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श्रावण मास आस्था,भक्ति,श्रद्धा, तपस्या, साधना और शिवभक्ति का पवित्र पर्व: संजय सर्राफ


श्री कृष्ण प्रणामी सेवा-धाम ट्रस्ट एवं विश्व हिंदू परिषद सेवा विभाग के प्रांतीय प्रवक्ता संजय सर्राफ ने कहा है कि भारतीय संस्कृति में श्रावण मास का अत्यंत विशेष महत्व है। यह महीना आस्था, भक्ति, तपस्या और साधना का प्रतीक है, जो न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से पवित्र माना जाता है, बल्कि यह प्रकृति और जीवन के संतुलन का भी प्रतीक है।इसकी शुरुआत आषाढ़ पूर्णिमा के अगले दिन से होती है। यह संपूर्ण मास भगवान शिव को समर्पित होता है, जिसे भक्तगण विशेष श्रद्धा और उत्साह से मनाते हैं।श्रावण मास को भगवान शिव का प्रिय मास माना जाता है। पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जब हलाहल विष निकला, तो संपूर्ण ब्रह्मांड की रक्षा हेतु भगवान शिव ने उसे अपने कंठ में धारण कर लिया। जिससे उनका कंठ नीला हो गया और वे 'नीलकंठ' कहलाए। इस विष की ज्वाला को शांत करने के लिए देवताओं ने शिवजी पर जल अर्पित किया। तभी से श्रावण मास में जलाभिषेक की परंपरा शुरू हुई। श्रावण सोमवार का विशेष महत्व है। श्रावण के सभी सोमवार को व्रत रखकर शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा, शहद आदि चढ़ाने से भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मास में शिवभक्ति से मोक्ष प्राप्त होता है और समस्त पापों का नाश होता है।श्रावण मास में अनेक धार्मिक अनुष्ठान, व्रत एवं पर्व आते हैं।श्रावण सोमवार व्रत भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने हेतु यह व्रत अत्यंत फलदायी माना गया है।मंगला गौरी व्रत-विवाहित महिलाएं मंगलवार को यह व्रत कर सुख-समृद्धि एवं अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं।नाग पंचमी- इस दिन नाग देवता की पूजा कर रक्षा और समृद्धि की प्रार्थना की जाती है। रक्षा बंधन भाई-बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक पर्व इसी मास में आता है।हरियाली अमावस्या और हरियाली तीज- ये पर्व प्रकृति और नवजीवन का उत्सव हैं, जो महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखते हैं।श्रावण मास केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति जागरूकता का भी प्रतीक है। वर्षा ऋतु के कारण यह समय हरियाली, जल संरक्षण और भूमि की उर्वरता से जुड़ा होता है। इस महीने वृक्षारोपण का विशेष महत्व है, जिसे हमारी परंपरा ने धर्म से जोड़कर स्थायी जीवन शैली का हिस्सा बनाया है। श्रावण मास में कांवड़ यात्रा का विशेष महत्त्व है, जिसमें लाखों श्रद्धालु गंगाजल लेकर शिवधामों तक पदयात्रा करते हैं। यह न केवल एक धार्मिक क्रिया है, बल्कि एक सामाजिक समरसता और साहस का उदाहरण भी है। श्रावण मास आत्मनिरीक्षण, संयम और साधना का समय है। उपवास, ध्यान, जाप और स्वाध्याय के माध्यम से यह मास आध्यात्मिक प्रगति का द्वार खोलता है। विशेषतः शिवमहापुराण, रुद्राष्टाध्यायी, शिव तांडव स्तोत्र आदि का पाठ इस मास में विशेष फलदायी माना गया है। श्रावण मास न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की गहराई और आध्यात्मिक विरासत को भी उजागर करता है। यह मास हमें भक्ति, सेवा, समर्पण और प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाता है।  इस पावन मास में हम सभी श्रद्धा और संयम के साथ शिवभक्ति में लीन होकर जीवन को सकारात्मकता से भरें।

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