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ओबीसी आरक्षण में घपले की साजिश: आजसू पार्टी का झामुमो–कांग्रेस पर आरोप

ट्रिपल टेस्ट सर्वे में भारी गड़बड़ी, सरकार की मंशा पर उठे गंभीर सवाल

– ट्रिपल टेस्ट रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग
– डोर-टू-डोर सर्वे के नाम पर चल रही खानापूरी
– “क्या कोर्ट के दबाव के बिना राज्य सरकार कुछ करेगी?”: आजसू


रांची, 20 जुलाई | PSA Live News डेस्क।

झारखंड में नगर निकाय चुनावों को लेकर बहुचर्चित ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर आजसू पार्टी ने राज्य सरकार पर एक बार फिर से तीखा हमला बोला है। पार्टी ने स्पष्ट आरोप लगाया है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और कांग्रेस सरकार ट्रिपल टेस्ट प्रक्रिया में जानबूझकर भारी अनियमितता कर रही है ताकि ओबीसी समुदाय को आरक्षण से वंचित किया जा सके।

पार्टी मुख्यालय में आयोजित एक विशेष प्रेस वार्ता में वरिष्ठ नेता प्रवीण प्रभाकर और युवा नेता संजय मेहता ने प्रेस को संबोधित करते हुए ट्रिपल टेस्ट सर्वे को लेकर सरकार की नीयत, प्रक्रिया और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठाए।

"डोर-टू-डोर सर्वे नहीं हुआ, रिपोर्ट बंद कमरे में तैयार" — प्रवीण प्रभाकर

आजसू नेता प्रवीण प्रभाकर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देश हैं कि नगर निकाय चुनावों में ओबीसी को आरक्षण देने के लिए ट्रिपल टेस्ट प्रक्रिया आवश्यक है। इस प्रक्रिया में तीन बिंदुओं पर आधारित विश्लेषण अनिवार्य है:

  1. पिछड़े वर्ग की संख्या और जनसंख्या प्रतिशत
  2. उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति
  3. राजनीतिक प्रतिनिधित्व की स्थिति

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा इन तीनों ही बिंदुओं को दरकिनार किया जा रहा है। झारखंड के किसी भी नगर निकाय क्षेत्र में डोर-टू-डोर सर्वेक्षण नहीं हुआ है, फिर भी सरकार बंद दरवाजे के पीछे फर्जी आंकड़ों पर आधारित रिपोर्ट तैयार कर रही है।

"सरकार बताए, डाटा कैसे एकत्रित और सत्यापित किया गया?" — संजय मेहता

युवा आजसू नेता संजय मेहता ने प्रेस वार्ता में कहा कि ट्रिपल टेस्ट में पारदर्शिता का घोर अभाव है। सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि—

  • डाटा एकत्र करने वाली एजेंसियों का चयन किस आधार पर किया गया?
  • सर्वेक्षण करने वाले अधिकारी कौन हैं और उनकी प्रशिक्षण प्रक्रिया क्या रही?
  • डाटा का वैरिफिकेशन और प्रमाणीकरण कैसे किया जा रहा है?
  • क्या यह पूरा सर्वे OMR आधारित, GIS ट्रैकिंग या डिजिटल रजिस्ट्रेशन के माध्यम से हो रहा है?

उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया न सिर्फ अधूरी और अपारदर्शी है, बल्कि संविधान में दिए गए आरक्षण के अधिकार के साथ भी मज़ाक है।

"आजसू के दबाव पर शुरू हुआ ट्रिपल टेस्ट": सुप्रीम कोर्ट का हवाला

प्रेस वार्ता में यह बात भी उजागर की गई कि झारखंड सरकार ने शुरू में नगर निकाय चुनावों को ओबीसी आरक्षण के बिना कराने की योजना बनाई थी। लेकिन आजसू पार्टी के सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी ने जब सुप्रीम कोर्ट से स्पष्ट आदेश प्राप्त किया कि बिना ट्रिपल टेस्ट के चुनाव कराना असंवैधानिक है, तब जाकर राज्य सरकार ने आनन-फानन में प्रक्रिया शुरू की।

एक साल से रिक्त पड़ा पिछड़ा वर्ग आयोग भी आजसू पार्टी के दबाव के बाद ही पुनर्गठित किया गया। वहीं, पिछले चार महीने से राज्य निर्वाचन आयुक्त का पद रिक्त है, जिससे स्पष्ट होता है कि सरकार गंभीर नहीं है।

“क्या सरकार सिर्फ कोर्ट की डांट पर काम करेगी?” — तीखा सवाल

संजय मेहता ने कड़ा सवाल उठाया—

“क्या झारखंड सरकार अब केवल सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के निर्देश के बाद ही काम करेगी? सरकार की अपनी कोई ज़िम्मेदारी नहीं बची?”

उन्होंने कहा कि जिस राज्य में ओबीसी की आबादी 40 प्रतिशत से अधिक है, वहां ट्रिपल टेस्ट जैसे संवेदनशील और कानूनी रूप से बाध्यकारी सर्वेक्षण में ऐसी मनमानी और हेराफेरी लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ है।

"ओबीसी को आरक्षण से वंचित करने की साजिश": परवाज खान

प्रेस वार्ता में उपस्थित मीडिया संयोजक परवाज खान और युवा आजसू संयोजक बबलू महतो ने आरोप लगाया कि झामुमो और कांग्रेस की साझा सरकार पिछड़ों के साथ न्याय नहीं करना चाहती। यह सरकार सिर्फ वोट बैंक की राजनीति में जुटी है और ओबीसी समुदाय को गुमराह कर रही है।

आजसू की मांगें:

  1. ट्रिपल टेस्ट की प्रक्रिया और सर्वे रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए।
  2. सर्वेक्षण की कच्ची और पक्की रिपोर्टों को वेबसाइट पर अपलोड किया जाए।
  3. सर्वे एजेंसियों की चयन प्रक्रिया और रिपोर्टिंग मैकेनिज्म की समीक्षा हो।
  4. सर्वे की निगरानी के लिए स्वतंत्र न्यायिक समिति का गठन किया जाए।
  5. राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति अविलंब हो, ताकि प्रक्रिया में वैधानिकता और गति सुनिश्चित हो सके।

झारखंड में ओबीसी आरक्षण को लेकर मचा यह विवाद आने वाले दिनों में और गहराने वाला है। ट्रिपल टेस्ट की प्रक्रिया पर जिस तरह से सवाल खड़े हो रहे हैं, उससे राज्य सरकार की जवाबदेही और विश्वसनीयता दोनों दांव पर लग चुकी है। आजसू पार्टी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह ओबीसी समुदाय के संवैधानिक अधिकारों के लिए हर स्तर पर संघर्ष करेगी — चाहे वह सड़कों पर हो या न्यायालय में।

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