संजय सर्राफ बोले – यह केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जागरण, सामाजिक एकता और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक
रांची। श्रीकृष्ण प्रणामी सेवा धाम ट्रस्ट एवं विश्व हिंदू परिषद सेवा विभाग के प्रांतीय प्रवक्ता संजय सर्राफ ने जानकारी दी कि इस वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 16 अगस्त (शनिवार) को पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाई जाएगी।
पंचांग के अनुसार, यह पर्व भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। तिथि का प्रारंभ 15 अगस्त की रात 11:48 बजे होगा और समापन 16 अगस्त की रात 10:15 बजे होगा। इस कारण 16 अगस्त की मध्यरात्रि को भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाना अधिक शास्त्रसम्मत माना गया है।
अवतरण की दिव्य स्मृति
श्री सर्राफ ने बताया कि द्वापर युग में जब पृथ्वी पर अधर्म, अत्याचार, पाप और अन्याय चरम पर था, तब भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया। उनका जन्म कंस के कारागार में, रात्रि के अंधकार में हुआ—जो यह संदेश देता है कि जब-जब अन्याय का अंधकार गहराएगा, ईश्वर स्वयं उसे दूर करने के लिए अवतरित होंगे।
जीवन – लीलामय और मार्गदर्शक
बाल्यकाल की माखनचोरी, ग्वाल-बालों संग लीला, कंस-वध, रासलीला और महाभारत के युद्ध में अर्जुन को गीता का उपदेश—ये सभी प्रसंग आज भी धर्म, प्रेम, कर्म और ज्ञान के अद्वितीय प्रतीक हैं। गीता का संदेश “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” आज भी मानव जाति को कर्तव्य-पालन का अमर मंत्र देता है।
भक्ति और उल्लास का संगम
जन्माष्टमी के दिन भक्त व्रत और उपवास रखते हैं। मंदिरों, घरों और श्रीकृष्ण धामों को आकर्षक सजावट से सजाया जाता है। झांकियां, झूले और रासलीला के आयोजन होते हैं। ठीक मध्यरात्रि में भगवान श्रीकृष्ण का अभिषेक, श्रृंगार और आरती की जाती है। भोग में माखन, मिश्री, फल, पंचामृत और 56 प्रकार के व्यंजन अर्पित किए जाते हैं।
भक्त इस अवसर पर हरे कृष्ण महामंत्र, भजन और कीर्तन में लीन रहते हैं। कई स्थानों पर दही-हांडी प्रतियोगिताएं आयोजित होती हैं, जो श्रीकृष्ण के बालरूप की झलक प्रस्तुत करती हैं।
देश-विदेश में भव्य आयोजन
भारत ही नहीं, विदेशों में भी जन्माष्टमी बड़े उत्साह से मनाई जाती है। वृंदावन, मथुरा, द्वारका और इस्कॉन मंदिरों में लाखों भक्त एकत्र होकर भक्ति का अद्भुत वातावरण निर्मित करते हैं।
केवल उत्सव नहीं, जीवन-दर्शन
संजय सर्राफ ने कहा—
“श्रीकृष्ण केवल एक देवता नहीं, बल्कि जीवन जीने की संपूर्ण शैली हैं। उनकी लीलाएं सिखाती हैं कि कैसे धर्म, प्रेम, मित्रता, राजनीति, युद्ध और जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन बनाए रखा जाए। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी हमें यह संकल्प लेने का अवसर देती है कि हम अपने जीवन में सत्य, प्रेम, न्याय और कर्म को अपनाएं।”
उन्होंने जन्माष्टमी को आध्यात्मिक जागरण, सामाजिक एकता और सांस्कृतिक समृद्धि का पर्व बताते हुए सभी श्रद्धालुओं से इस दिन श्रीकृष्ण की शिक्षाओं को आत्मसात करने का आह्वान किया।

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