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काल भैरव : समय, न्याय और तंत्र साधना के देवता


रांची।  
हिंदू धर्म में भगवान शिव के अनेक रूपों की पूजा की जाती है, जिनमें से काल भैरव का स्वरूप सबसे उग्र, रहस्यमयी और न्यायप्रिय माना जाता है। 'काल' का अर्थ होता है समय, और 'भैरव' का अर्थ है भय का नाश करने वाला। इस प्रकार काल भैरव केवल समय के नियंता ही नहीं, बल्कि अन्याय, अधर्म और भय का समूल नाश करने वाले देवता हैं। वे शिव के रौद्रतम रूपों में से एक हैं और धर्म की रक्षा तथा पापियों के दमन हेतु धरती पर अवतरित हुए थे।

शिव के क्रोध से उत्पन्न हुए काल भैरव

पुराणों के अनुसार, एक बार ब्रह्माजी ने अहंकारवश भगवान शिव के महत्व को कमतर आंका और उनका अपमान किया। ब्रह्माजी के इस व्यवहार से भगवान शिव अत्यंत कुपित हुए और अपने तेज से काल भैरव को उत्पन्न किया। काल भैरव ने तुरंत ब्रह्माजी के पाँचवे मस्तक को काटकर उनके घमंड का अंत कर दिया। यह घटना न केवल देवताओं को चेतावनी थी, बल्कि यह भी दर्शाती है कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश – त्रिदेवों में भी जो धर्म के विपरीत जाए, उसे दंड मिलना निश्चित है।

काल भैरव : तंत्र, शक्ति और ज्योतिष के अधिपति

काल भैरव को विशेष रूप से तंत्र साधना, शक्ति उपासना और ज्योतिष विद्या के देवता के रूप में पूजा जाता है। उनके भक्त मानते हैं कि काल भैरव की साधना से शत्रुओं का नाश, तांत्रिक बाधाओं से मुक्ति, आत्मबल में वृद्धि और भयमुक्त जीवन प्राप्त होता है। इन्हें रात्रि का देवता भी कहा जाता है और इनकी उपासना विशेष रूप से अष्टमी, रविवार और कालाष्टमी के दिन की जाती है।

बटुक भैरव : सौम्य रूप

काल भैरव का एक बाल रूप बटुक भैरव के रूप में भी पूजित है। बटुक भैरव, भले ही शिव के रौद्र रूप का प्रतीक हैं, परंतु उनका स्वरूप सौम्य, शांत और कृपालु है। विशेष रूप से गृहस्थ भक्तों के लिए बटुक भैरव की आराधना उपयुक्त मानी जाती है। यह विश्वास है कि बटुक भैरव अपने भक्तों की कठिन से कठिन मनोकामनाओं को भी पूर्ण करते हैं।

काशी के कोतवाल – न्याय के देवता

काशी (वाराणसी) में काल भैरव को नगर के कोतवाल की मान्यता प्राप्त है। कहा जाता है कि कोई भी व्यक्ति बिना काल भैरव की अनुमति के काशी में रह भी नहीं सकता और वहां से जा भी नहीं सकता। वे काशी नगरी के न्यायाधीश हैं और सभी पापियों को वहीं पर उनके कर्मों का फल प्रदान करते हैं। काशी में काल भैरव मंदिर एक अत्यंत शक्तिशाली और जाग्रत स्थल माना जाता है, जहां भक्तजन श्रद्धा और भय के मिश्रित भाव से पूजा करते हैं।

श्वान पर आरूढ़ – संकेत और प्रतीक

काल भैरव की सवारी श्वान (कुत्ता) है। यह सवारी न्याय, सतर्कता और प्राचीन गुप्तचर प्रणाली का प्रतीक मानी जाती है। श्वान न्यायप्रियता और वफादारी का प्रतीक है, और यह दर्शाता है कि काल भैरव अपने भक्तों की रक्षा के लिए सदा सतर्क रहते हैं। काल भैरव उन लोगों को दंडित करते हैं जो अधर्म, पाखंड, हिंसा और अनीति का मार्ग अपनाते हैं।

नकारात्मक शक्तियों से रक्षा

काल भैरव की पूजा करने वाले भक्तों का यह विश्वास है कि वे उन्हें भय, काला जादू, नज़र दोष, भूत-प्रेत बाधा और सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करते हैं। उनकी उपासना से मनोबल, साहस और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है। विशेष रूप से सुरक्षा बलों, न्यायाधीशों, पुलिस अधिकारियों और ज्योतिषाचार्यों द्वारा काल भैरव की आराधना की जाती है।

भैरव की पूजा – विधि और विशेषता

काल भैरव की पूजा में सरसों के तेल का दीपक, काली उड़द, मदिरा, नारियल और काले वस्त्र चढ़ाए जाते हैं। कहा जाता है कि भैरव को चढ़ाया गया प्रसाद विशेष रूप से श्वान को खिलाना शुभ और पुण्यदायी माना जाता है। इससे भक्त को भैरव कृपा शीघ्र मिलती है और जीवन में भय, भ्रम तथा बुराइयों से छुटकारा मिलता है।

निष्कर्ष:

काल भैरव न केवल भगवान शिव का उग्र रूप हैं, बल्कि वे समय के नियंता और न्याय के निर्विवाद अधिपति भी हैं। वे यह स्मरण कराते हैं कि कोई भी कार्य, व्यक्ति या सत्ता अगर धर्म और मर्यादा का उल्लंघन करती है, तो उसे दंड अवश्य मिलेगा। भैरव की उपासना केवल भय से नहीं, बल्कि धर्म और न्याय की रक्षा के लिए श्रद्धा से करनी चाहिए।


लेखक – धार्मिक संवाददाता, PSA Live News

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