चौठ चन्द्र पूजा का परिचय
भाद्रपद मास की चतुर्थी तिथि को मनाया जाने वाला चौठ चन्द्र या चौथ चंद्र पूजा विशेष रूप से उत्तरी हिंदुस्तान के बिहार, झारखंड और मिथिला क्षेत्र में बड़ी श्रद्धा और भक्ति से किया जाता है। इसे चंद्र गणेश व्रत भी कहा जाता है। यह व्रत मुख्यतः महिलाएं अपने बच्चों की दीर्घायु, परिवार की सुख-समृद्धि और पाप-निवारण के लिए करती हैं।
पूजा विधि (मिथिला परंपरा के अनुसार)
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प्रातःकाल स्नान कर महिलाएं व्रत का संकल्प लेती हैं।
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चौथी तिथि को निर्जला उपवास रखा जाता है।
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संध्या समय आंगन या छत पर मिट्टी का चौक बनाकर चंद्रमा और गणेश जी की प्रतिमा या चित्र स्थापित किया जाता है।
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पूजन सामग्री में जल, दूध, दही, दूर्वा घास, फूल, रोली, अक्षत, दीपक आदि रखे जाते हैं।
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मिथिला परंपरा में इस दिन विशेष प्रसाद चढ़ाया जाता है, जिसमें शामिल होता है –
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खीर
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पुरी
टिकरी
पुरुकिया
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केला
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दही
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तथा विभिन्न प्रकार के मौसमी फल।
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पूजा के बाद महिलाएं चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं और फिर गणेश-चंद्रमा की कथा सुनती हैं।
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कथा और आरती के उपरांत व्रती महिलाएं प्रसाद ग्रहण कर व्रत का समापन करती हैं।
चौठ चन्द्र व्रत का महत्व
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मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान की रक्षा होती है और वह निरोगी, दीर्घायु और बुद्धिमान बनती है।
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व्रती महिला के परिवार में धन, सुख और शांति बनी रहती है।
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यह व्रत चंद्र दोष और पापों के शमन के लिए भी विशेष माना जाता है।
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मिथिला परंपरा में इसे पारिवारिक समृद्धि और वैवाहिक जीवन की स्थिरता के लिए अत्यंत शुभ माना गया है।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान गणेश जी को चंद्रमा ने मजाक में ठिठोली करते हुए हंसी उड़ाई। इससे क्रोधित होकर गणेश जी ने चंद्रमा को श्राप दिया कि वह कलंकित होंगे और कोई उनकी ओर देखेगा तो उस पर झूठे आरोप लगेंगे।
बाद में सभी देवताओं और ऋषियों ने गणेश जी से प्रार्थना की कि श्राप से चंद्रमा को मुक्ति दी जाए। तब गणेश जी ने कहा कि भाद्रपद मास की चतुर्थी तिथि को जो भी श्रद्धापूर्वक चौठ चन्द्र व्रत करेगा, वह इस दोष से मुक्त होगा और उसे सुख-समृद्धि प्राप्त होगी।
इस प्रकार चौठ चन्द्र पूजा मिथिला सहित पूरे हिंदुस्तान में संतान की दीर्घायु, परिवार की समृद्धि और जीवन की शांति के लिए अत्यंत शुभ और फलदायी मानी जाती है।

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