज़ार भी।
ओडिशा की इस ‘माटी की बेटी’ को हम नमन करते हैं—जिन्होंने रंगों से इतिहास रचा, और चित्रों से चेतना की क्रांति।

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